संग्रहालय मानवता के भूत-वर्तमान-भविष्यके संदर्भ सेतु की भूमिका निभाते हैं : विजय दत्त श्रीधर

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ऐसा परिसर जहाँ प्रवेश करते ही रहस्य-रोमांच के वातावरण की प्रतीति होने लगती है। जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं कभी आनंद का एहसास होता है। कभी विस्मय से आँखें खुली रह जाती हैं। कभी पुरखों के श्रमसाध्य और कष्टसाध्य कला-कौशल पर हृदय न्योछावर होने लगता है। कभी टीस और करुणा से मन भीग जाता है। कभी गर्व और गौरव से माथा उन्नत और छाती चौड़ी होने लगती है। एक ही परिसर में ऐसे विविधवर्णी अनुभव और अनुभूतियाँ किसी चमत्कार से कम तो नहीं! बात हो रही है संग्रहालयों की। आचार्य डा. उमा त्रिपाठी ने कैसी सटीक उपमा दी है,
‘‘संग्रहालय में आकर इतिहास से रू-ब-रू हुआ जा सकता है।’’

अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद (आइकाम) ने संग्रहालय की परिभाषा इस प्रकार की है-
‘‘संग्रहालय लाभ-हानि के सोच से परे समाज की सेवा में संलग्न स्थायी संस्थान होते हैं। ये समाज के विकास के लिए कार्य करते हैं। जनसाधारण के लिए खुले रहते हैं। संग्रहालय मानव और उनके पर्यावास के साक्ष्य, विविध सामग्री का संकलन, संग्रहण और संरक्षण करते हैं। उन्हें प्रदर्शित करते हैं। शोध-अनुसंधान में सहायक बनते हैं। अध्ययन, शिक्षा और मनोरंजन का उद्देश्य पूरा करते हैं।’’

अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद ने सन 1977 में अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाने की शुरुआत की। प्रतिवर्ष 18 मई को विश्व संग्रहालय दिवस मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष के लिए कोई विषय विशेष चुना जाता है। उस पर विमर्श, बौद्धिक प्रतियोगिताएँ और प्रदर्शनी आदि के माध्यम से समाज को जाग्रत और शिक्षित किया जाता है। ये अवसर विभिन्न राष्ट्रों और समाजों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और पारस्परिक समझ विकसित करने का काम करते हैं।

मनुष्य में जिज्ञासा का तत्व प्रबल होता है। उसकी रुचि अतीत का स्मरण करने में होती है। अतीत गौरवशाली हो तो उसके स्मृति चिह्नों से, स्मारकों से, कला-संस्कृति के प्रतीकों से, पोथियों से, यहाँ तक कि पुरातन कालचक्र के प्राणियों के ढाँचों से मोह और लगाव स्वाभाविक होता है। इसीलिए इन्हें अतीत के साक्ष्य, वर्तमान के अध्ययन और भविष्य के शिक्षण के लिए संजो कर रखा जाता है। उनका संरक्षण किया जाता है। दस्तावेजीकरण किया जाता है। यही प्रवृत्ति और प्रक्रिया संग्रहालयों की भूमिका और दायित्व का आधार रचती है।

इसे पहले पहल सांस्थानिक स्वरूप सत्रहवीं शताब्दी में मिला, जब अद्भुत सामग्रियों के संग्रह को संग्रहालय (म्युजियम) कहा गया। इन्हें अजायबघर भी कहा जाता था। इंग्लैण्ड में सन् 1675 में शुरुआत करने वाले जान ट्रेड्स केन्ट्स के संग्रह को सर्व साधारण के लिए खोला गया। पश्चात इसे ऑक्सफोर्ड स्थानान्तरित किया गया। दुनिया के इस सबसे पुराने संग्रहालय को ‘एश्मोलियन म्युजियम ऑक्सफोर्ड’ के नाम से जाना जाता है। तब से दुनियाभर में संग्रहालयों की स्थापना और विकास का सिलसिला चल रहा है। दुनिया के प्रमुख संग्रहालयों में पेरिस का लूवर संग्रहालय सबसे बड़ा माना जाता है। इसके संग्रह में विश्व प्रसिद्ध ‘मोनालिसा’ भी सम्मिलित है। न्यूयार्क का मेट्रोपालिटन कला संग्रहालय, इटली का वेटिकन संग्रहालय, लंदन का ब्रिटिश संग्रहालय, चीन का राष्ट्रीय संग्रहालय, जापान का टोक्यो राष्ट्रीय संग्रहालय, जर्मनी का मानव विज्ञान राष्ट्रीय संग्रहालय, ब्रिटेन के विक्टोरिया और अलबर्ट संग्रहालय, दक्षिण कोरिया का राष्ट्रीय संग्रहालय और अमेरिका का शिकागो कला संस्थान आदि प्रमुख हैं।

