जब सृष्टि में कुछ भी नहीं था तब भी महाकाल विद्यमान थे । स्कंद पुराण के अवंती खण्ड में महाकाल की कथा विस्तार से दी गई है
पुरा त्वेकार्णवे प्राप्ते नष्टे स्थावरजंगमे ।
नाग्निर्न वायुरादित्यो न भूमिर्न दिशो नभः ।।
न नक्षत्राणि न ज्योतिर्न द्यौर्नेन्दुर्ग्रहास्तथा ।
न देवासुरगन्धर्वाः पिशाचोरगराक्षसाः ।।
सरांसि नैव गिरयो नापगा नाब्घयस्तथा ।
सर्वमेव तमोभूतं न प्राज्ञायत किञचन ।।
तदैको हि महाकालो लोकानुग्रहकारणात्।
तस्थौ स्थानान्यशेषाणि काष्ठास्वालोकयन्प्रभु ।।
प्रलय के समय स्थावर जंगम जगत में जब कुछ भी नहीं था । न अग्नि थी,न वायु था, न सूर्य, न पृथ्वी, न दिशाएं, न नक्षत्र, न प्रकाश,न आकाश, न चन्द्र और न ग्रह ही थे । देव, असुर, गंधर्व, पिशाच, नाग, तथा राक्षसगण भी नहीं थे । सरोवर,पर्वत, नदी एवं समुद्र भी नहीं थे । सब ओर घोर अंधकार था । ऐसे समय में लोकानुग्रह के कारण केवल महाकाल ही विद्यमान थे, जो सभी दिशाओं को देख रहे थे ।
ब्रह्याजी द्वारा की गई तपस्या एवं आराधना से प्रसन्न हो कर उन्होंने महाकाल वन में निवास करना स्वीकार किया ।
शिवपुराण के अनुसार बारह ज्योतिर्लिगों में तृतीय श्री महाकाल उज्जयिनी में विराजित हैं।
एक बार दूषण नामक असुर जो वेद एवं ब्राह्यणों का घोर विरोधी था, के अत्याचार से सभी संतप्त हो उठे । एक भक्त ब्राह्यण द्वारा की गई तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए एवं उन्होनें अपनी हुंकार से असुर को भस्म कर दिया।
भक्तों एवं देवताओं के आग्रह पर भक्त वत्सल भगवान शिवजी महाकाल ज्योर्तिलिंग स्वरूप में यहीं स्थापित हो गये।
एक जगह विवरण आता है कि एक गोपी ने भक्ति भाव से महाकाल ज्योतिर्लिंग पर मंदिर का निर्माण कराया था। इस गोपी की आठवी पीढ़ी में नंद हुए, जिनके आंगन में भगवान श्रीकृष्ण ने लीला रची।
महाभारत, मत्स्य पुराण, देवी भागवत, अग्नि पुराण, वराहपुराण, भागवत पुराण, विष्णु पुराण, ब्रह्यवैवर्तपुराण, लिंगपुराण, गरूड़पुराण, हरिवंशपुराण आदि में भी उज्जयिनी स्थित महाकाल की महिमा गाई गई है।
काल का अर्थ समय और मृत्यु दोनों लिया जाता है । भूतभावन भगवान महाकाल समय और मृत्यु दोनों के अधिपति के रूप में पूजित हैं। ब्रह्मण्ड के तीन लोको में तीन शिवलिगों को पूज्य माना गया है, उनमें भूलोक (पृथ्वी) पर महाकाल की प्रधानता है।
आकाशे तारकं लिगं, पाताले हाटकेश्वरम्।
भूलेाके च महाकालो लिंगत्रय नमोस्तुते ।।
अर्थात आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर एवं भूलोक में महाकाल के रूप में विराजित हे लिंगत्रय, आपको नमस्कार है।
बारह ज्योतिर्लिगों में महाकाल का विशेष महत्व हैं। स्कंदपुराण के अनुसार महाकाल वन संचित पाप नष्ट होने के कारण ‘‘क्षेत्र‘‘,मातृदेवियों का स्थान होने से ‘‘पीठ‘‘ ,यहां मृत्यु के उपरांत पुनर्जन्म न होने से ‘‘ऊषर‘‘ एवं शिव का प्रिय एवं गुह्य क्षेत्र होने से ‘‘श्मशान‘‘ कहा जाता है। श्मशान,ऊषर ,क्षेत्र ,पीठ और वन यह पांच वैशिष्ट्य केवल उज्जयिनी तीर्थ में ही पाये जाते हैं, इसीलिए यहां की गई साधना एवं उपासना विशेष फलदायी कही गई है।
