भारत के पूर्वी तट पर उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित जगन्नाथ धाम सनातन परंपरा में मान्य चार धामों में से एक है। वैष्णव परंपरा में जगन्नाथ पुरी की विशेष मान्यता है। आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठों में से एक गोवर्धन मठ भी यहीं पर स्थित है।
रथ यात्रा जगन्नाथ पुरी तीर्थ का प्रमुख वार्षिक पर्व है। प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को यह यात्रा निकाली जाती है,जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। यात्रा के लिए तैयार किए गए विशिष्ट रथों में सवार होकर भगवान जगन्नाथ,श्री बलभद्र और देवी सुभद्रा नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। भगवान जगन्नाथ की एक झलक पाने एवं रथ खींचने का सौभाग्य पाने की लालसा लिए देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु यात्रा में सम्मिलित होते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान उमड़ने वाले अपार जनसैलाब की हिलोरें मारती आस्था का अनुभव प्रत्यक्ष दर्शन से ही किया जा सकता है। उसका वर्णन शब्दों में संभव नहीं है।
देश के अन्य धार्मिक नगरों में भी जगन्नाथ रथ यात्राएं निकालीं जाती हैं। सबकी अपनी परंपराएं एवं इतिहास है,लेकिन मध्य प्रदेश के विदिशा जिले की ग्यारसपुर तहसील के गांव मानोरा में स्थित जगदीश मंदिर एवं यहां निकाली जाने वाली जगदीश रथ यात्रा अपने आप में विशिष्ट है। हज़ारों लाखों श्रद्धालुओं के हृदय में मानोरा लघु जगन्नाथ पुरी के रूप में प्रतिष्ठित है।

मानोरा के जगदीश स्वामी मंदिर का इतिहास 200 वर्ष से अधिक पुराना है।मंदिर में भगवान जगन्नाथ, श्री बलभद्र एवं देवी सुभद्रा के विग्रह विराजमान हैं।
मानोरा स्थित जगदीश मंदिर भक्ति एवं आस्था का जीता जागता स्मारक है।
कहा जाता है कि मानोरा का जगदीश मंदिर भगवान जगन्नाथ के कृपा प्रसाद से स्थापित हुआ है,और आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को उनकी सूक्ष्म उपस्थिति यहां महसूस की जाती है। इसीलिए पूरे इलाके में इस स्थान की मान्यता जागृत तीर्थ के रूप में है।
गांव के तरफदार श्री माणिकचंद्र एवं उनकी पत्नी पद्मावती, जगन्नाथ स्वामी के अनन्य भक्त थे। पति-पत्नी प्रतिवर्ष जगन्नाथ धाम दर्शन के लिए जाया करते थे। एक बार उनके मन में संकल्प उठा की क्यों न मानोरा से पुरी की यात्रा दंडवत प्रणाम करते हुए पैदल ही की जाए!

मन में संकल्प उठा है,तो जगन्नाथ स्वामी पूरा भी करवाएंगे;यह सोचकर दोनों दंडवत प्रणाम करते हुए पैदल ही जगन्नाथ पुरी की यात्रा पर निकल पड़े।
असाध्य से लगने वाले इस संकल्प की पूर्ति के लिए पति-पत्नी निकल तो पड़े लेकिन जगन्नाथ पुरी की दूरी और उस पर मार्ग की दुश्वारियों ने उन्हें निढाल कर दिया। शरीर लहू लुहान हो गया,लेकिन वह संकल्प से डिगे नहीं। जगदीश स्वामी के प्रति अनन्य आस्था के सहारे उन्होंने यात्रा जारी रखी।
कहा जाता है कि तरफदार दंपत्ति की इस कठोर तपस्या से भगवान जगन्नाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने पति-पत्नी को वचन दिया कि वह प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को मनोरा आया करेंगे।
लोक आस्था है कि भगवान अपने दिए हुए वचन के अनुसार रथ यात्रा के दौरान प्रतिवर्ष मानोरा पधारते हैं। यह भी कहा जाता है कि भगवान के मानोरा पधारने के दौरान पुरी की रथ यात्रा थोड़ी देर के लिए रुक जाती है।
इस विशिष्ट प्रसंग के कारण ही मानोरा की जगदीश रथ यात्रा के प्रति श्रद्धालुओं में विशेष आस्था है।

इस अवसर पर आयोजित मेले में हजारों लोग आते हैं,लेकिन उसके अनुरूप यहां व्यवस्थाएं नहीं हैं। सरकार को चाहिए कि श्रद्धालुओं और तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए जिस तरह अन्य धार्मिक स्थलों पर विकास कार्य किए जा रहे हैं, वैसे ही योजना मानोरा के लिए भी स्वीकृत की जाए। साल दर साल बढ़ती जा रही श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए यह ज़रूरी है।

*गोविंद देवलिया
(लेखक साहित्यकार एवं विदिशा के इतिहास के अध्येता है)