नागरिक बनाते हैं शहर को स्वच्छ और सुंदर…

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क्या आप लोग इंदौर से आए हैं ? यह प्रश्न था नगर निगम भोपाल के उस स्वच्छता निरीक्षक का जो हमारे घर में रसोई अपशिष्ट (फलों,सब्जियों के छिलके,पत्ते डंठल,चाय पत्ती आदि) से खाद बनाने की सूचना प्राप्त होने पर अवलोकन करने के लिए आया था।
उसने बताया कि पूरे वार्ड में सिर्फ हमारे घर में ही इस तरह से खाद बनाई जा रही है, जबकि इंदौर में यह आम बात है।
उसने बड़ी सहजता से अपनी जिज्ञासा प्रकट की थी। उसे शायद यह भान नहीं था कि उसकी जिज्ञासा स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर के लगातार शीर्ष पर बने रहने के पीछे निहित मूल कारण की ओर इशारा कर रही है।

किसी भी शहर को स्वच्छ और सुंदर बनाते हैं वहां के नागरिक। नागरिकों का अपने शहर से लगाव और अपने शहर के साथ बर्ताव। इंदौर को लगातार देश का सबसे स्वच्छ शहर बनाए रखने में वहां के रहवासियों का बहुत बड़ा योगदान है। यहां के रहवासियों में अपने शहर के प्रति अपनतत्व का जो भाव है,वह अनूठा है। इसी भाव ने इंदौर को इंदौर बनाया है।

एक उदाहरण से इसे भलीभांति समझा जा सकता है। मालवांचल में भाद्रपद माह ,कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को गोगा नवमी पर्व मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से वाल्मीकि समाज के लोग मनाते हैं। इंदौर में समाज के लोगो के लिए इस दिन अवकाश रहता है। एक प्रतिष्ठित स्वयंसेवी संस्थान में कार्यरत मुकेश प्रसन्न बताते हैं कि इस दिन शहर में सफाई की जिम्मेदारी इंदौर के नागरिक निभाते हैं। कई वर्षों से ऐसा हो रहा है और अब यह एक परंपरा है।

यहां पर यदि इंदौर के राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासनिक मशीनरी के योगदान का उल्लेख ना किया जाए तो उनके साथ अन्याय होगा।
इस शहर का सौभाग्य रहा कि इसे हमेशा स्थानीय नेतृत्व मिला। ऐसा नेतृत्व जो शहर को अपना मानता है। सत्ता किसी भी दल की रही हो, स्थानीय नेतृत्व की प्राथमिकता हमेशा इंदौर के विकास की रही।
एक अन्य दृष्टि से भी नेतृत्व की सराहना बनती है। शहर को स्वच्छ और सुंदर बनाने के दौरान कुछ अप्रिय निर्णय भी लिए जाते हैं जो निहित स्वार्थी तत्वों को पसंद नहीं आते। जब-जब भी ऐसे अवसर आए, नेतृत्व की ओर से प्रायः कोई व्यवधान नहीं डाला गया, बल्कि प्रशासनिक मशीनरी का यथासंभव समर्थन ही किया गया। हर छोटे बड़े काम को वोटों के नफा-नुकसान से तौलने वाले इस दौर में यह कोई कम योगदान नहीं है।

जहां तक प्रशासनिक मशीनरी की बात है,तो यह इंदौर शहर की तासीर है जो हर आगंतुक को अपने रंग में रंग लेती है। प्रशासनिक अधिकारी इससे अछूते कैसे रह सकते हैं? बल्कि उच्च प्रशासनिक हल्कों में तो यह भी कहा जाता है कि सेवाकाल के दौरान यदि इंदौर पदस्थापना नहीं मिली, तो कुछ अधूरापन रह गया।

यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि इंदौरियत का यह गुणगान केवल स्वच्छता में असाधारण उपलब्धियों के परिपेक्ष्य में किया जा रहा है।