इसी वैशिष्ट्य के फलस्वरूप उज्जयिनी में शैव मत के अलावा वैष्णव, शाक्त, तांत्रिक, मांत्रिक, बौद्ध,जैन आदि सभी सम्प्रदायों के साधना स्थल विकसित हुए और यह वैभवशाली नगर दिव्य नगर भी कहलाया ।
प्राप्त संदर्भों का अवलोकन करें तो ई.पू. छठी सदी में उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत द्वारा मंदिर की व्यवस्था के लिए अपने पुत्र को नियुक्त करने संबंधी जानकारी मिलती हैं। 11 वीं 12 सदी में महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ । इस समय उदयादित्य एवं नरवर्मा यहां के शासक थे। 1325 में सुल्तान इल्तुतमिश ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया लेकिन महाकाल के धार्मिक महत्व को कम न कर सका। वर्तमान मंदिर मराठा कालीन है जिसे मराठा शासक राणोजी शिन्दे के दीवान रामचंद्र बाबा शैणवी द्वारा बनवाया गया था।
बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे विस्तृत परिसर कदाचित महाकाल मंदिर का ही है,जिसमें 40 से अधिक ऐसे मंदिर हैं जो पुराण काल से लगाकर 300-400 वर्ष पहले तक के हैं।
पाठकों एवं श्रद्धालुओं की जानकारी के लिए मंदिर परिसर में स्थित प्रमुख देवस्थानों की संक्षिप्त जानकारी देना उपयोगी होगा ।
1.मुख्य मंदिर – मुख्य मंदिर तीन भागों में है।
▪️गर्भ गृह – गर्भगृह में भूतभावन भगवान महाकाल स्वयं विराजित हैं। तीन आलों में देवी पार्वती, श्री गणेश एवं श्री कार्तिकेय की रजत प्रतिमाएं विराजित हैं। गर्भगृह में ही दो अखंड द्वीप प्रज्वलित हैं। महाकाल ज्योतिर्लिंग के सामने उनके प्रमुख गण नंदी की विशाल रजत प्रतिमा स्थापित हैं।
श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए स्वर्ण दान से महाकाल मंदिर का शिखर एवं कंगूरे स्वर्ण मंडित कर दिए गए हैं। श्रद्धालुओं के सहयोग से ही मंदिर के गर्भगृह की दीवारों को भी रजत मंडित कर दिया गया है।
▪️ओंकारेश्वर महादेव
प्रथम तल पर ओंकारेश्वर महादेव विराजे हैं। इन्हे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का प्रतिरूप माना जाता है।
▪️नागचन्द्रेश्वर महादेव
मंदिर के तृतीय तल पर नागचंद्रेश्वर महादेव विराजे हैं। यहाॅं पर शिव पार्वती की परमार कालीन सुन्दर प्रतिमा स्थापित है जिसके ऊपर नागफन छत्र के रूप में फैला हुआ हैं। इस मंदिर के दर्शन वर्ष में एक बार केवल नागपंचमी को ही होते हैं।
- साक्षी गोपाल
कहते हैं कि भूतभावन भगवान महाकाल तो अखंड समाधि में रहते हैं। ऐसे में साक्षी गोपाल ही महाकाल के दर्शनार्थियों की साक्षी देते हैं। अतः महाकाल दर्शन के उपरांत श्रद्धालुओं को साक्षी गोपाल के दर्शन अवश्य करना चाहिए। - सिद्धदास हनुमान मंदिर
