अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण उज्जैन अत्यंत प्राचीन काल से काल गणना का केंद्र रहा है। लगभग 300 वर्ष पूर्व इसे व्यवस्थित स्वरूप दिया जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने,जो उज्जैन के प्रशासक नियुक्त किए गए थे।
सवाई जयसिंह कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ विद्यानुरागी भी थे। दिल्ली,जयपुर,मथुरा,वाराणसी और उज्जैन में उनके द्वारा स्थापित वेधशालाएं, खगोल विद्या के प्रति उनके विशेष लगाव को प्रदर्शित करती हैं।
कर्क रेखा पर स्थित होने के कारण उज्जयिनी और यहां स्थापित वेधशाला का काल गणना के लिए विशेष महत्व रहा है।
जंतर- मंतर के नाम से विख्यात वेधशाला में सम्राट यंत्र,नाड़ी वलय यंत्र,दिगंश यंत्र ,भित्ति यंत्र एवं शंकु यंत्र बने हुए हैं। इन यंत्रों के माध्यम से ज्योतिषीय एवं खगोलीय गणनाएं की जाती रही हैं।
भारतीय ज्ञान परंपरा के संक्रमण काल में लंबे समय तक यह वेधशाला उपेक्षित रही। 1923 में सिंधिया शासन काल के दौरान इसका पुनरुद्धार किया गया।
उज्जयनी को ‘अनादि नगरी’ कहा गया है। उज्जैन के बारे में यह भी विख्यात है कि यह नगरी प्रत्येक कल्प में अपना स्वरूप बदलती रही है, इसीलिए इसका एक नाम ‘प्रतिकल्पा’ भी है।
अपने नाम को सार्थक करते हुए यह पौराणिक नगरी एक बार फिर अपने आपको सजा-संवार रही है।
विगत कुछ वर्षों में उज्जैन में उल्लेखनीय विकास कार्य हुए हैं। रेखांकित किए जाने योग्य तथ्य यह है कि समृद्ध ज्ञान विरासत को केंद्र में रखते हुए ही विकास के नए आयाम गढ़े जा रहे हैं।
विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की स्थापना इसी दिशा में किया गया एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है,जिसे जीवाजी वेधशाला के समीप लगभग 85 फीट ऊंचे टावर में स्थापित किया गया है।
परंपरा और आधुनिकता में सामंजस्य स्थापित करते हुए वैदिक घड़ी का स्वरूप डिजिटल रखा गया है। घड़ी में ग्रीनविच मीन टाइम, इंडियन स्टैंडर्ड टाइम और परंपरागत पंचांग के एक साथ देखे जा सकते हैं।
इसे भारतीय काल गणना का पुनरस्थापन भी कहा जा सकता है।
वैदिक गणनाओं पर केंद्रित यह विश्व की पहली घड़ी है,जो विक्रम संवत,तिथि,वार,नक्षत्र,योग,करण,
सूर्योदय,सूर्यास्त, ग्रहों की स्थिति और पंचांग से संबंधित समस्त जानकारियां प्रदान करेगी।
भद्रा स्थिति,विभिन्न योग,चंद्र स्थिति,पर्व,शुभाशुभ मुहूर्त, घटी,जयंती,व्रत त्यौहार,चौघड़िया,सूर्य ग्रहण,चंद्र ग्रहण,आकाशीय ग्रह नक्षत्रों का परिभ्रमण आदि जानकारियां भी वैदिक घड़ी के माध्यम से मिल सकेंगी।
काल गणना के लिए डोंगला (जिला उज्जैन) स्थित वेधशाला को आधार बनाया गया है।
विक्रमादित्य वैदिक घड़ी के ग्राफिक्स में समस्त ज्योतिर्लिंग, नवग्रह,नक्षत्र आदि जोड़कर इसे और भी विशिष्ट बनाया गया है।
वैदिक घड़ी जहां एक ओर भारत की समृद्ध वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विरासत की प्रतीक है वहीं दूसरी ओर
विकसित होते भारत की तस्वीर भी प्रदर्शित करती है।
परंपरा और आधुनिकता का सुंदर मेल है विक्रमादित्य वैदिक घड़ी।
लोग सहजता से इसका प्रयोग कर सकें इसलिए एक मोबाइल एप भी विकसित किया गया है, जिसके माध्यम से तमाम जानकारियां अपने मोबाइल पर ही प्राप्त की जा सकती हैं।
