आदमी की फितरत भी अजीब है। सुख सुविधाओं की तलाश में पहले गांव छोड़कर शहरों की ओर पलायन किया,और अब ग्रामीण अंचल में विकसित किये जा रहे ‘होमस्टे’ में सुकून तलाश रहा है।अपने बाप दादा के खेतों की ओर बरसों न झांकने वाला आदमी अब होम स्टे में रुककर खेती के तौर- तरीके और ग्राम्य जीवन नज़दीक से देखना चाहता है। गांव की जिस सहज सरल जीवन शैली को भौतिक प्रगति में अवरोध मानकर उपेक्षित किया, उसी को अब मशीनी संसाधनों से हासिल करना चाहता है। देसी कहकर पहले जिन चीजों की अवहेलना की,अब उन्हीं को ऊंचे दाम देकर हासिल करना चाहता है। निशुल्क उपलब्ध प्राकृतिक नजारों और आबो हवा की कद्र न करने वाला आदमी अब उन्हें अनमोल बता रहा है।
सीमेंट कंक्रीट के जंगल की भावहीनता और सड़कों पर दिन प्रतिदिन लगते जाम से परेशान होकर आदमी फिर उसी गांव, उसी घर की ओर लौटना चाहता है,जिसे वह कभी छोड़कर आया था। स्थाई रूप से बसने के लिए न सही,शहरी भागमभाग से कुछ दिनों के लिए निजात पाने के लिए ही सही।
ग्रामीण पर्यटन सैर-सपाटे के नए ट्रेंड के रूप में लोकप्रिय हो रहा है।
इसके साथ लोकप्रिय हो रहा है होमस्टे का चलन ।
होमस्टे की अवधारणा में मूलतः इस विचार को महत्व दिया गया है कि पर्यटक स्थानीय निवासियों के साथ रहते हुए क्षेत्र की संस्कृति,रीति-रिवाज, परंपराओं एवं जीवन शैली के बारे में निकटता से अनुभव कर सकें। यह अनुभव व्यवसायिक होटलों में रहकर हासिल नहीं किया जा सकता।
एक पशुपालक दूध कैसे दुहता है, या एक कुम्हार चाक पर घड़ा कैसे बनाता है, इसका अनुभव किसान की गौशाला या कुम्हार के कार्यस्थल पर ही हासिल किया जा सकता है। इसी तरह प्रदूषण मुक्त स्वच्छ वातावरण में सांस लेना और सितारों से भरा आसमान निहारना गांव के आंगन में ही संभव है, किसी पांच सितारा होटल के वातानुकूलित कक्ष में नहीं।
मनुष्य को नहीं पता कि भौतिक प्रगति की यह अंधी दौड़ कहां तक जाएगी? लेकिन उसे यह पता है कि सुकून तो गांव की गलियों में ही है। खेतों की मेड़ पर बनी पगडंडियों में ही है।
यह अलग बात है कि गांव भी अब वैसे गांव नहीं बचे जिनमें हर कोई किसी का काका-दादा-मामा था,और जहां छाछ मांगने पर दूध पिलाया जाता था। लेकिन अभी भी मीलों फैले खेत, तारों से भरा आसमान और स्वच्छ हवा लगभग वैसे ही हैं जैसे कि होना चाहिए।
सनातन परंपरा में ‘तीर्थ सेवन’ का विधान है। इसकी अपनी एक मर्यादा है। इन दिनों तीर्थ सेवन का स्थान धार्मिक पर्यटन ने ले लिया है। लगभग प्रत्येक धार्मिक स्थल पर सर्व सुविधायुक्त होटल खुल गए हैं। होटलों की अपनी कार्य पद्धति है, जो कई बार पर्यटकों की असुविधा का कारण बन जाती है। फिर होटल में पर्यटकों को वैसा फील भी नहीं मिलता,जैसा धार्मिक पर्यटन के लिए वांछित है।
इसीलिए धार्मिक स्थलों पर पर्यटक होमस्टे को तरजीह देने लगे हैं। एक तो यह व्यवस्था आर्थिक रूप से पर्यटकों के अनुकूल बैठती है और दूसरे होमस्टे का घर जैसा माहौल स्थानीय संस्कृति और स्थान विशेष की विशिष्टताओं को आत्मसात करने का अवसर सहज ही उपलब्ध करा देता है। यह होटल के व्यावसायिक माहौल में कदापि संभव नहीं है।
ग्राम्य जीवन को नज़दीक से देखने की बढ़ती ललक, तीर्थ स्थलों में मिलने वाला घर जैसा माहौल और पर्यटन स्थलों की होटलों में बढ़ती भीड़,होमस्टे के चलन को लोकप्रिय बना रहे हैं।
होम स्टे के लिए प्रारंभिक तौर पर उन स्थानों का चयन किया गया जो पर्यटन केंद्रों के नजदीक हैं,और जहां आसानी से पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है। गांवों को चिन्हित कर लोगों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया गया कि वह अपने घर के अतिरिक्त कमरों का होमस्टे के रूप में उपयोग करें। इससे उन्हें अतिरिक्त कमाई का एक जरिया मिलेगा।
संस्कृति, ग्राम्य जीवन एवं ऐतिहासिक – सांस्कृतिक स्थलों को उसी परिवेश में रहकर देखने-समझने की चाह रखने वाले रोमांच प्रेमी पर्यटकों को तो यह योजना पसंद आई ही, ग्रामीणों ने भी इसके प्रति उत्साह दिखाया।
अब स्थिति यह है कि पहले से उपलब्ध अतिरिक्त कमरों में ही नहीं बल्कि खेतों, अभयारण्यों एवं अन्य पर्यटन स्थलों के नजदीक उपलब्ध जमीन पर परंपरागत ग्रामीण शैली के घर और कुटीर बनाकर भी होमस्टे केंद्र विकसित किया जा रहे हैं।
वैसे तो पूरे देश में होमस्टे का चलन लोकप्रिय हो रहा है,लेकिन हिमाचल प्रदेश इस मामले में सबसे आगे है। विभिन्न सूत्रों के अनुसार यहां लगभग 1000 होमस्टे पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं।
मध्य प्रदेश में पर्यटन विकास की अनंत संभावनाएं हैं। नदी,पहाड़,झरने,प्राचीन किले,ऐतिहासिक पुरातात्विक महत्व के स्मारक, यूनेस्को द्वारा संरक्षित विश्व धरोहर स्मारक, संग्रहालय,मंदिर,तीर्थ स्थल, टाइगर रिजर्व,अभयारण्य, लोक कलाएं, आदिवासी संस्कृति, त्योहार और पर्व, सब कुछ तो है मध्य प्रदेश में!