मंदिर परिसर में उत्तर दिशा में स्थित इस प्राचीन मंदिर में समर्थ गुरू रामदास जी ने हनुमान जी मूर्ति स्थापित की थी, ऐसा कहा जाता हैं।मंदिर को संकट मोचक सिद्धदास हनुमान मंदिर भी कहा जाता है। - ऋद्धि – सिद्धि विनायक-मंदिर में विराजित प्रतिमाएं अत्यंत प्राचीन हैं। यह मंदिर ओंकारेश्वर मंदिर के सामने विशाल वट वृक्ष के नीचे स्थित है।
- लक्ष्मी नृसिंह मंदिर-महाकाल मंदिर के गलियारे में स्थित इस मंदिर में नृसिंह दरबार स्थापित है। भगवान नृसिंह के साथ-साथ देवी लक्ष्मी एवं प्रहलाद की प्रतिमाएं भी मंदिर में स्थापित हैं।
स्कंद पुराण की कथा के अनुसार हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भगवान नृसिंह का क्रोध इसी स्थान पर शांत हुआ था । - श्री राम दरबार – प्रसिद्ध संत श्री वृह्यचैतन्य गोंदवलेकर जी ने परिसर के गलियारे में इस मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर में राम दरबार की सुंदर प्रतिभाएं विराजित हैं।
- अवंतिका देवी – श्री राम मंदिर के पीछे अवंतिका देवी का मंदिर है । अवंतिका देवी को उज्जयिनी की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है । इसी कारण उज्जयिनी का एक नाम अवंतिकापुरी भी हैं।
- चंद्रादित्येश्वर – महाकाल वन में स्थित 84 महादेवों में इनकी गणना होती है। इसी मंदिर में आद्य शंकराचार्य जी की प्रतिमा भी स्थापित हैं।
- अन्नपूर्णा देवी – इस मंदिर में देवी अन्नपूर्णा के साथ-साथ गोरे भैरव तथा काले भैरव भी स्थापित हैं। गुप्त नवरात्र में यहां विशेष पूजन होती है।
- वाच्छायन गणपति – चांदी द्वार के पास वाच्छायन गणपति विराजित हैं , जिनकी आराधना से मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति होती है।
- स्वप्नेश्वर महादेव-84 महादेवों में वर्णित स्वप्नेश्वर महादेव सिद्धदास हनुमान मंदिर के सामने स्थापित हैं। इनके दर्शन से दुःस्वप्नों के कुप्रभावों से मुक्ति मिलती है।
- त्रिविष्टिपेश्वर महादेव-84 महादेवों में वर्णित त्रिविष्टिपेश्वर महादेव मंदिर महाकाल मंदिर के पीछे स्थित है।
- बृहश्पतेश्वर महादेव – स्वप्नेश्वर महादेव के समीप बृहस्पति (गुरूद्ध शिवलिंग के रूप में विराजित हैं।
- भद्रकाली मंदिर-ओंकारेश्वर मंदिर के उत्तरी कक्ष में मां भद्रकाली की सुन्दर प्रतिमा मंदिर में स्थापित है।
- नवगृह मंदिर-महाकाल मंदिर के निर्गम द्वार के समीप नवगृह मंदिर स्थित है । मंदिर में नौ गृह शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं।
- महादेव-महाकाल मंदिर के पीछे नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर है। संसार के ताप से मुक्ति के लिए इनकी पूजा की जाती है ।
- स्वर्णजालेश्वर मंदिर – 84 महादेवों में वर्णित स्वर्णजालेश्वर की पूजन-अर्चना से समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
- शनि मंदिर-कोटि तीर्थ कुण्ड के समीप प्राचीन शनि मंदिर स्थित है ।
- अनादिकल्पेश्वर महादेव – अनादिकल्पेश्वर की गणना 84 महादेवों में की जाती हैं।
