वैसे तो मालवा-निमाड़ अंचल में धुलैंडी से अधिक रंगपंचमी पर होली खेली जाती है, लेकिन इंदौर की गैर ने अपनी भव्यता के चलते देशव्यापी ख्याति अर्जित की है।
रंग पंचमी पर इंदौर में निकलने वाली गेर दरअसल इस शहर का होली मनाने का अपना अनूठा तरीका है। पूरा शहर जैसे उमंग,उल्लास और रंगों में सराबोर हो उठता है। ऐसा लगता है जैसे सारा शहर ही होली खेलने के लिए सड़कों पर उतर आया हो।
ब्रज की लठमार होली की तरह ही इंदौरी गेर की ख्याति अब पूरे देश में फैल चुकी है। समय के साथ-साथ तौर तरीके भी बदल रहे हैं। पहले रंगों से भरे बड़े-बड़े कड़ाहों में लोगों को डुबोया जाता था, अब इसके साथ-साथ बड़े-बड़े टैंकरों से भी रंगों की बौछार की जाती है। पहले जुलूस में शामिल लोग ही रंगे जाते थे,अब बहुमंजिली इमारतों पर खड़े दर्शक भी रंगों से नहीं बच पाते। बड़े-बड़े टैंकरों में लगे मोटर पंपों से निकलते रंगीन फव्वारे उन्हें भी रंग देते हैं।
इतना रंग-गुलाल उड़ता है कि आसमान सतरंगी हो उठता है।
रंगे-पुते चेहरों को पहचानना मुश्किल हो जाता है। सब एक जैसे नज़र आते हैं। रंगों में सराबोर चेहरों की आखिर पृथक-पृथक पहचान हो भी कैसे सकती है?
यही तो संदेश है होली का। कोई गैर बराबरी नहीं। कोई भेदभाव नहीं। बस उमंग,उल्लास और समरसता।
स्थानीय लोगों का कहना है कि गेर की यह परंपरा होलकर राजवंश के समय प्रारंभ हुई थी। राजवंश का शासन समाप्त होने के उपरांत यह एक लोक पर्व बन गया। अब नगर निगम सहित शहर की अनेक सामाजिक संस्थाएं पूरे उत्साह के साथ गेर निकालती हैं।
शहर के अलग-अलग हिस्सों से गेर शोभा यात्राएं प्रारंभ होती हैं जो विभिन्न मार्गों पर धूम मचाती हुई शहर के हृदय स्थल राजवाड़ा पर एकत्रित होती जाती हैं।
राजवाड़ा ही वह स्थान है जहां गेर की भव्यता अपने चरमोत्कर्ष पर होती है,जो इसे विशिष्ट और यादगार बनाती है।
इंदौर की गेर अब केवल इंदौरियों तक ही सीमित नहीं रही, इसके प्रत्यक्षदर्शी बनने के लिए अब देश के विभिन्न प्रांतो के ही नहीं,एनआरआई भी बड़ी संख्या में आने लगे हैं। यह एक ऐसे लोकपर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है,जो इंदौर की पहचान है।
किसी भी शहर की प्रसिद्धि के पीछे प्रमुख कारक होता है वहां के नागरिकों का अपने शहर के प्रति लगाव। अपने शहर की परंपराओं का वाहक बनने की इच्छा शक्ति,और तदनुरूप व्यवहार। इंदौरी इस मामले में सजग हैं।
इंदौरियों का जो लगाव अपने शहर के साथ है उसकी जितनी प्रशंसा की जाए,कम है। यही लगाव शहर को लगातार देश का सबसे स्वच्छ शहर बनाए हुए है। यही लगाव यहां के खान-पान को स्वादिष्ट बनाता है,और इसी लगाव के चलते ‘गेर’ को विश्वव्यापी प्रसिद्धि मिली है।
और भी अच्छा होगा जब इंदौर की गेर को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा की गई पहल सफल होगी।
