पुलिस पर हमले…शुभ संकेत नहीं है…

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विगत कुछ महीनो में अपराधियों द्वारा पुलिस पर हमले की अनेक घटनाएं सामने आई हैं। यह घटनाएं प्रदर्शित करती हैं कि अपराधियों में पुलिस का खौफ ख़त्म होता जा रहा है। यह खतरनाक संकेत है,जो ना तो पुलिस के लिए शुभ है और ना ही समाज के लिए।

विगत कुछ माहों में मुरैना,छतरपुर,राजगढ़,मऊगंज,
दमोह, शहडोल, सागर,इंदौर आदि जिलों में पुलिस
कर्मियों अथवा थानों पर हमले की अनेक घटनाएं हुई हैं।
हमले की ताज़ा ख़बर राजधानी भोपाल से आई है, जहां रानी कमलापति रेलवे स्टेशन एवं निशातपुरा थाने के पुलिसकर्मियों पर बेखौफ अपराधियों ने हमला किया है।
हमले अपराधियों को गिरफ्तार करने,वारंट तामील कराने, तलाशी लेने, रेत माफिया के वाहनों को रोकने एवं वाहनों की चेकिंग जैसे रूटीन कार्यों के दौरान किए गए हैं, जो और भी चिंताजनक है।
थाने पर हमले के पीछे,पकड़े गए अपराधियों के समर्थकों द्वारा भीड़ को उकसाने की बात सामने आई है।
इन घटनाओं के दो संकेत बिल्कुल साफ हैं। एक तो यह कि अपराधियों में पुलिस का खौफ नहीं बचा है। दूसरा यह कि कहीं ना कहीं पुलिस ने अपना वह रसूख खो दिया है, जो पुलिस व्यवस्था की जान हुआ करता था।

इसकी जितनी जवाबदारी पुलिस की है उससे कहीं अधिक उन जिम्मेदार लोगों की है जो अपने निहित स्वार्थों के चलते पुलिस को स्वतंत्रता पूर्वक काम नहीं करने देते। अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए जरा-जरा सी बात पर पुलिस पर दबाव बनाना, अपराधियों को संरक्षण देना अथवा जांच को अपने अनुकूल करवाना आम बात है।
इसके बदले में पुलिस को अपने आकाओं का संरक्षण प्राप्त होता है। पुलिस से जब भी कोई भूल-चूक होती है, यही संरक्षण उनकी ढाल बनता है।

इसका मतलब यह नहीं है कि पुलिस एकदम मासूम है और कुछ भी गलत नहीं करती।
यह एक खुला रहस्य है कि अपने इलाके के हर अपराधी की कुंडली पुलिस के पास होती है,लेकिन वह तब तक कार्यवाही नहीं करती जब तक कि कोई अप्रिय घटना घटित ना हो जाए अथवा कार्यवाही करने के लिए उसे मजबूर ना कर दिया जाए।

पुलिस थानों में आम आदमी के साथ कैसा व्यवहार होता है,और वीआईपी आरोपियों की कैसी आवभगत होती है,आए दिन इसको लेकर सुर्खियां बनती रहती हैं।

अपने राजनीतिक आकाओं की जी हुजूरी में संलग्न पुलिस कर्मियों से निष्पक्ष और त्वरित कार्यवाही की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

फिर यह उम्मीद भी कैसे की जा सकती है कि पुलिस का रसूख कायम रहे और नागरिक उसका सम्मान करें?

एक ओर तो अपराधियों के मन से पुलिस का खौफ दूर होता जा रहा है,दूसरी ओर आम नागरिकों में पुलिस की नकारात्मक छवि प्रगाढ़ होती जा रही है।

यह स्थिति कानून के शासन की अवधारणा को कमजोर बनाने वाली है। जितनी जल्दी इसे सुधारा जाएगा, समाज के लिए उतना ही बेहतर होगा।

इसके पहले कि समाज में अराजकता अपने चरम पर पहुंचे,जिम्मेदार लोगों को ज़रूरी कदम उठा लेना चाहिए।

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