कोलकाता का भारतीय संग्रहालय भारत में सबसे बड़ा और पुराना है। राष्ट्रीय संग्रहालय नईदिल्ली, सालारजंग संग्रहालय हैदराबाद, छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय मुंबई, सरकारी संग्रहालय चेन्नई, अलबर्ट हाल संग्रहालय जयपुर, राष्ट्रीय रेल संग्रहालय नईदिल्ली, केलिको म्युजियम ऑफ टेक्सटाइल्स अहमदाबाद, शंकर अंतरराष्ट्रीय गुड़िया संग्रहालय दिल्ली, नेपियर संग्रहालय तिरुवनंतपुरम्, एच.ए.एल.-हैरिटेज सेन्टर और एयरोस्पेस संग्रहालय बंगलुरु तथा राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय बंगलुरु भारत के प्रमुख संग्रहालय हैं। ये सभी संग्रहालय वर्तमान पीढ़ी को उसके अतीत का ज्ञान कराते हुए वर्तमान से जोड़ रहे हैं। भविष्य की यात्रा का दिशा-संकेत कर रहे हैं। विविध विषयों के ज्ञान का भाण्डार संजोए हुए ये संग्रहालय परस्पर संस्कृति और परंपरा आदान-प्रदान और विमर्श से समूची दुनिया को लाभान्वित कर रहे हैं। यही उनका प्रदाय है, यही उनकी उपादेयता है और यही उनकी चिरकालिक महत्ता का आधार है।

अब बात करें देश के हृदय मध्यप्रदेश में बसे भोपाल की, जिसे आमतौर पर संग्रहालयों की नगरी कहा जाता है। भोपाल में राज्य संग्रहालय और राष्ट्रीय अभिलेखागार पहले से स्थापित रहे हैं। राज्य संग्रहालय मध्यप्रदेश के पुरातत्व की समृद्ध झाँकी प्रस्तुत करता है। राष्ट्रीय अभिलेखागार की भोपाल इकाई में स्वतंत्रता संग्राम और विशेष रूप से भोपाल रियासत से संबंधित दस्तावेज बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं। राज्य संग्रहालय के साथ मध्यप्रदेश राज्य अभिलेखागार को भी तीन दशक पहले जोड़ दिया गया है। यहाँ ऐतिहासिक दस्तावेजों का विशाल संग्रह है। बिरला संग्रहालय अपनी प्रतिमाओं और अन्य संग्रहों के कारण पुरातात्विक महत्व रखता है।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भारत की जनजातीय विरासत और विभिन्न अंचलों की परंपरागत बसाहट का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करता है। मानवशास्त्र (नृविज्ञान) के शोध-अध्ययन की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण संस्थान है। अपनी सजग सक्रियता से नित-नवीन उपलब्धियाँ अर्जित कर रहा है। प्रकृति विज्ञान क्षेत्रीय संग्रहालय (रीजनल म्युजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री) अपनी विशिष्टता के कारण भोपाल का उल्लेखनीय संस्थान है। आंचलिक विज्ञान केन्द्र विद्यार्थियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। खगोलीय घटनाओं के समय यहाँ जिज्ञासु युवाओं का जुटना विशेष अनुभव देता है। राष्ट्रीय दूरसंचार संग्रहालय देश में दूरसंचार के उद्भव और विकास की कहानी कहता है। भिन्न-भिन्न कालखण्डों के भाँति-भाँति के टेलीफोन इस संग्रहालय का आकर्षण हैं।

