आज हर कोई जल्दी से जल्दी सब कुछ पा लेने की हड़बड़ी में हैं। यह हड़बड़ी जीवन शैली को गहरे तक प्रभावित कर रही है। यह मानसिक अशांति का कारण भी बन रही है। जीवनशैली जनित दुष्प्रभाव शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। हम आए दिन ऐसी घटनाओं के समाचार सुनते हैं जो युवाओं की अस्थिर मन:स्थिति की वजह से घटित होती हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है सफलता को ही सब कुछ मान लेना और थोड़ी सी असफलता पर विचलित हो जाना।
योग इस विचलन से छुटकारा पाने का सहज सरल मार्ग है। यदि युवा योग को दैनिक जीवन का हिस्सा बना लें, तो जीवन में घटित होने वाली सभी घटनाओं को संभालने की सामर्थ्य विकसित कर सकते हैं।
योग सफलता को संभालने का विवेक भी देता है,और असफलता को संभालने की सामर्थ्य भी। योग सिर्फ शारीरिक व्यायाम ही नहीं है। यह मनुष्य को मानसिक स्थिरता,धैर्य और संयम का पाठ भी पढ़ाता है।
मानव जीवन के लिए धैर्य और संयम भौतिक संसाधनों से कहीं अधिक ज़रूरी हैं।
आज के दौर में युवा साथी ही नहीं,हर आयु वर्ग के लोग पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण को ही प्रगतिशीलता मान बैठे हैं; जबकि पश्चिम मानसिक शांति के लिए भारत के योग की ओर देख रहा है।
योग भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। वह संस्कृति जो भौतिकवाद की अपेक्षा प्रकृतिवाद के अधिक नजदीक है। जिसमें सिर्फ जीव जंतुओं को ही नहीं पेड़-पौधों,नदियों और पहाड़ों को भी सहचर माना गया है।
अब यही बात सारा विश्व मान रहा है। यह अलग बात है कि मनुष्य की भौतिक संसाधन जुटाने की लालसा अभी भी समाप्त नहीं हुई है।
भारत में विकसित हुआ योग जीवन को समग्रता में देखता है। इसके अनुसार योग कुछ निर्धारित शारीरिक मुद्राओं का नाम भर नहीं है, बल्कि एक ऐसी पद्धति है जो सदाचरण से प्रारंभ होकर परम सत्ता से एकाकार होने तक की यात्रा कराती है।
ऋषि पतंजलि ने योग के आठ सोपान निर्धारित किए हैं।
1- यम – सदाचरण, सामाजिक अनुशासन
2- नियम – शौच, स्वाध्याय आदि व्यक्तिगत अनुशासन
3- आसन – शरीर को लचीला बनाने के लिए विभिन्न शारीरिक मुद्राएं
4- प्राणायाम – श्वास-प्रश्वांस नियंत्रण
5- प्रत्याहार – इंद्रिय संयम
6- धारणा – ध्यान केंद्रित करने की प्रक्रिया,एकाग्रता
7- ध्यान – मन की एकाग्रता में निरंतरता
8- समाधि – पूर्ण आनंद और शांति की परमावस्था, परम चेतना से एकरूपता।
यह है ऋषि परंपरा से मिला अष्टांग योग जो व्यक्तिगत और सामाजिक प्रगति के साथ-साथ आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
यहां यह ध्यान रखे जाने की आवश्यकता है कि योग एक जीवन शैली है, वनडे इवेंट नहीं। इसे दिनचर्या का हिस्सा बनाकर, धैर्यपूर्वक अभ्यास में लाने से ही शारीरिक और मानसिक दृढ़ता हासिल की जा सकती है।
वैसे तो भारतीय योगाचार्यों ने विश्व के अनेक देशों में योग को लोकप्रिय बनाया है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 जून का दिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित होने के बाद दुनिया के 100 से अधिक देश योग की ओर आकृष्ट हुए हैं।
योग भारतीय संस्कृति के विश्वव्यापी प्रसार का माध्यम बन रहा है। आईए,अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर हम संकल्प लें कि योग विश्वव्यापी शांति और सहअस्तित्व का माध्यम भी बने।

*योग गुरु डॉ.मिलिन्द्र त्रिपाठी
संस्थापक आरोग्य योग संकल्प केन्द्र, उज्जैन
9977383800