राष्ट्र प्रथम की नीतियों के कारण भारत बना विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था

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भारत की आर्थिक प्रगति का नवीनतम अध्याय न केवल एक प्रेरणादायक उपलब्धि है, बल्कि यह भारत की वैश्विक शक्ति के निरंतर बढ़ते प्रभाव का प्रतीक भी है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का विकास एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है, जो देश की आर्थिक, सामाजिक, और तकनीकी प्रगति को दर्शाती है। अर्थव्यवस्था का विकास तब होता है जब कोई देश अपने संसाधनों का प्रभावी उपयोग करके उत्पादन, आय, और जीवन की गुणवत्ता में निरंतर और समावेशी सुधार करता है। भारत की GDP लगभग 13-14 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई है, जो इसे अमेरिका, चीन और जर्मनी के बाद चौथे स्थान पर रखती है। यह मात्र एक सांख्यिकीय उपलब्धि नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की दीर्घकालिक योजना, जनसांख्यिकीय ऊर्जा, तकनीकी प्रगति और सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावों का परिणाम ही नहीं अपितु प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार की ‘राष्ट्र प्रथम’ नीति, ‘विकसित भारत@2047’ की दूरदर्शी परिकल्पना, और समावेशी विकास की व्यापक रणनीति का परिणाम है। भारत की 1.4 अरब से अधिक की जनसंख्या में से लगभग 65% लोग 35 वर्ष से कम आयु के हैं, यह युवा जनशक्ति आज भारत की आर्थिक सफलता की रीढ़ बन चुकी है — एक ऐसा संसाधन, जो उत्पादकता, नवाचार और उपभोग तीनों के क्षेत्र में समान रूप से योगदान दे रहा है। यही वह जनसांख्यिकीय लाभांश है, जिसने भारत को दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की कतार में खड़ा किया है। भारत का सेवा क्षेत्र GDP में लगभग 55% का योगदान देता है, जो न केवल देश के आतंरिक विकास का वाहक बना है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी भारत को एक अहम भूमिका में ले आया है। सूचना प्रौद्योगिकी, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO), वित्तीय सेवाएं और टेलीकॉम — इन क्षेत्रों में भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। आज भारत IT सेवाओं का अग्रणी निर्यातक है, जिससे न केवल राजस्व में वृद्धि हो रही है, बल्कि वैश्विक व्यापार जगत में भी भारत की विश्वसनीयता बढ़ी है। ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी पहलों ने देश में तकनीकी समावेशन को गति दी है। यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने भारत को डिजिटल भुगतान की दुनिया में अग्रणी बना दिया है। आज एक आम नागरिक भी ई-कॉमर्स, फिनटेक, और डिजिटल सेवाओं का सहजता से उपयोग कर रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था को जमीनी स्तर से गति मिल रही है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं ने भारत के विनिर्माण क्षेत्र को पुनः जीवंत किया है। ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल और रसायन उद्योगों में भारत की उपस्थिति अब वैश्विक स्तर पर महसूस की जा रही है। फार्मा क्षेत्र में तो भारत को ‘विश्व की फार्मेसी’ कहा जाने लगा है, जो हमारी अनुसंधान शक्ति और उत्पादन क्षमता का परिचायक है। हरित क्रांति के बाद, कृषि में तकनीक का समावेश — जैसे ड्रोन, उन्नत बीज, और स्मार्ट सिंचाई — किसानों को अधिक उत्पादन और आय की दिशा में प्रेरित कर रहा है। भारत अब न केवल खाद्यान्न में आत्मनिर्भर है, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भी भूमिका निभाने को तैयार है। भारत की स्टार्टअप संस्कृति ने एक नई आर्थिक ऊर्जा का संचार किया है।
प्रधानमंत्री की सोच “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास” अब भारत के आर्थिक और सामाजिक ढांचे में गहराई से समाहित हो चुकी है। सरकार की प्रमुख योजनाएं — जैसे मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना, और उत्पादकता-आधारित प्रोत्साहन (PLI) — ने न केवल भारत को निवेश और विनिर्माण का हब बनाया है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के मार्ग को भी सशक्त किया है। तकनीकी शिक्षा अब केवल नौकरी की दिशा नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण में नेतृत्व की भूमिका निभाने की दिशा में अग्रसर है। यूनिकॉर्न कंपनियों की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है कि भारतीय युवा अब नौकरी चाहने वाले नहीं, बल्कि नौकरी देने वाले बन रहे हैं। नवाचार, तकनीकी समाधान और उद्यमिता की इस लहर ने नए रोजगार और अवसरों का सृजन किया है। 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद से भारत ने निरंतर सुधारों की दिशा में कार्य किया है। GST, इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में उदारीकरण, और ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस जैसे सुधारों ने वैश्विक निवेशकों को भारत की ओर आकर्षित किया है। इन प्रयासों ने भारत को एक पारदर्शी, स्थिर और विकासोन्मुखी आर्थिक वातावरण प्रदान किया है। हरित ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन और सतत विकास जैसे क्षेत्रों में भारत की प्रतिबद्धता इस बात का संकेत है कि यह राष्ट्र केवल वर्तमान में नहीं, बल्कि भविष्य की भी तैयारी कर रहा है। विशेषज्ञों का विश्वास है कि यदि भारत इसी गति से आगे बढ़ता रहा, तो यह अगले दशक में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
भारत की आर्थिक प्रगति का नवीनतम अध्याय न केवल गर्व की बात है, बल्कि यह उस समर्पण, नवाचार और नीतिगत दूरदर्शिता का परिणाम है, जिसमें तकनीकी शिक्षा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। यह उपलब्धि केवल संख्याओं की नहीं, बल्कि उन संस्थागत पहलों की कहानी भी है, जिन्होंने मानव संसाधन को दक्ष बनाकर राष्ट्र निर्माण की गति को तेज किया है। भारत की 1.4 अरब से अधिक जनसंख्या में 65% से अधिक युवा हैं, यह जनसांख्यिकीय लाभांश तभी सार्थक हो सकता है जब इसे गुणवत्तापूर्ण तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा से जोड़ा जाए। तकनीकी संस्थानों की भूमिका इस मोड़ पर और भी महत्वपूर्ण हो जाती है — जहां वे युवाओं को केवल डिग्री नहीं, बल्कि उन्हें नवाचार, डिजिटलीकरण और उद्योगोन्मुखी कौशल से लैस कर रहे हैं।
भारत की आर्थिक यात्रा अब केवल निवेश और उत्पादन तक सीमित नहीं है, यह ज्ञान, तकनीक और नवाचार से प्रेरित विकास की कहानी बन चुकी है। तकनीकी संस्थान इस यात्रा के अभिन्न पथप्रदर्शक हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि तकनीकी शिक्षा न केवल रोजगार दे, बल्कि राष्ट्र निर्माण में नेतृत्व भी करे। हमारे तकनीकी संस्थानों का दायित्व है कि वे युवाओं को न केवल कुशल बनाएं, बल्कि उन्हें नवाचार, नेतृत्व और उद्यमिता की ओर भी प्रेरित करें।

प्रो. सी.सी त्रिपाठी
(लेखक राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान भोपाल के निदेशक है)

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