समानता की बात करते करते कहां निकली जा रही हैं स्त्रियां…

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डॉ राममनोहर लोहिया की सप्तक्रांति में सात प्रकार के भेदभाव मिटाने की बात की गई है। जिसमें सर्वप्रमुख है,समाज में नर-नारी के बीच व्याप्त भेदभाव।
स्त्री-पुरुष समानता पर विचार करने और उसे व्यवहारिक स्वरुप में लाने के लिए लंबे समय तक लड़ाईयां लड़ी गई हैं। फिर भी अभी संघर्ष समाप्त नहीं हुआ। घरेलू हिंसा, शिक्षा,अवसरों की कमीं, असमान वेतन,असमान व्यवहार …स्त्री देह सब जगह भेदभाव सहती आईं हैं। परन्तु स्त्रियों ने कभी हिम्मत नहीं हारी। ना ही दौड़ में आगे निकलने की चाह रखी। बस वे यही चाहती रहीं कि उन्हें मनुष्य समझा जाए।

मैं कैसे भूल जाऊं कि मुझसे पहले तक की पीढ़ियों की स्त्रियों ने क्या क्या नहीं सहा? बल्कि कुछ तो अब तक भी सह ही रही हैं, चाहे घर के भीतर हों या बाहर।सभी ने भेदभाव के कारण सुनहरे सपनों पर मिट्टी डाली। वे क्या नहीं हो सकतीं थीं, पर अवसर नहीं दिया गया। बीज बनकर इस आस में दब गईं कि कभी तो वह बीज विशाल वृक्ष बनेगा। जिसकी छांव सभी स्वीकार करेंगे।

यह संघर्ष लंबे समय से चल रहा है,और आगे भी चलता रहेगा। इसी बीच पिछले कुछ महीनों में मीडिया, सोशल मीडिया में लड़कियों/महिलाओं द्वारा अपने पतियों और परिजनों के साथ मारपीट और आत्महत्या के लिये उकसाने की बहुत सी घटनाएं सामने आई हैं । रोजाना ही कहीं न कहीं यह सब दोहराया जा रहा है। उससे यह तो साफ है कि यह सब मानसिक विकृति है,जो किसी की भी हो सकती है, स्त्री हो या पुरुष।
हाल ही में घटित इन घटनाओं में हत्या करने के लिये जिस तरह के तरीके अख्तियार किए गए, वह इतने वीभत्स हैं,जो किसी भी रुप में स्वीकारने योग्य नहीं।
फिर उन घटनाओं के बाद जिस तरह से मीडिया उनको प्रस्तुत करता है,उनपर घटिया मीम्स बनाए जाते हैं, जोक्स बनाये जाते हैं, कार्टून बनाए जाते हैं, उनसे सिर शर्म से झुक जाता है।

अतुल सुभाष , पुनीत खुराना ,सौरभ, दीपक, मानव शर्मा और ऐसे अनगिनत नाम हैं जो आत्महत्या करने को विवश हो गये या जिनकी हत्या कर दी गई। इन अपराधों में लिप्त चेहरों को देखकर सहज विश्वास नहीं होता कि वह ऐसा भी कर सकती हैं।
परिवार के बुजुर्ग परिजनों के साथ मारपीट के मामले भी खूब सुनाई दे रहे हैं।
इन सामाजिक अपराधों पर किसी को भी क्रोध आ सकता है।

इन घटनाओं में लिप्त स्त्रियां आखिर किस बराबरी की बात कर रही हैं? संभवतः किसी बराबरी की नहीं। कहने की आवश्यकता नहीं कि महत्वाकांक्षाओं ने इतना विकराल रुप ले लिया है जिनकी पूर्ति संभव नहीं। गैर व्यवहारिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति न हो पाने की दशा में कुंठित महिलाएं ऐसे अपराधों को अंजाम दे रही हैं,जो अविश्वसनीय है।

प्रकृति ने स्त्री को वह साहस और क्षमता दी है कि वह अपने अंदर एक और जीवन सृजित कर सकती है,जन्म दे सकती है,किंतु उसे इतना निर्दयी नहीं बनाया कि वह किसी की जान ले सके।
मैं महिलाओं की पक्षधर हूं, फेमिनिस्ट हूं,फिर भी मेरा मन इन अपराधों को किसी भी सूरत में स्वीकार करने को राजी नहीं है।
अगर साथी या परिजनों के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं, मतभेद हैं,तो अलग हुआ जा सकता है। आपसी सहमति और संवाद से संबंध सुधारे भी जा सकते हैं।

एक तरफ हैं, साधारण और मेहनतकश स्त्रियां, खेतों में काम करने वाली स्त्रियां, सड़कों पर सफाई करती और मजदूर स्त्रियां, जो मेहनत करके अपना और अपने परिवार का जीवन सुखमय बनाने की कोशिश करती हैं।उन्हें किसी से कोई अपेक्षा नहीं है,अपनी मेहनत पर भरोसा है।

दूसरी ओर है, चांद और मंगल ग्रह पर सैटेलाइट भेजने वाली स्त्रियां, सुनीता विलियम्स जैसी स्त्रियां जो नित नये आयाम रच रही हैं।जो अपना,अपने परिवार का और देश का नाम गौरवान्वित कर रही हैं। इनके लिये रिश्ते भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितना कैरियर और सार्वजनिक जीवन।

समाज को बहाना चाहिए स्त्रियों के खिलाफ खड़े होने का। इस तरह की घटनाएं स्त्रियों की समानता और स्वतंत्रता को बाधित ही करेंगी। अपराधों में लिप्तता के उदाहरण देकर स्त्री स्वतंत्रता के विरोधी पता नहीं कितने प्रतिबंधों की वकालत करेंगे।

मैं सदैव स्त्री पक्षधर हूं,पर मनुष्यता से परे नहीं…..

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