जैसे-जैसे होली का त्यौहार नजदीक आता है,आदिवासी अंचल में भगोरिया हाट की रौनक और भी बढ़ती जाती है। आदिवासी बहुल आबादी वाले जिलों धार,झाबुआ,अलीराजपुर,बड़वानी आदि के भगोरिया मेलों में इसे सहज ही महसूस किया जा सकता है।
धार जिले के आदिवासी अंचल में भगोरिया हाट अब अपने अंतिम दौर में पहुंच चुके हैं। ऐसे में मौसम के साथ ही भगोरिया हाटों में भी गर्माहट बढ़ने लगी है।
बुधवार (12 मार्च)को क्षेत्र के ग्राम अराड़ा में भगोरिया हाट लगा। पड़ोसी जिले अलीराजपुर के कस्बे नानपुर से लगे विकासखंड डही के गांव अराड़ा में दो जिलों की संस्कृतियों का समावेश देखने को मिला। यहां के भगोरिया में अराड़ा सहित पलवट, खरवट, कोटबा, फिफेड़ा, कलमी, डिगवी, बलवानी, करजवानी, बोड़गांव, नलवान्या सहित पड़ोसी जिले के कस्बा नानपुर, सेजगांव, खरपई आदि गांवों से हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने शिरकत की।
यहां मांदल की थाप और कुर्राट की गूंज के साथ प्रसिद्ध पेय ताड़ी की मादकता में मस्त आदिवासी युवक-युवती और महिला-पुरुष जमकर थिरके। फाल्गुनी बयारों में बांसुरी की सुरीली तान व ढोल की थाप ने ऐसा समां बांधा कि हर कोई थिरकने लगा।
डही से 12 किलोमीटर दूर ग्राम अराड़ा का भगोरिया हाट पिछले कई सालों की तुलना में भव्य और अनूठा रहा।
भांति-भांति के चटख रंगों वाली वेशभूषा में जमा हुए समूहों की रौनक स्थानीय बाजार में भी नजर आई। युवक युवतियों ने बाजार में अपनी पसंदीदा चीजों की जमकर खरीदारी की।
भगोरिया हाट में उत्साहपूर्वक हिस्सा लेने आए आदिवासी समूहों ने घूमने-नाचने के साथ-साथ परंपरागत पेय ताड़ी का भी आनंद लिया।
यहां हर कोई अपनी कठिनाइयां भुलाकर उमंग,उल्लास और मस्ती में शराबोर नजर आया।
जनजातीय समाज में अपनी परंपराओं के प्रति गजब का लगाव है। रोजी-रोटी के चक्कर में उन्हें भले ही देश के अलग-अलग हिस्सों में जाना पड़ता हो,लेकिन होली होली मनाने वे जरूर अपने गांव आते हैं। भगोरिया हॉट उनके लिए सिर्फ मौज मस्ती का सबब नहीं, सामाजिक मेलजोल का भी प्रमुख अवसर है।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जनजातीय समाज भी धीरे-धीरे आधुनिक तौर- तरीके अपना रहा है, लेकिन अच्छी बात है कि वह अपनी परंपराओं और संस्कृति को भी बचा कर रखे हुए है।
भगोरिया हॉट के संबंध में प्रचलित तरह-तरह की किवदंतियों से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचने लगे हैं। परंपरागत वस्त्रों और आभूषणों के साथ-साथ अन्य सामग्री की दुकानें भी मेलों में सजने लगी हैं।
यह चकाचौंध कहीं भगोरिया हाट के मूल स्वरूप को प्रभावित न कर दे, यह ध्यान रखना होगा।
*प्रेमविजय पाटिल ,धार

आदिवासी संस्कृति और भगोरिया पर्व के संरक्षण पर आधारित यह बहुत उपयोगी लेख है।
यही पर क्यों मनाया जाता है, इस पर भी थोड़ा प्रकाश डालना चाहिए था l