एक कथा के अनुसार ब्रह्मा और विष्णु दोनों श्रृष्टि निर्माण का श्रेय लेना चाहते थे। उन्हें महाकाल वन में स्थित अनादिकल्पेश्वर महादेव का आदि एवं अंत खोजने की आज्ञा हुई। ब्रह्मा जी आकाश में एवं विष्णु भगवान पाताल लोक में आदि व अंत खोजने के लिए निकले।
पाताल लोक में अंत न पाकर विष्णु भगवान वापिस आ गये। ब्रह्म जी को भी आकाश में अंत नहीं मिला, लेकिन उन्होंने अंत मिलने संबंधी झूठ बोला तथा गाय एवं केवड़ा के फूल से झूठी गवाही भी दिलाई। झूठी गवाही से महादेव कुपित हुए एवं उन्होंने ब्रह्माजी तथा गाय को श्राप दिया,साथ ही केवडे़ के फूल को अपनी पूजा में निषिद्ध कर दिया। - श्री बाल विजय मस्त हनुमान-अनालिकल्पेश्वर मंदिर के सामने यह एक चैतन्य मंदिर है जहां बाल हनुमान की सुन्दर प्रतिमा स्थापित हैं।
- वृद्धकालेश्वर महाकाल – वृद्धकालेश्वर महाकाल के बारे में कहा जाता है कि वर्तमान ज्योतिर्लिंग से पूर्व वृद्धकालेश्वर ही पूजे जाते थे, पर इस तथ्य को निश्चयात्मक रूप से नहीं कहा जा सकता।
- सप्तऋषि मंदिर-मंदिर परिसर में पीछे सप्तऋषि मंदिर स्थित है जहां पर मानव जाति के आदि पुरूषों के रूप में मान्य सप्तऋषि विराजित हैं। ऋषि पंचमी के दिन महिलाएं एवं रक्षाबधंन के दिन ब्राह्मण अपने पूर्वजों के रूप में सप्तऋषियों का पूजन करते हैं।
- कोटितीर्थ कुण्ड – मंदिर परिसर में स्थित कोटितीर्थ कुण्ड का जल अत्यंत पवित्र माना जाता है। कोटि तीर्थ कुण्ड में भारत भूमि की सभी पवित्र नदियों एवं सरोवरों के जल का वास माना गया हैं। इसी कुण्ड के जल से नित्य महाकाल का अभिषेक होता हैं। महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथों में कोटितीर्थ कुंड का उल्लेख मिलता है।
- कोटेश्वर महादेव-कोटेश्वर महादेव कोटितीर्थ कुण्ड के अधिष्ठाता हैं।
- नागवंध – यह परमार कालीन (11 शताब्दी) शिलालेख है जो महाकाल मंदिर के पीछे स्थित हैं। इस शिलालेख में भूतभावन भगवान महाकाल की प्रशस्ति अंकित की गई है ।
इसके अलावा – विठ्ठल पंडरीनाथ मंदिर, मंगलनाथ मंदिर, प्रवेश द्वार के गणेश, ऋद्धि-सिद्धि बिनायक मंदिर, मारूतिनंदन मंदिर, दक्षिणी मराठों का मंदिर, गोविंदेश्वर महादेव,सूर्यमुखी हनुमान, लक्ष्मी प्रदाता मोढ़ गणेश मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, ओंकारेश्वर महादेव मंदिर आदि मंदिर भी परिसर में स्थित हैं।
मंदिर परिसर में ही भस्म तैयार करने का कक्ष है, जहां महाकाल की भस्म आरती हेतु गाय के गोबर के कंडों से भस्म तैयार की जाती हैं।
महाकाल मंदिर परिसर शैव, शाक्त एवं वैष्णव परंपराओं का भव्य समन्वय स्थल है, जहां नवगृह एवं सप्तऋषि भी अपनी पूरी दिव्यता के साथ उपस्थित हैं। दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग होने से तांत्रिक परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान तो यह है ही।
धर्मावलंबियों के लिए महाकाल मंदिर परिसर साक्षात् देवलोक का सा आभास देता है।महाकाल लोक के विकास के साथ ही परिसर की भव्यता में और भी अभिवृद्धि हुई है।