भूदान यज्ञ : एक अनूठी क्रांति

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वह 18 अप्रैल 1951 का दिन था जब तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव के दलितों ने विनोबा भावे के समक्ष यह याचना की – यदि उन्हें थोड़ी जमीन मिल जाए तो वह मेहनत करके अपने परिवारों की गुजर-बसर कर सकेंगे।
लेकिन उन्हें देने के लिए जमीन आएगी कहां से? यह बड़ा प्रश्न था। क्या बड़े किसान और जमींदार कुछ मदद कर सकते हैं?
विनोबा जी ने उपस्थित गांव वालों को टटोला। यह बिनोबा जी के व्यक्तित्व का करिश्मा था कि अनेक बड़े किसान इस नेक काम में सहयोग करने के लिए सहज ही तैयार हो गए।
देखते ही देखते भूदान का एक ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जो इतिहास में ‘भूदान यज्ञ’ के नाम से दर्ज है।
जिस काम से ‘दरिद्रनारायण’ तृप्त और प्रसन्न हों, उसे यज्ञ ही तो कहेंगे!
पोचमपल्ली से प्रारंभ हुई यह अनोखी शांतिपूर्ण क्रांति शीघ्र ही पूरे देश में फैल गयी। एक ऐसी क्रांति, इतिहास में जिसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती।

भूदान यज्ञ आंदोलन के सिलसिले में विनोबा भावे ने देश भर में पदयात्राएं कीं। इस दौरान उन्हें लगभग 44 लाख एकड़ भूमि दान में प्राप्त हुई, जिसे 13 लाख भूमिहीन मजदूरों में वितरित किया गया।

महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी विनोबा भावे का भूदान यज्ञ आंदोलन हर दृष्टिकोण से आधुनिक भारत के इतिहास की विशिष्ट घटना है.

15 अगस्त 1947 को देश राजनीतिक रूप से तो आज़ाद हो गया, लेकिन उसका लाभ शोषितों-वंचितों तक पहुंचना बाकी था। एक ओर तो बड़े-बड़े जमींदार थे,जिनके पास हजारों एकड़ जमीनें थीं। दूसरी ओर एक तबका ऐसा था,जिसकी दशा गुलामों से भी बदतर थी।
इस विषमता को पाटना आसान काम नहीं था।

बिनोबा जी का मानना था कि भूमि का मालिक सिर्फ ईश्वर हो सकता है – “सबै भूमि गोपाल की : नहीं किसी की मालिकी।।”
व्यक्ति तो उसका व्यवस्थापक मात्र है।अतः बड़े-बड़े जमींदारों और भूमिधारियों को स्वेच्छा से अपनी कुछ भूमि मेहनतकश भूमिहीन श्रमिक वर्ग को दान कर देनी चाहिए, जिससे वह भी जीविकोपार्जन कर सकें।

दरअसल,यह सिर्फ भूदान यज्ञ नहीं था,अपितु सर्वोदय आंदोलन था जिसके साथ सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति, स्वच्छता के लिए श्रमदान, अस्पृश्यता निवारण, स्वदेशी को प्रोत्साहन एवं आत्मनिर्भरता जैसी गतिविधियों को भी प्रमुखता जोड़ा गया था।

महाकोशल में सर्वोदय आंदोलन…

महाकोशल अंचल के लोगों ने हर राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया है। भूदान यज्ञ एवं सर्वोदय आंदोलन का भी यहां अच्छा खासा प्रभाव पड़ा।

अंचल में भूदान यज्ञ एवं सर्वोदय आंदोलन की गतिविधियों का केंद्र बिंदु बना नरसिंहपुर जिला।

जिले के बड़े नेताओं ने गांधी जी के आव्हान पर सक्रिय राजनीति छोड़कर स्वदेशी एवं खादी के काम में लगे प्रखर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. सुंदरलाल श्रीधर को महाकोशल अंचल में सर्वोदय आंदोलन के समन्वय का दायित्व सौंपा।
गांव गांव में पदयात्राएं आयोजित की गईं और सर्वोदय का संदेश महाकोशल की फिजाओं में तैरने लगा।

1951 के सितम्बर माह में विनोबा जी ने नरसिंहपुर, करेली एवं बरमान में आयोजित वृहद कार्यक्रमों में भाग लिया,जिससे क्षेत्र में भूदान यज्ञ एवं सर्वोदय आंदोलन को और भी बल प्राप्त हुआ।

1951 से लगाकर 1956 तक भूदान यज्ञ एवं सर्वोदय पर केंद्रित अनेक वृहद कार्यक्रम जिले के छोटे लेकिन अत्यंत जागरूक ग्राम बोहानी में आयोजित किए गए, जिनमें विनोबा भावे के अलावा संत तुकड़ोजी महाराज, श्री दादाभाई नायक, श्री सिद्धराज ढड्ढा, ठाकुर प्यारेलाल जी, श्री वल्लभ स्वामी, श्री आर के पाटिल, पंडित भवानी प्रसाद तिवारी, बाबू गोविंद दास जी जैसे महापुरुषों का सानिध्य क्षेत्र की जनता को मिला।

(जून 1953 में सेठ गोविंद दास और सर्वोदयी नेता प्रो. बंग के नेतृत्व में भू-दान टोली ने नरसिंहपुर जिले में सघन अभियान चलाया था। मंच पर भूदान समिति नरसिंहपुर के संयोजक श्री सुंदरलाल श्रीधर (दाएं से दूसरे) दृष्टव्य हैं।)

आज की पीढ़ी के लिए यह विश्वास करना मुश्किल होगा कि एक फकीर के आव्हान पर कोई जमींदार अपनी सैकड़ो एकड़ जमीन दान कर सकता है।
आज की पीढ़ी तो शायद विनोबा भावे के नाम से भी अनभिज्ञ होगी।

18 अप्रैल को हम भूदान यज्ञ के अमृत महोत्सव वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। यह अवसर है जब हम “भू-दान” यज्ञ जैसी अनूठी क्रांति और उसके प्रणेता के बारे में युवा पीढ़ी को बता सकते हैं।

*अरविन्द श्रीधर

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