अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने ‘अमेरिका फर्स्ट’की नीति को अपने प्रचार अभियान का प्रमुख मुद्दा बनाया था। उन्होंने बारंबार मतदाताओं के सामने यह बात रखी कि अवैध प्रवासियों के कारण अमेरिकियों के हित प्रभावित हो रहे हैं। यदि वह जीतते हैं तो अवैध प्रवासियों का निर्वासन उनकी प्राथमिकता होगी। उन्होंने तो यहां तक कहा था कि यदि इसके लिए आवश्यकता पड़ी तो सेना का भी उपयोग किया जाएगा। इस दृष्टि से देखा जाए तो अमेरिका से अवैध प्रवासियों का निर्वासन अप्रत्याशित नहीं है। अप्रत्याशित है,ट्रंप प्रशासन द्वारा अपनाया जा रहा तरीका। डिपोर्टेशन दोनों देशों की सहमति से हो रहा है अतः इसे सम्मानजनक तरीके से होना चाहिए था। हालिया कार्यवाही में कूटनीतिक कुशलता और परस्पर समन्वय का सर्वथा अभाव नजर आता है।
अमेरिका में अलग-अलग देशों के लाखों लोग अवैध रूप से निवासरत हैं, इनमें मेक्सिको,कोलंबिया,ग्वाटेमाला, होंडूरास ,पेरू तथा इक्वाडोर के नागरिकों की अच्छी खासी संख्या है।
अलग-अलग रिपोर्टों में ऐसा दावा किया जाता है कि अमेरिका में 7.25 लाख से अधिक भारतीय नागरिक अवैध प्रवासी के रूप में रह रहे हैं। अवैध प्रवासियों की दृष्टि से यह तीसरी बड़ी संख्या है। सूचनाओं के अनुसार अब तक 18000 ऐसे भारतीयों की पहचान कर ली गई है जो अवैध रूप से वहां निवासरत हैं। इन सभी का डिपोर्टेशन किया जाना है।
क्या आगे भी ऐसे ही दृश्य देखने को मिलेंगे?
इस मामले में मेक्सिको और कोलंबिया जैसे देशों से सबक लिया जा सकता है। दोनों ही देशों ने अमेरिकी सेना के विमानों को अपने हवाई अड्डों पर नहीं उतरने दिया। उन्होंने माना कि अमेरिका से निर्वासित किए गए लोग उनके देश के नागरिक हैं लेकिन उन्हें स्वीकार किया सम्मानजनक तरीके से। मेक्सिको ने अमेरिकी सीमा से अपने नागरिकों को वापस लिया तो कोलंबिया ने अपने जहाज भेज कर नागरिकों को वापस बुलाया।
ऐसा भारत सरकार द्वारा भी किया जाना चाहिए था।
यूक्रेन युद्ध में फंसे भारतीयों की स्वदेश वापसी के लिए जिस स्तर की व्यवस्थाएं की गई थीं,वैसी ही व्यवस्था अवैध प्रवासियों के डिपोर्टेशन के समय भी की जा सकती थीं।
आपसी चर्चा के माध्यम से यह भी सुनिश्चित किया जा सकता था कि कार्यवाही के दौरान किसी के साथ दुर्व्यवहार ना हो और सैन्य विमान के स्थान पर सामान्य व्यवसायिक विमान से ही उन्हें वापस भेजा जाए।
मामला संवेदनशील है अतः सरकार से सवाल तो बनता ही है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है – विदेश में अवैध तौर पर रहने वाले अपने नागरिकों को वापस लेना हर देश की सरकार का दायित्व है।अमेरिका से अवैध प्रवासी भारतीयों का निर्वासन पहली बार नहीं हो रहा है,यह 2009 से चल रहा है। हम अमेरिकी सरकार के संपर्क में हैं। हमारा प्रयास है कि अब किसी भी नागरिक के साथ दुर्व्यवहार न हो।
लेकिन जो घटित हो चुका, उसका क्या?
एक महत्वपूर्ण सवाल और भी है। वैध तरीके से उच्च शिक्षा प्राप्त करने और योग्यतानुसार रोजगार हासिल करने तक तो ठीक है, लेकिन रोजगार प्राप्त करने के लिए अवैध तरीके से किसी देश में प्रवेश करना कहां तक उचित है? क्या लोगों को पकड़े जाने का जरा भी भय नहीं रहा ?
यह और भी चिंताजनक है कि अमेरिका में प्रवेश करने के लिए लोगों ने साम-दाम सहित हर संभव तौर तरीकों का इस्तेमाल किया।
बिचौलियों के चक्कर में फंसकर अपना सब कुछ गवां देने वाले कितने परिवारों की कहानियां अब सामने आ रही हैं।
केवल यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता कि
किसी भी देश में अवैधानिक तरीके से रह रहे लोगों को निर्वासित करना वहां की सरकार का अधिकार है।ठीक है,लोगों ने नियम कानूनों का उल्लंघन किया। इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना होगा। लेकिन इस अपमानजनक तरीके से किया गया निर्वासन मानवीय सभ्यता के अनुकूल नहीं है।
जैसा कि बताया जा रहा है, अभी और भी नागरिकों का डिपोर्टेशन होना है। आगे की कार्यवाही सम्मानजनक तरीके से संपन्न हो,यह दायित्व अमेरिका से ज्यादा भारत सरकार का है।
प्रतिभा पलायन का मुद्दा लंबे समय से समाधान की प्रतीक्षा कर रहा है, और अब सामान्य रोजगार के लिए भी अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों की ओर भागने की होड़ नीति नियंताओं के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए।
चिंता तो भारत में रह रहे लाखों अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर भी होनी चाहिए, मगर अफसोस की बात यह है कि जिम्मेदार लोग इस मुद्दे पर चिंता कम,राजनीति ज्यादा करते हैं।
अवैध प्रवासियों की समस्या से निपटने के लिए अमेरिका द्वारा की गई हालिया कार्यवाही के दौरान अपनाए गए तौर तरीके से असहमति अपनी जगह है,लेकिन राष्ट्रहित के नाम पर जो तत्परता और दृढ़ता अमेरिका ने दिखाई है उससे सबक लिए जाने की जरूरत है।
*अरविन्द श्रीधर