भारत सरकार के पंचायत राज मंत्रालय ने ‘राज्यों में पंचायतों के अंतरण की स्थिति – एक सांकेतिक साक्ष्य आधारित रैंकिंग 2024′(पंचायत विकास सूचकांक)शीर्षक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली द्वारा तैयार की गई है।
73 वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा संविधान में 11वीं अनुसूची शामिल की गई थी,जिसमें पंचायत राज संस्थाओं की शक्तियों और कार्यों का उल्लेख किया गया है।अनुसूची के प्रावधानों के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पंचायत राज संस्थाओं को कितनी शक्तियां और संसाधन हस्तांतरित किए गए हैं, रिपोर्ट इस बात का आकलन करती है।
सूचकांक जहां एक ओर पंचायत राज संस्थाओं के सशक्तिकरण के लिए किए गए प्रयासों का आकलन करता है वहीं दूसरी ओर इसी के आधार पर केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय राज्यों को सहायता भी उपलब्ध कराता है। सूचकांक भारत के समग्र विकास के लिए नीतिगत आधार तय करने में भी सहायक होगा।
पंचायत अंतरण सूचकांक 2024 तैयार करते समय ढांचा,कार्य,वित्त,कार्यकर्ता,क्षमता निर्माण और पंचायतों के उत्तरदायित्व जैसे क्षेत्रों में किए गए प्रयासों को आधार बनाया गया है। इसके साथ ही 25 उपसंकेतकों को भी ध्यान में रखा गया है।
रैंकिंग में शीर्ष 10 स्थान प्राप्त करने वाले राज्य हैं-कर्नाटक (72.23), केरल (70.59), तमिलनाडु (68.38), महाराष्ट्र (61.44), उत्तर प्रदेश (60.07), गुजरात (58.26), त्रिपुरा (57.58), राजस्थान (56.67), पश्चिम बंगाल (56.52) और छत्तीसगढ़ (56.26)।
50 से अधिक अंक अर्जित करने वाले अन्य राज्य हैं- तेलंगाना,आंध्र प्रदेश,हिमाचल प्रदेश,मध्य प्रदेश और ओडिशा।
प्राप्तांको के आधार पर राज्यों को उच्च,मध्यम,निम्न और अति निम्न श्रेणियों में रखा गया है। प्रथम 10 स्थान प्राप्त करने वाले राज्य उच्च श्रेणी में रखे गए हैं। आंध्र प्रदेश,हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और उड़ीसा मध्यम श्रेणी में रखे गए हैं। असम,बिहार,सिक्किम और उत्तराखंड निम्न श्रेणी में हैं,जबकि अंडमान निकोबार,अरुणाचल प्रदेश,दादरा एवं नगर हवेली और दमन-दीव,गोवा,हरियाणा,जम्मू कश्मीर,झारखंड, लद्दाख,लक्षद्वीप,मणिपुर,पुडुचेरी और पंजाब अति निम्न श्रेणी में रखे गए हैं।
सूचकांक में पहले तीन स्थानों पर दक्षिण भारतीय राज्यों कर्नाटक,केरल और तमिलनाडु ने स्थान प्राप्त किया है।
2016 के प्रतिवेदन में उत्तर प्रदेश 15 वें स्थान पर था।
उसका 5 वें स्थान पर पहुंचना महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जबकि मध्य प्रदेश 9 वें स्थान से 12 वें स्थान पर खिसक गया है। त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल ने भी उल्लेखनीय प्रगति की है।
रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों में पंचायत की अधोसंरचना में 11% की वृद्धि हुई है, जबकि क्षमता निर्माण में 10% सुधार हुआ है। राष्ट्रीय औसत 2014 के 39.92 % से बढ़कर 43.89% हुआ है।
रिपोर्ट में पंचायत राज संस्थाओं के विकास की चुनौतियों का भी उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार कुछ राज्यों में नियमित चुनाव नहीं हो रहे हैं। कुछ राज्यों में पंचायत राज संस्थाओं से संबंधित ठोस कानूनी प्रावधान हैं जबकि कुछ अन्य राज्य अपेक्षाकृत पीछे हैं। नियमित ग्राम सभाओं का आयोजन और नीति निर्धारण में पंचायतों की भूमिका अभी भी संतोषजनक नहीं है। पंचायतें केंद्र अथवा राज्य सरकार के अनुदानों पर निर्भर हैं, जबकि ध्येय आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना है। इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
रिपोर्ट में एक सुझाव यह भी दिया गया है कि आरक्षित सीटों पर चुने गए जन प्रतिनिधियों को काम करने के लिए अधिक अवसर मिलना चाहिए।
फ़िलहाल पंचायतों का आरक्षण रोटेशन पद्धति से होने के कारण अनुसूचित जाति,जनजाति,ओबीसी और महिलाओं के लिए आरक्षित पंचायतों का क्रम हर बार बदल जाता है, जिससे आरक्षित वर्ग के जनप्रतिनिधियों को कार्य करने का अधिक समय नहीं मिल पाता।
एक और महत्वपूर्ण सुझाव मतदाता सूची को लेकर दिया गया है। वर्तमान व्यवस्था के अनुसार लोकसभा एवं विधानसभाओं के निर्वाचन के लिए भारत निर्वाचन आयोग जबकि पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग मतदाता सूचियां तैयार करते हैं।
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान का कहना है कि मतदाता सूची एक ही होनी चाहिए। इससे समय और संसाधनों की बचत तो होगी ही, एक देश-एक चुनाव की प्रस्तावित व्यवस्था में भी इससे सहायता मिलेगी।
*अरविन्द श्रीधर