होली उमंग,उल्लास और मस्ती का पर्व है। इस त्यौहार की महिमा ही कुछ ऐसी है हर कोई अपनी दुश्वारियां भुलाकर इसकी मस्ती में खो जाना चाहता है। उल्लास के प्रकटीकरण का सबसे सटीक माध्यम हैं रंग, जिनके बिना होली की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली खेलने के लिए परंपरागत तरीकों से तैयार रंगों का स्थान अब केमिकल युक्त रंगों ने ले लिया है। बाजार में मिलने वाले केमिकल युक्त रंग मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं। लोग इसके दुष्परिणामों के बारे में जानते हुए भी अनजान बने रहते हैं,परिणामस्वरूप हर साल हजारों लोग इसके गंभीर परिणाम भुगतते है।
इसके पीछे प्रमुख कारण है केमिकल रंगों का सस्ता होना और उनकी सहज उपलब्धता। होना तो यह चाहिए कि केमिकल युक्त रंग बाजार में उपलब्ध ही ना हों, लेकिन फिलहाल यह हो पाना कई कारणों से संभव नहीं लगता।
फिर हल क्या हो? त्योहार तो मनाना है।
त्योहार का उमंग उल्लास और मस्ती भी बनी रहे,साथ ही मानव स्वास्थ्य को भी कोई खतरा ना हो इसके लिए जरुरी है परंपरागत प्राकृतिक रंगों को बढ़ावा देना।

सामाजिक संस्थाओं और महिला समूहों को प्रोत्साहित कर प्राकृतिक रंगों का भरपूर उत्पादन किया जा सकता है। इससे एक ओर तो लोगों को रोजगार मिलेगा दूसरी ओर त्योहार की मस्ती में विघ्न भी नहीं पड़ेगा।
ऐसा ही एक प्रयास किया है गुरुग्राम और दक्षिण दिल्ली जिले के कुछ महिला समूहों ने। 25-30 महिलाओं के समूह ने फूलों,पालक,चुकंदर,संतरा, हल्दी,अरारोट आदि का इस्तेमाल कर पांच क्विंटल से अधिक हर्बल रंग और गुलाल तैयार किया है। गुलाल को सुगंधित करने के लिए जैस्मिन तेल,चंदन और मुल्तानी मिट्टी जैसी चीजों का उपयोग किया गया है।
महिलाओं के इस प्रयास को बाजार से अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है।
दरअसल लोग तो चाहते हैं कि उन्हें अच्छे उत्पाद मिलें, लेकिन अनुपलब्धता की वजह से उन्हें बाज़ार में उपलब्ध उत्पादों का ही प्रयोग करना पड़ता है। आवश्यकता इस बात की है कि अधिक से अधिक स्वयंसेवी संगठन इसके लिए आगे आएं। केवल जागरुकता पैदा करने से समस्या हल नहीं होगी, स्थानीय स्तर पर इसके उत्पादन को भी प्रोत्साहित करना होगा।
एम.पी.शर्मा
आल स्किल एंड रिसर्च फाऊंडेशन
गुरुग्राम (हरियाणा)
98688 14492