पौराणिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के दो नाटक

5 Min Read

अनिल दुबे फिल्म,टीवी सीरियल और रंगमंच पर लंबे समय से सक्रिय हैं। निर्देशक के रूप में भी और लेखक के रूप में भी। उनका करियर शेखर कपूर जैसे नामी निर्देशक के सहायक के रूप में प्रारंभ हुआ, और आगे चलकर उन्होंने स्वतंत्र रूप सेअनेक टीवी धारावाहिकों का निर्देशन किया। इस दौरान वह रंगमंच पर भी बराबर सक्रिय बने रहे।

कविता गांधी भी विगत कई वर्षों से फिल्म,
टेलिविजन,वेब सीरीज,टेली फिल्म,डॉक्यूमेंट्री और कॉर्पोरेट फिल्मों के लिए लेखन कार्य कर रही हैं। अनेक धारावाहिकों में सहायक निर्देशक के रूप में कार्य करने के साथ-साथ उन्होंने विज्ञापन और कॉर्पोरेट फिल्मों का स्वतंत्र रूप से निर्देशन भी किया है।

अब इन दोनों ने मिलकर नाट्य लेखन के क्षेत्र में प्रवेश किया है। हाल ही में इनके लिखे दो नाटक प्रलेक प्रकाशन, मुंबई से प्रकाशित हुए हैं।

पहला नाटक है – “श्रीकृष्ण तुम कब आओगे!” यह नाटक श्रीकृष्ण के लीला संवरण के उपरांत घटित घटनाओं पर आधारित है।
श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और महाभारत के दौरान उनकी भूमिका पर विपुल साहित्य लिखा गया है। उनके लीला संवरण के उपरांत घटित घटनाओं पर अपेक्षाकृत कम लिखा गया है। नाट्य विधा में तो और भी कम।
श्रीकृष्ण तुम कब आओगे! पुस्तक इस अभाव की पूर्ति करती है।
नाटक में उन पात्रों की पीड़ा और भावनाएं उभरकर सामने आई हैं ,साहित्य में जिनकी चर्चा अपेक्षाकृत कम हुई है।
सत्यभामा का पश्चाताप,द्रोपदी की आत्मग्लानि, अश्वत्थामा की बेचैनी,अक्रूर का अपराधबोध,वसुदेव और देवकी की योग समाधि, दारूक की निष्ठा और उद्धव की मित्रता इन सबका भावप्रवण वर्णन नाटक मैं किया गया है।
राधा को कृष्ण का अंतिम संदेश देते समय राधा और उद्धव के बीच में जो वार्तालाप होता है वह इस नाटक का सर्वाधिक संवेदनशील दृश्य है।
नाटक के निर्देशक जयंत देशमुख का कहना है-यह नाटक एक दार्शनिक यात्रा है,जिसमें कृष्ण सिर्फ एक ईश्वर नहीं बल्कि हर मनुष्य की आत्मा में बसने वाला प्रेम,करुणा और विवेक हैं।

लेखक द्वय की दूसरी कृति है- “पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई”, जो भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है।

अहिल्याबाई ने अपने पूरे जीवन में संस्कार, न्यायप्रियता और धर्म आधारित शासन व्यवस्था के जो प्रतिमान स्थापित किए हैं, इतिहास में उनकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती। यही कारण है कि उन्हें पुण्यश्लोक अहिल्याबाई कहा गया।
अत्यंत साधारण परिवार में जन्म लेकर देवी अहिल्या हो जाने तक का उनका सफर इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है।
अहिल्याबाई के लिए यह सफ़र आसान नहीं रहा। स्त्री शिक्षा को लेकर उनकी सोच हो अथवा आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी, अपने हर क्रांतिकारी विचार को अमल में लाने के लिए उन्हें घर और बाहर सभी जगह कठोर संघर्ष करना पड़ा।
विधवाओं को संपत्ति में अधिकार दिलाना, सशस्त्र स्त्री सेना का गठन, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रारंभ किया गया वस्त्र उद्योग आदि कुछ ऐसे काम हैं जो उन्हें प्रजा हितेषी शासक के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।
एक शासक के रूप में उनका सबसे बड़ा योगदान रहा है, राज्य व्यवस्था को जनोन्मुखी बनाना; अनुशासन और न्याय व्यवस्था को कड़ाई से लागू करना। उनकी न्याय व्यवस्था छोटे-बड़े और अपने-पराए में भेद नहीं करती थी।
अपनी प्रजा के बीच इसीलिए तो वह देवी के रूप में प्रतिष्ठित हो सकीं।

अहिल्याबाई की जीवन गाथा जितनी उपलब्धियों से भरी है,उससे कहीं अधिक संघर्षों से भरी हुई है। उनका जीवन एक मिसाल है कि कैसे एक साधारण ग्रामीण किशोरी अपनी संघर्षों की बदौलत असाधारण उपलब्धियां हासिल करती है।
अहिल्याबाई के परोपकारी कार्य केवल अपने मालवा राज्य तक के लिए सीमित नहीं थे वरन उन्होंने देशभर में जनकल्याणकारी गतिविधियों का संचालन किया। उन्होंने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और असम से लेकर गुजरात तक अनेक मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। तीर्थ स्थलों तक पहुंचना आसान हो इसके लिए मार्गो का निर्माण कराया। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए धर्मशालाओं का निर्माण कराया।
सनातन परंपरा का शायद ही कोई ऐसा तीर्थ स्थल होगा जहां पर अहिल्याबाई की कोई निशानी ना हो।

ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व की स्वामिनी अहिल्याबाई का जीवन दो-ढाई घंटे के एक नाटक में पिरोना कोई आसान काम नहीं है; वह भी तब जब 100-150 एपिसोड का एक सीरियल टेलीविजन पर दिखाया जा चुका हो।
इस दृष्टि से लेखकों का यह प्रयास सराहनीय है।

यह दोनों नाटक मूल रूप से मध्य प्रदेश सरकार के प्रतिष्ठा आयोजन ‘विक्रमोत्सव 2025’ के लिए लिखे गये थे। इनका पहला मंचन भी उज्जैन में ही हुआ, जिसे दर्शकों और समीक्षकों दोनों की सराहना प्राप्त हुई।

अत्यंत सरल-सहज और हृदय स्पर्शी भाषा में लिखे गए इन नाटकों का प्रकाशन प्रलेक प्रकाशन,मुंबई ने किया है।
यह पहल रंगकर्मियों के लिए उपयोगी साबित होगी।

*अरविन्द श्रीधर

इस पोस्ट को साझा करें:

WhatsApp
Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *