21 साल लगे तैयार होने में…
चिनाब भारत की प्राचीन नदियों में से एक है,जो
अनेक प्रेम कहानियों को अपने साथ लेकर बहती है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार जो भी इस नदी का पानी पी लेता है उसके हृदय में मोहब्बत की लहरें हिलोरें मारने लगती हैं। हीर-रांझा, सोनी-महिवाल जैसी प्रेम कथाएं चिनाब के तट पर ही पुष्पित- पल्लवित होती रहीं हैं।
स्थानीय लोक कथाएं हों अथवा लोकगीत, कविता हो अथवा कथा साहित्य,चिनाब एक महत्वपूर्ण किरदार के रूप में हर जगह उपस्थित मिलती है।
चिनाब नदी कृषि एवं जल विद्युत उत्पादन की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, सांस्कृतिक एवं सामरिक दृष्टि से भी विशेष महत्व रखती है।
चिनाब नदी हिमाचल प्रदेश के लाहौर स्फीति जिले में स्थित हिमालय के बारालाचा-ला दर्रे के पास से निकलती है। दरअसल यह नदी चंद्र एवं भागा दो नदियों के संगम से बनती है। चंद्र नदी का उद्गम चंद्र ताल के निकट ग्लेशियरों में है,और भागा नदी सूर्या ताल झील से निकलती है। दोनों का संगम मनाली से 65 किलोमीटर दूर लाहौल वैली के टांडी पुल नाम की जगह पर होता है।
चंद्र और भागा के संगम से बनी यह नदी झेलम,रावी और सतलुज से मेल मिलाप कर पंचनद स्वरूप में सिंधु नदी में मिल जाती है।

अभी हाल ही में चिनाब नदी पर विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे पुल का शुभारंभ हुआ है; जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हो रही है। चिनाब रेल ब्रिज इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है। यह ब्रिज नदी के तल से 359 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है,जो पेरिस के एफिल टावर से 35 मीटर और दिल्ली की कुतुब मीनार से लगभग 287 मीटर ऊंचा है। पुल की लंबाई 1315 मीटर है। 1486 करोड़ रुपए की लागत से बने इस पुल की उम्र 120 वर्ष अनुमानित है।
पुल की संकल्पना से लेकर इसके पूर्ण होने तक अनेक चुनौतियां थीं। इन्हीं चुनौतियों ने परियोजना को विशिष्ट बनाया। और जब पुल ने अपना पूर्ण आकार ग्रहण किया तब भारतीय इंजीनियरिंग के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय लिखा जा चुका था।
पुल के निर्माण में सिर्फ भौगोलिक और तकनीकी चुनौतियां ही नहीं थीं,कानूनी बाधाएं भी थीं। जैसा कि हमारे देश में चलन है, परियोजना के डिजाइन,लागत और मार्ग को लेकर अनेक जनहित याचिकाएं कोर्ट में दायर की गईं ,जिनकी वजह से बरसों परियोजना आगे नहीं बढ़ सकी। वर्ष 2016 में इन याचिकाओं का निपटारा हुआ और काम तेजी से आगे बढ़ा।
उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक,जिस पर यह पुल बनाया गया है,कश्मीर को शेष भारत से जोड़ने की एक वृहद परियोजना है। इस परियोजना की लंबाई 272 किलोमीटर है , जिसमें 943 पुल,36 बड़ी सुरंगें और भारत की सबसे लंबी रेलवे सुरंग T 50 (12.77 कि.मी.) शामिल हैं। परियोजना की कुल लागत है 42000 करोड़ रुपए।
पुल को इस तरीके से डिजाइन किया गया है कि यह भारी तूफान,तेज हवाओं,भूकंप और विस्फोटों को भी झेलने में सक्षम है।
पुल के बन जाने से हर मौसम में शेष भारत का कश्मीर से अवाधित संपर्क सुनिश्चित हुआ है। इससे एक ओर तो भारत को सामरिक दृष्टि से फायदा मिलेगा वहीं दूसरी ओर कश्मीर में पर्यटकों को आवाजाही में सहूलियत होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि इस ब्रिज के बनने से भारतीय सेना लाइन ऑफ़ कंट्रोल से लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल तक आसानी से पहुंच सकेगी।
चिनाब रेल ब्रिज पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने वाला भी सिद्ध होगा। पर्यटन विशेषज्ञों का मानना है कि सुविधाजनक आवागमन होने की वजह से पर्यटक कश्मीर की ओर आकर्षित होंगे। पहले जहां कुछ पारंपरिक स्थानों पर ही पर्यटक पहुंचते थे,अब नए-नए क्षेत्रों के प्रति आकर्षित होंगे। राज्य सरकार इस दिशा में सचेत है और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सुविधाएं जुटाई जा रही हैं।
वर्ष 2024 में 30 लाख से अधिक पर्यटक कश्मीर पहुंचे थे। पहलगाम की घटना से ऐसा लगा कि शायद पर्यटन क्षेत्र में आए इस उछाल में ब्रेक लगेगा, लेकिन धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य हो रही हैं।
इंजीनियरिंग का यह नायाब नमूना कश्मीरियों के शेष भारत से भावनात्मक जुड़ाव में भी सेतु का काम करेगा;ऐसी उम्मीद है। पुल से गुजरती वंदे भारत ट्रेन के वीडियो और फोटोग्राफ जिन संदेशों के साथ वायरल हो रहे हैं,उससे तो यही उम्मीद जागती है।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने वंदे भारत एक्सप्रेस से श्रीनगर से कटरा तक की यात्रा करने के बाद मीडिया से कहा – जब ट्रेन से चिनाब नदी पर बने दुनिया के सबसे उंचे रेलवे पुल को पार किया तो खुशी से आंखें नम हो गईं। यह सिर्फ एक ट्रेन नहीं, कश्मीर की देश से जुड़ने की शुरुआत है।
सफ़र का आगाज़ खुशनुमा हुआ है,तो अंज़ाम भी खुशनुमा होगा। हर भारतीय इसकी कामना कर रहा है।
*अरविन्द श्रीधर