बेतवा भोपाल और रायसेन जिले की सीमा पर स्थित झिरी ग्राम से निकलती है और रायसेन,विदिशा, सागर, गुना तथा टीकमगढ़ जिलों से होती हुई उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यमुना नदी में मिल जाती है। बेतवा नदी की कुल लंबाई 565 किलोमीटर है। मध्य प्रदेश में इसका प्रवाह 220 किलोमीटर है।
पुराणों तथा प्राचीन संस्कृत साहित्य में वेत्रवती
का उल्लेख महत्वपूर्ण नदी के रूप में मिलता है।
इसके तट के निवासी इसे ‘वैत्रवती गंगा’ कहते हैं,जो बेतवा के प्रति उनकी आस्था का परिचायक है।
अपने प्रवाह क्षेत्र के लिए बेतवा जीवन रेखा भी है, और संस्कृति की संवाहक भी। इसके तट पर अनेक छोटे-बड़े तीर्थ हैं,जो लोगों के लिए आस्था के केंद्र हैं।
जैसा कि अन्य नदियों के साथ हुआ है,बेतवा की धार भी धीरे-धीरे क्षीण हो चली है और अनदेखी का शिकार भी। इस अनदेखी का दुष्परिणाम अपने चरम पर पहुंचा मार्च 2025 में जब बेतवा की धार अपने उद्गम पर ही सूख गई।
मीडिया में खबरें चलीं। पर्यावरणविद् चिंतित हुए। संबंधित शासकीय विभागों में भी हलचल हुई। फिर सब कुछ वैसे ही शांत हो गया जैसा ऐसी हर खबर के बाद होता रहा है।

लेकिन कुछ लोग थे जिन्हें बेतवा के उद्गम स्थल की धार सूखने की खबर ने अशांत कर दिया।उनके लिए यह एक खबर भर नहीं थी,बल्कि वह इसमें आसन्न संकट की आहट भी सुन पा रहे थे। यही बेचैनी इन लोगों को बेतवा के उद्गम स्थल झिरी ग्राम तक खींच लाई।
वैसे तो बेतवा अध्ययन और जन जागरण समूह विगत दो-तीन वर्षों से बेतवा नदी की बदहाली की तरफ समाज,सरकार,स्वयंसेवी संस्थाओं और मीडिया का ध्यान आकर्षित करता आ रहा था; लेकिन कुछ ठोस परिणाम निकलता नहीं दिख रहा था। अंततः समूह द्वारा यह निश्चय किया गया कि क्यों ना स्थानीय लोगों को साथ लेकर बेतवा उद्गम स्थल को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाए?
जैविक खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रयासरत गांधीवादी कार्यकर्ता डॉ आर.के.पालीवाल इस मुहिम के अगुआ बने। उनकी पहल पर इंदौर ,हरदा भोपाल,विदिशा,बैतूल आदि के पर्यावरण प्रेमी बेतवा के उद्गम स्थल झिरी में एकत्रित हुए और उद्गम को पुनः प्रवाहमान बनाने के लिए एक योजना बनाई गई।

सबको पता था कि यह आसान काम नहीं है। इसके लिए लंबे समय तक योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा, जो स्थानीय लोगों और ग्राम पंचायत के सक्रिय सहयोग से ही संभव है। इसके लिए प्रयास हुआ और यथासंभव स्थानीय लोग साथ भी आए। खासतौर से बच्चों में विशेष उत्साह देखा गया।
अभियान के पहले चरण में सात दिवसीय श्रमदान कार्यक्रम आयोजित किया गया,जिसके माध्यम से उद्गम स्थल के आसपास साफ सफाई करना, पानी रोकने के लिए छोटे-छोटे चेक डैम बनाना और बरसात के पूर्व वृक्षारोपण के लिए आवश्यक तैयारी करना जैसे काम किए गए।
मई की चिलचिलाती धूप के बावजूद श्रमदान कार्यक्रम को आशा से अधिक सफलता प्राप्त हुई। बेतवा प्रेमियों के सप्ताह पर्यंत चलने वाले इस अभियान में छोटे बड़े 55 चेक डैम बनाए गए, जिनमें संग्रहित होने वाला वर्षा जल निश्चित रूप से बेतवा की जलधारा को सतत प्रवाहमान बनाए रखने में उपयोगी साबित होगा।

उद्गम स्थल पर जलधारा के सतत प्रवाह के लिए जरूरी है कि भूजल का अंधाधुंध दोहन ना हो।आसपास वृक्षों की कटाई ना हो और पानी की अधिक खपत वाली फसलों की जगह किसान फलदार पेड़ों के बगीचे विकसित करें। इसके लिए समूह द्वारा जन जागरण अभियान भी चलाया जा रहा है।

इन दिनों अभियान का दूसरा चरण प्रारंभ हो चुका है; जिसके तहत उद्गम स्थल के चारों ओर सघन वृक्षारोपण किया जा रहा है। मई में आयोजित प्रथम चरण के दौरान इसके लिए स्थानीय लोगों को समझाइए दी गई थी। जिन ग्राम वासियों ने वृक्षारोपण के लिए गड्ढे तैयार कर रखे थे उन्हें बेतवा समूह द्वारा पौधे भेंट किए गए। हर उस परिवार को 10 वृक्ष भेंट करने का लक्ष्य रखा गया है जो उन्हें संरक्षित करने का संकल्प लेगा।
यह अभियान पूरी वर्षा ऋतु के दौरान चलाए जाने की योजना है।


इस पूरे अभियान की उल्लेखनीय उपलब्धि यह है कि अभियान पूर्णतः जन सहयोग से संचालित किया जा रहा है, जिसमें बच्चों,युवाओं,महिलाओं और बुजुर्गों सभी की उत्साहपूर्ण भागीदारी देखी जा रही है।
दरअसल बेतवा प्रेमियों की इस पहल को सिर्फ बेतवा के उद्गम स्थल को पुनर्जीवित करने के प्रयास के रूप में ही नहीं ,अपितु तमाम जल स्रोतों के संरक्षण-संवर्धन के प्रतीक के रूप में रेखांकित किया जाना चाहिए।
*अरविन्द श्रीधर