चंपारण सत्याग्रह,जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की धारा बदल दी…

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बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी द्वारा दक्षिण अफ्रीका में किए गए सत्याग्रह की कीर्ति भारत में फैल चुकी थी। अभी उनको भारत लौटे दूसरा ही साल था। उन्हें चंपारण के किसानों की पीड़ा का पता चला। माध्यम बने चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ल। राजकुमार ने गांधी जी से मिलकर उन्हें किसानों की पीड़ा से अवगत कराया। रेल के तीसरे दर्जे के डिब्बे में बैठकर गांधी जी 10 अप्रैल 1917 को चंपारण पहुंचे और किसानो की दुर्दशा से रूबरू हुए।
इसके बाद चंपारण में जो कुछ घटा उसने भारत में गांधी युग की नींव रख दी। दुनिया पहली बार सत्य और अहिंसा की शक्ति से वाक़िफ हुई। दुनिया को पहली बार सत्याग्रह जैसा अमोघ अस्त्र मिला। और गांधी के रूप में देश को मिला एक ऐसा नेतृत्व,जिसने स्वतंत्रता आन्दोलन की धारा ही बदल कर रख दी। आजादी की लड़ाई का यह पहला अहिंसक आंदोलन था जिसने ब्रिटिश सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया।
चंपारण में ‘तीन कठिया प्रथा’ को लेकर किसान बहुत परेशान थे। वह अपनी ही जमीन के 3/20 हिस्से में नील की खेती करने के लिए बाध्य थे। इतना ही नहीं किसानों से तरह-तरह के अन्य कर भी बर्बरता पूर्वक वसूले जा रहे थे।
गांधी जी ने किसानों की इस पीड़ा को निकट से देखा। इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि बटा हुआ समाज प्रतिकार की स्थिति में नहीं है।
सबसे पहली आवश्यकता लोगों में यह आत्मविश्वास पैदा करने की थी कि संगठित प्रतिकार के माध्यम से अन्याय का सामना किया जा सकता है। ज़ोर-जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई जा सकती है।
वही गांधी जी ने किया।
भारतीय स्वातंत्र्य समर में गांधी जी की का सबसे बड़ा योगदान यदि कोई है तो यही कि उन्होंने एक अजेय साम्राज्य के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने का आत्मविश्वास जनमानस में पुनर्जीवित कर दिया।
सैकड़ो वर्षों से गुलामी झेल रहा समाज अपना आत्मविश्वास खो चुका था। गांधी जी ने उसे ना केवल जगाया, सत्याग्रह का एक ऐसा अनूठा प्रादर्श दुनिया के सामने रखा, विश्व इतिहास में जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती ।
गांधी के आगमन से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा मिली और इसका प्रस्थान बिंदु बना चंपारण।
आम लोगों को संगठित कर सत्याग्रह और प्रतिकार का एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ और देखते ही देखते इसने व्यापक जनान्दोलन का स्वरूप धारण कर लिया।
समाज के हर तबके को साथ लेकर प्रतिकार की यह पहल भारतीयों के लिए तो अनूठी थी ही, अंग्रेजी सरकार के लिए भी हतप्रभ करने वाली थी।
अंग्रेजी सरकार ने धारा 144 के तहत शांति भंग करने का नोटिस गांधी जी को भेजा,लेकिन गांधी जी के कदम आगे बढ़ चुके थे। इस तरह के नोटिसों से विचलित होना गांधी के स्वभाव में नहीं था।

गांधी की लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ती जा रही थी। उनके प्रति लोगों का समर्थन भी बढ़ रहा था। तत्कालीन समाचार पत्र इस अनूठे आंदोलन की खबरों से भरे पड़े थे।
परिणाम यह हुआ कि ब्रिटिश सरकार को इस शांतिपूर्ण सत्याग्रह का दमन करना कठिन प्रतीत होने लगा।
अंततः ब्रिटिश सरकार को वार्ता के लिए बाध्य होना पड़ा। किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए एक समिति गठित की गई। गांधी जी भी इस समिति के सदस्य थे।
समिति की अनुशंसाओं के आधार पर तीन कठिया प्रथा समाप्त कर दी गई। किसानों से वसूले जाने वाले लगान में कमी की गई और उन्हें मुआवजा भी दिया गया।
भारत में सत्याग्रह का यह पहला सफल प्रयोग था।
चंपारण सत्याग्रह ने ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को यह राह दिखाई कि सिर्फ राजनीतिक आजादी ही नहीं,सामाजिक बुराइयों से आजादी भी जरूरी है। अस्पृश्यता और अशिक्षा जैसी बुराइयों के रहते वास्तविक स्वराज का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। ‘हिंद स्वराज’ और ‘रामराज्य’ की संकल्पना को साकार नहीं किया जा सकता।
गांधी जी लगभग 10 माह चंपारण में रुके।
इतिहास साक्षी है,चंपारण सत्याग्रह के बाद गांधी के कदम रुके नहीं।
उन्होंने अपने आंदोलनों के माध्यम से देश भर में ऐसे कार्यकर्ताओं को खड़ा किया जो राजनीतिक आज़ादी के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों और विषमताओं से भी देश को आज़ादी दिला सकें।
गांधी जी ने जिन प्रतीकों के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन को धार दी, वह विश्व इतिहास में अनूठा उदाहरण हैं।
गांधी जी की पहली प्रयोगशाला और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतीक के रूप में चंपारण सत्याग्रह एक युगांतरकारी घटना है।
जब-जब भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की चर्चा होगी, चंपारण सत्याग्रह का उल्लेख प्रमुखता के साथ किया जाएगा।

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