अब भोपाल की चर्चा की कर ली जाए।
एक ऐसा शहर जो प्राकृतिक रूप से सुंदर है। प्रकृति ने बड़ी उदारता के साथ इसे संवारा है। ताल-तलैयों और शैल-शिखरियों की नगरी के रूप में विख्यात भोपाल का प्राकृतिक सौंदर्य सहज ही आकर्षित कर लेता है। सिर्फ हमें-आपको नहीं बल्कि हजारों किलोमीटर दूर के उन पंछियों को भी,जो हर साल इसकी वादियों में कुछ वक्त बिताने के लिए चले आते हैं।
शहर के आसपास और बीच से गुजरने वाली छोटी-मझोली नदियां जब बरसात के दिनों में
अठखेलियां करती हैं,तब नज़ारा देखने लायक होता है।
इतना ही नहीं,भोपाल देश की इकलौती ऐसी राजधानी है, जिसके नजदीक बाघ अभयारण्य है। यह अभयारण्य सागौन सहित अनेक प्रजातियों के वृक्षों और तरह-तरह के जंगली जानवरों से समृद्ध है।
शहर प्रकृति के इतने नज़दीक है कि कब शहर जंगल में चला जाता है और जंगल शहर में आ जाता है,पता ही नहीं चलता।

यदि प्रकृति द्वारा भोपाल को बक्शी इस नेमत को ही संरक्षित कर लिया जाए,तो भोपाल को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए किसी अन्य अभियान की आवश्यकता ही ना पड़े।
मगर यहां तो सारा निजाम शहर को झुग्गियों से पाटने में लगा हुआ है। जिम्मेदारों में जैसे होड़ मची है कि कौन अधिक से अधिक झुग्गी बस्तियां बसा सकता है। कौन झुग्गी वालों का बड़ा मसीहा है।
शहर में हर उस महत्वपूर्ण जगह पर झुग्गी बस्तियां मौजूद हैं, जहां राजधानी की प्रतिष्ठा और आवश्यकता के अनुरूप भव्य निर्माण हो सकते थे।
जैसे तैसे झुग्गी विस्थापन की कोई योजना आकार लेती है, जिम्मेदार लोग फच्चर लगा देते हैं।

दूसरी समस्या शहर में स्वच्छंद विचरण कर रहे जानवरों की है। सालों गुजर गए दूध डेरियों को शहर से बाहर करने की चर्चा चलते हुए। बात चर्चा से आगे बढ़ती ही नहीं है।

रही सही कसर भोपालियों की पीक मारने की आदत पूरी कर देती है।
इसके बाद भी स्वच्छता इंडेक्स में भोपाल को कोई तमगा मिलना चमत्कार ही माना जाएगा।

इंदौर की स्वच्छता और सुंदरता के लिए लोग ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के जैसे आयोजनों को भी श्रेय देते हैं, जिनके चलते बड़े पैमाने पर इंदौर शहर का सौंदर्यीकरण किया गया।
अब भोपाल को भी शिकायत नहीं होनी चाहिए। विगत फरवरी में यहां पहली बार जी आई एस जैसा वृहद आयोजन किया गया,और लगभग 200 करोड़ रुपए शहर के सौंदर्यीरण पर खर्च हुए।

बात घूम फिरकर वहीं पहुंचती है कि शासकीय मशीनरी किसी इवेंट के लिए एक बार तो सौंदर्यीकरण कर सकती है, लेकिन उसकी साज संभाल में यदि स्थानीय नागरिकों की कोई दिलचस्पी न हो तो उसका सुरक्षित रह पाना संभव नहीं है।
फिलहाल ऐसे आसार तो नज़र नहीं आते कि स्थानीय नागरिक ऐसी कोई पहल करेंगे।

भोपाल से पूरे प्रदेश का प्रशासन चलता है। पूरा मंत्रिमंडल और विभाग प्रमुख यहां निवास करते हैं। कायदे से भोपाल को देश का सुंदरतम शहर बनाने के मार्ग में कोई बाधा आनी तो नहीं चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। क्यों नहीं हो पा रहा है, यह एक खुला रहस्य है।

हम उम्मीद ही कर सकते हैं कि शायद भोपाल के रहवासी अपने शहर से वैसी ही मोहब्बत करने लगें, जैसी इंदौर के लोग अपने शहर से करते हैं।

इक्का-दुक्का सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठन इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं,लेकिन व्यापक जनसहभागिता के बगैर सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकेंगे,इसमें संदेह है।
जब तक नागरिकों, राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासनिक मशीनरी में शहर के प्रति अपनेपन का भाव पैदा नहीं होगा, तब तक प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य से ही भोपाल को संतोष करना होगा।

वर्तमान हालात में तो यह दूर की कौड़ी लगती है, वरना भोपाल नगर निगम का स्वच्छता निरीक्षक घर में खाद बनाने के एक सामान्य से काम को देखकर यह क्यों पूछता – क्या आप लोग इंदौर से आए हैं?

*अरविन्द श्रीधर

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