ज्ञानतीर्थ सप्रे संग्रहालय भोपाल में स्थित ऐसा महत्वपूर्ण शोध संस्थान है जिसका लाभ देश और विदेशों के शोधकर्ताओं, लेखकों, पत्रकारों और शिक्षाविविदों को पिछले चार दशक से मिल रहा है। लगभग पाँच करोड़ पृष्ठों की दुर्लभ और महत्वपूर्ण संदर्भ सामग्री संजोने वाले माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान में पुस्तकालय सेवा के तीनों प्रारूप कार्यरत हैं। सन् 1984 से परंपरागत पुस्तकालय सेवा का लाभ जिज्ञासु पाठक और विद्यार्थी उठा रहे हैं। पिछले पाँच वर्षों से डिजिटल लाइब्रेरी संचालित है। भारतीय स्टेट बैंक की सामाजिक सेवा बैंकिंग के अंतर्गत सी.एस.आर. मद से उपलब्ध धनराशि से सप्रे संग्रहालय के 20,01,994 दुर्लभ दस्तावेजों और पुराने जर्जर पृष्ठों का डिजिटलीकरण हुआ है। डिजिटल लाइब्रेरी समृद्ध हुई है। इससे संदर्भ सामग्री की सुरक्षा और शोध-अध्ययन के लिए उपलब्धता सुनिश्चित हुई है। पिछले वर्ष से रामेश्वर दास गार्गव स्मृति ई-लाइब्रेरी भी विद्यार्थियों को सेवा प्रदान कर रही है। अपनी तरह के इस अनूठे और एकमेव संग्रहालय में 1,66,222 संदर्भ ग्रंथ और पुस्तकें, 26,476 शीर्षक समाचारपत्र और पत्रिकाएँ, 5000 हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ, पोथियाँ और अन्य दस्तावेजी प्रकाशन, 4,605 संदर्भ फाइलें, महत्वपूर्ण साहित्यकारों, पत्रकारों और शिक्षाविदों के 10,000 पत्र तथा 200 रेडियो, ग्रामोफोन, कैमरे, टेप रिकार्डर, फोन, टाइपराइटर आदि पुराने उपकरण संग्रहीत हैं। भारत की सभी भाषाएँ और पूरा भूगोल प्रतिनिधि रूप में यहाँ विद्यमान है। चार दशकों में सप्रे संग्रहालय की संचित संदर्भ सामग्री का लाभ उठाते हुए 1238 शोधार्थियों ने विश्वविद्यालयों से पीएच.डी. एवं डी.लिट्. की उपाधियाँ अर्जित की हैं।

भोपाल का जनजातीय संग्रहालय वर्तमान में देश-विदेश के जिज्ञासुओं, विशिष्ट अतिथियों और सामान्य पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। राष्ट्रीय मानव संग्रहालय और मध्यप्रदेश राज्य संग्रहालय के बीच शामला पहाड़ी पर स्थित जनजातीय संग्रहालय मध्यप्रदेश की समस्त जनजातियों की बसाहट, संस्कृति, भाषा, कला और जीवन शैली का प्रामाणिक और प्रतिनिधि स्वरूप प्रस्तुत करता है। एक तरह से यह जनजातीय परंपराओं का जीवंत दस्तावेज है।

स्वराज संस्थान संचालनालय के अंतर्गत डा. शंकरदयाल शर्मा स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय का पुस्तक संग्रह भी महत्वपूर्ण है। स्वाधीनता आंदोलन पर केन्द्रित मध्यप्रदेश की जिलेवार पुस्तकों का प्रकाशन कर स्वराज संस्थान ने दस्तावेजीकरण का कार्य किया है। दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय साहित्यकारों की पाण्डुलिपियों के संकलन और स्मृति चिह्नों के संग्रहण की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहा है। नए भोपाल शहर की साहित्यिक गतिविधियों का यह केन्द्र है। भोपाल केन्द्रीय कारागृह में स्थापित आकार-गुड़ियाघर संग्रहालय में महिला बंदियों द्वारा बनाई गई भाँति-भाँति की गुड़ियाओं का संग्रह प्रदर्शित है।

ऐतिहासिक महत्व के संग्रहों की शृंखला में आकाशवाणी में संजोए गए संगीतकारों और साहित्यकारों के साक्षात्कारों के रिकार्ड और संगीत कार्यक्रमों की रिकार्डिंग भी उल्लेखनीय है और स्थायी महत्व की है। दूरदर्शन भी ऐसी रिकार्डिंग सहेज रहा है। इस रूप में महान सर्जकों की वाणी चिरकालिक धरोहर बन गई है।

भारत में संग्रहालय मुख्य रूप से सरकार द्वारा स्थापित और संचालित हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारकों की संख्या बहुत बड़ी है। ये स्मारक इतिहास, संस्कृति और परंपरा के जीते-जागते साक्ष्य हैं। संग्रहालय भी इसी विशिष्ट भूमिका के कारण महत्व पाते हैं। विभिन्न न्यासों और सोसायटियों द्वारा भी संग्रहालयों का संचालन किया जाता है। जरूरी है कि समाज की सहभागिता संग्रहालयों के साथ बढ़े। अंततः संग्रहालय समाज की ही थाती हैं। नई पीढ़ी को संग्रहालयों से जोड़ने के लिए निरंतर अभियान चलते रहना चाहिए।


संस्थापक-संयोजक
माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय
एवं शोध संस्थान, भोपाल – 462003
मोबाइल नं. 9425011467, वाट्सएप 7999460151
ईमेल – sapresangrahalaya@yahoo.com

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