होली जहाँ एक ओर एक सामाजिक एवं धार्मिक त्योहार है, वहीं यह रंगों का त्योहार भी है। आबाल-वृद्ध, नर-नारी-सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं । यह एक देशव्यापी त्योहार भी है । इसमें वर्ण अथवा जातिभेद को कोई स्थान नहीं है ।इस अवसर पर लकडियों तथा कंडों आदि का ढेर लगाकर होलिकापूजन किया जाता है फिर उसमें आग लगाई जाती है ।पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है –
‘असृक्पाभयसन्त्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव।।’
इस पर्व को नवान्नेष्टि पर्व भी कहा जाता है।खेत से नवीन अन्न को यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा भी है । उस अन्न को होला कहते हैं । इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा ।
होलिकोत्सव मनाने के सम्बन्ध में अनेक मत प्रचलित हैं।
ऐसी मान्यता है कि पर्व का सम्बन्ध ‘काम दहन’ से है। भगवान् शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था।तभी से इस त्योहार का प्रचलन हुआ।
यह त्योहार हिरण्यकशिपु की बहन की स्मृति में भी मनाया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि हिरण्यकशिपु की बहन होलिका वरदान के प्रभाव से नित्यप्रति अग्नि-स्नान करती और जलती नहीं थी। हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि-स्नान के लिए कहा । उसने समझा था कि ऐसा करने से प्रह्लाद जल जायेगा तथा होलिका बच निकलेगी ।
हिरण्यकशिपु की बहन ने ऐसा ही किया।होलिका तो जल गयी किन्तु प्रह्लाद बच गए। तभी से इस त्योहार के मनाने की प्रथा चल पडी ।
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमापर्यंत आठ दिन होलाष्टक मनाया जाता है।भारत के कई प्रदेशों में होलाष्टक शुरू होने पर एक पेड की शाखा काटकर उसमें रंग बिरंगे कपडों के टुकड़े बांधते हैं ।इस शाखा को जमीन में गाड दिया जाता है ।सभी लोग इसके नीचे होलिकोत्सव मनाते हैं ।
होली सम्मिलन, मित्रता एवं एकता का पर्व है । इस दिन द्वेषभाव भूलकर सब से प्रेम और भाईचारे से मिलना चाहिए। यही इस पर्व का मूल उद्देश्य एवं सन्देश है।
{कल्याण—व्रतपर्वोत्सव अंक से साभार}