मध्य प्रदेश के मालवा अंचल में कबीर गायन की एक समृद्ध परंपरा है। गांव गांव में ऐसी भजन मंडलीय मिलती हैं जो कबीर के पदों का मालवी शैली में गायन करती हैं। यह शैली अब मालवा अंचल तक ही सीमित नहीं रही। इसकी अनुगूंज अब देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सुनाई देने लगी है। यही कारण है कि कबीर गायन के क्षेत्र में सक्रिय लोक कलाकारों को पहचान भी मिल रही है,और सम्मान भी।
कबीर जयंती के अवसर पर मालवांचल के कुछ शीर्षस्थ कबीर गायको से कर्मवीर ने बात की….
1970 में जन्मे कालूराम बामनिया 9 साल की उम्र से कबीर के पद का रहे हैं। देवास जिले के टोंकखुर्द के निवासी कालूराम बामनिया को भारत सरकार ने वर्ष 2024 में ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया है।
कबीर वाणी को जन-जन तक पहुंचाने में अनवरत संलग्न कालूराम जी का कहना है –
मैं कबीर को इसलिए गाता हूँ क्योंकि उनकी वाणी में वह शक्ति है जो मनुष्य को उसकी जड़ों से जोड़ देती है। कबीर केवल एक संत नहीं हैं, वह एक चेतना हैं; ऐसी चेतना जो समाज को सही मार्ग बताती है। हमारे जीवन में बचपन से वृद्धावस्था तक जो भी पड़ाव आते हैं, कबीर ने उन सभी के लिए वाणी दी है — सच्चाई, सरलता और सहजता के साथ।
कबीर की वाणी केवल शब्द नहीं, बल्कि संस्कृति को गतिमान रखने का माध्यम है। आज जब युवा पीढ़ी पाश्चात्य आकर्षणों में उलझकर अपनी संस्कृति और मूल्यों से भटक रही है, तब कबीर का संदेश और भी ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है। उनकी वाणी आत्मा को झकझोरती है, मन को शांति देती है, और इंसान को इंसान से जोड़ती है।

कबीर की वाणी अकाट्य है — इसे कोई काट नहीं सकता, क्योंकि यह किसी एक धर्म, जाति या समय की सीमाओं में नहीं बंधती।
मैंने अपने जीवन को इसी वाणी में ढालने का प्रयास किया है और चाहा है कि यह संदेश गीतों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचे।
कबीर सिर्फ गाने के लिए नहीं हैं — उन्हें जीने के लिए गाता हूँ।
कबीर गायन के क्षेत्र में मालवा अंचल का एक और प्रमुख नाम है भैरूं सिंह चौहान का। महू (इंदौर)के नज़दीक एक छोटे से गांव के निवासी श्री भैरू सिंह चौहान मालवा अंचल के लोकप्रिय लोक गायक हैं। विगत 5 दशकों से वह निर्गुणी गायन से जुड़े हुए हैं। उनकी सुदीर्घ कला साधना को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2025 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है।
वह कबीर को किसी धर्म विशेष का नहीं अपितु संपूर्ण मानवता का प्रतिनिधि मानते हैं। उनका कहना है-
कबीर की जीवनी को लेकर तरह-तरह के मिथक सामने आते हैं,लेकिन मेरी दृष्टि में वह मानवता के सर्वोच्च पुजारी थे। खरी-खरी कहने वाले कबीर हमेशा जाति और धर्म के ठेकेदारों के निशाने पर रहे। ऐसे दौर में जब चारों तरफ पाखंड,अंधश्रद्धा और अनेक सामाजिक बुराइयों का बोलबाला था, कबीर ने अपनी वाणी से मानव मात्र की एकता और समरसता का संदेश दिया। सामाजिक बुराइयों पर चोट करते समय उन्होंने किसी को नहीं बख्शा। वह ईश्वर को अपने अंदर खोजने की बात करते हैं। उनका स्पष्ट मत है कि वाह्य आडंबर से नहीं, अंतरात्मा की पवित्रता से ईश्वर को पाया जा सकता है। और पाने का मतलब यह नहीं है कि वह कोई दूसरा है जिसे प्राप्त करना है। वह तो हमारे अंदर ही विराजमान है,जिसकी केवल पहचान करना है।