यदि पर्यटन स्थलों तक आसान पहुंच और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाएं, तो लाखों पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है। इस दिशा में प्रयास चल रहे हैं। एक ओर तो पर्यटन स्थलों को विकसित किया जा रहा है दूसरी ओर पर्यटन स्थलों पर सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है।उज्जैन में विकसित महाकाल लोक की तर्ज पर अन्य धार्मिक स्थलों पर भी उसी शैली में ‘लोक’ विकसित किये जा रहे हैं। धर्मशालाओं से लगाकर हर आय वर्ग के लोगों के लिए होटल खुल रहे हैं, लेकिन पर्यटन के नए चलन होम स्टे की उपलब्धता के मामले में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
प्रदेश के 63 गांवों को पर्यटन ग्राम के रूप में चिन्हित किया गया है, जहां लगभग 250 होम स्टे पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं। मंडला,उमरिया,बालाघाट,डिंडोरी, छतरपुर,देवास, सीहोर और खंडवा जैसे जिलों में होम स्टे व्यवस्था को अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है।
पर्यटन के प्रति बढ़ते रुझान को देखते हुए अभी मध्य प्रदेश में बहुत कम होमस्टे पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं; जबकि निकट भविष्य में श्री कृष्ण लीला पथ, राम वन गमन पथ और विभिन्न लोक विकसित किये जा रहे हैं, जिसके कारण निश्चित रूप से पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी । 2028 में आयोजित होने वाले सिंहस्थ में भी लाखों श्रद्धालुओं के आने की संभावना है।
वर्तमान में उपलब्ध 250 होमस्टे ऊंट के मुंह में जीरा के समान है।
पर्यटन स्थलों के नजदीक स्थित ग्रामों के निवासियों के लिए अच्छा अवसर है। होमस्टे सेवाएं उपलब्ध करवा कर वह आसानी से अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। इसके साथ-साथ पर्यटकों को स्थानीय उत्पाद उपलब्ध करवा कर भी अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
ऐसे गांव जो प्रकृति की गोद में बसे हैं, जहां की जीवन शैली कृषि प्रधान हैं,लोक कलाओं से समृद्ध हैं लेकिन फिलहाल पर्यटन के नक्शे पर नहीं हैं,वहां होमस्टे के लिए अच्छी संभावनाएं हो सकती हैं। नर्मदांचल में ऐसे बहुत से गांव आसानी से चिन्हित किए जा सकते हैं।
यह ध्यान जरूर रखना होगा कि होमस्टे ‘घर के बाहर अपना घर’ की मूल भावना से प्रेरित है ,इस पर कहीं होटल व्यवसायी काबिज ना हो जाएं। ऐसा हुआ तो वह रिसोर्ट तो हो सकता है; होम स्टे नहीं।
बहुत ही जानकारीपूर्ण लेख– अरविंद श्रीधर जी ने गांवों में होमस्टे के महत्व को जिस सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया है, वह काबिले-तारीफ है। लेख पढ़कर ग्रामीण पर्यटन की एक नई दिशा देखने को मिली।
गांवों का असली सौंदर्य सामने आया – यह लेख हमें याद दिलाता है कि भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती है। होमस्टे के माध्यम से पर्यटकों को स्थानीय संस्कृति और जीवनशैली का अनुभव करने का मौका मिलता है।
स्थानीय लोगों को रोज़गार देने का माध्यम – इस लेख में यह बात बहुत अच्छे से उभरी है कि होमस्टे न केवल पर्यटन को बढ़ावा देता है, बल्कि ग्रामीणों के लिए आय का एक नया स्रोत भी बनता है।
पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन – लेख में यह विचार सराहनीय है कि होमस्टे जैसे मॉडल बड़े होटल प्रोजेक्ट्स की तुलना में पर्यावरण के लिए कम हानिकारक होते हैं।
संस्कृति और आतिथ्य का अनुभव – अरविंद जी ने बहुत सुंदरता से बताया है कि ग्रामीण होमस्टे में ठहरने का अनुभव सिर्फ रहना नहीं, बल्कि वहां की परंपरा, भोजन और मेहमाननवाज़ी को महसूस करना होता है।
नीतिगत समर्थन की आवश्यकता – लेख पढ़ने के बाद महसूस होता है कि सरकार को ग्रामीण होमस्टे को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं और वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए।
प्रेरणादायक लेख – यह लेख न केवल जानकारी देता है बल्कि युवाओं को गांवों में पर्यटन को लेकर उद्यमशील बनने के लिए प्रेरित भी करता है।