यही कबीर की वाणी है। यह कबीर की सच्चाई का ही प्रमाण है कि आज सैकड़ो वर्षों बाद भी वह अंधेरे में मशाल की तरह दिखाई देते हैं।
संस्कृति मंत्रालय,भारत सरकार की फेलोशिप से सम्मानित श्री रामचंद्र गांगोलिया , निर्गुणी गायन का एक और लोकप्रिय नाम है। देश के अनेक प्रतिष्ठित मंचों पर उन्होंने कबीर गायन प्रस्तुत किया है। आकाशवाणी और दूरदर्शन से उनके गाए भजन निरंतर प्रसारित होते रहते हैं।
निर्गुणी गायन की मालवी शैली को समर्पित श्री गांगोलिया संत कबीर को अपना आराध्य मानते हैं। कबीर के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए वह कहते हैं-
भारतीय संत परंपरा में संत कबीर साहब विशिष्ट स्थान रखते हैं। उन्होंने अपनी वाणी के माध्यम से समानता और समरसता को प्रमुख रूप से जनमानस के बीच रखा। साथ ही बाहरी आडंबर, पाखंड,अंधविश्वास को छोड़कर आंतरिक यात्रा हेतु जन मानस को प्रेरित किया। वैसे तो भारतवर्ष में अनेकों महान संत हुए हैं परंतु उन सब में संत कबीर को श्रेष्ठ कहा जा सकता है,क्योंकि कबीर ने जिस सच्चाई व स्पष्टता के साथ अपनी बातें कहीं, ऐसा बहुत कम कवियों या संत महंतों की वाणी में देखने को मिलता है। संत कबीर ने जाति, धर्म,मजहब, पंथ,संप्रदाय से ऊपर उठकर अपने विचारों को रखा है।
कबीर कहते हैं –
हिंदू कहता राम हमारा, मुसलमान रहमाना।
आपस में दोई लड़ लड़ मरता,मर्म किसी ने नहीं जाना।।
आज से 600 वर्ष पूर्व संत कबीर की द्वारा कही गई बातें आज भी चरितार्थ हो रही हैं।
कबीर कहते हैं कि हमें बाहर कहीं भटकने की आवश्यकता नहीं है।ना कहीं तीर्थ जाने की, और ना कहीं मंदिर व मस्ज़िद जाने की आवश्यकता है। हमें स्वयं को खोजना होगा। जब हम स्वयं को खोजेंगे तो आंतरिक दर्शन होगा। परमात्मा की प्राप्ति होगी। मुख्य रूप से देखा जाए तो भारतीय परंपरा के सभी ग्रंथ या कहा जाए कि विश्व में शांति की स्थापना करने वाले सभी ग्रंथों का सार भी यही है।

लोक गायन के लिए राष्ट्रीय युवा पुरस्कार प्राप्त अजय सिंह गांगोलिया, निर्गुणी गायन परंपरा का उभरता हुआ नाम है। लोक गायकी में नवाचारों के पक्षधर अजय गांगोलिया कबीर के प्रति अपने आकर्षण को लेकर कहते हैं-
कबीर की सीधी सपाट शैली में कही गई बातें हृदय के अंतरतल तक प्रहार करती हैं। आत्मा और परमात्मा का एकत्व समझाने के लिए मोटे-मोटे ग्रंथ रचे गए हैं; लेकिन कबीर वही बात दो लाइन के दोहे में बड़ी सहजता से कह जाते हैं। कबीर का फक्कड़पन और बेवाकी उन्हें कवि से अधिक एक क्रांतिकारी साबित करती है।

यही कारण है कबीर के प्रति आकर्षित होने का और मालवा की समृद्ध कबीर गायन परंपरा से जुड़ने का।
एक तो कबीर की झकझोरती वाणी और दूसरे उसे प्रस्तुत करने की मालवी लोक गायन की विशिष्ट शैली। दोनों मिलकर एक अनोखे माहौल का सृजन करते हैं।
कबीर आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने 15 वीं शताब्दी में थे। उनकी वाणी हमेशा प्रासंगिक रहेगी। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे संत कबीर को समझने और उनकी वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का अवसर मिला है।
*अरविन्द श्रीधर
संपादक, कर्मवीर डिजिटल