रिश्तों को लग गई है टोने-टोटकों की नज़र…

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पश्चिमी जगत में बहुत लंबे समय तक भारत की छवि सपेरों और जादू-टोना वाले देश के रूप में बनी रही। इस छवि को बदलने के लिए भारतीय मेधा को बरसों पापड़ बेलना पड़े, तब कहीं जाकर भारतीय ज्ञान और प्रतिभा की वास्तविक तस्वीर विश्व के सामने उभरी। आज विश्व का शायद ही कोई ऐसा देश होगा,जहां भारतीयों ने अपनी प्रतिभा के बल पर महत्वपूर्ण मुकाम हासिल ना किया हो।

लेकिन विडंबना है कि इतनी तरक्की के बाद भी देश में कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं, जो सभ्य समाज को शर्मसार कर देती हैं।

बिहार के पूर्णिया जिले में एक परिवार के पांच सदस्यों को इसलिए जिंदा जला दिया गया क्योंकि घर की महिला पर डायन होने का शक था। हैरानी की बात तो यह है कि पूरे परिवार को जिंदा जलाने का यह फैसला बाकायदा पंचायत बुलाकर कर लिया गया। सूचनाओं के अनुसार इस सब के पीछे गांव में प्रचलित झाड़-फूंक का विवाद ही बताया जा रहा है।

दूसरी घटना मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में कथित नरबलि को लेकर है। स्थानीय पुलिस सूत्रों के हवाले से अखबारों में प्रकाशित समाचार के अनुसार मामला प्रथम दृष्टया नरबलि का ही लग रहा है।

कहां तो हम भारत को 2047 तक विश्व का सर्वोच्च विकसित राष्ट्र बनाने का सपना देख रहे हैं,और कहां इस तरह की आदिम युगीन वीभत्स घटनाएं। वह भी तब,जब हमारा संविधान नागरिकों से वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाए जाने की अपेक्षा रखता है।

देश में जब भी ऐसी घटनाएं घटित होती हैं, तंत्र विद्या और तांत्रिक सुर्खियों में आ जाते हैं।

भारतीय ज्ञान परंपरा में तंत्र विद्या का विशिष्ट स्थान है। आगम साहित्य में इस विद्या पर प्रचुर जानकारी उपलब्ध है। यह साधना की एक विशिष्ट पद्धति है जिसमें साधक जैसे-जैसे उच्च सोपान पर पहुंचता जाता है, वैसे-वैसे उसकी आत्मोन्नति की अनुभूति गहन होने लगती है। एक स्थिति ऐसी आती है जब साधक साधना से उत्पन्न ऊर्जा से दैदीप्यमान हो उठता है। साधक यहां रुकता नहीं है,बल्कि निजानंद में गोते लगाता हुआ आत्मतत्व की खोज जारी रखता है।
कुल मिलाकर सनातन परंपरा में ‘आत्मतत्व’ की खोज के लिए वर्णित अनेक साधना पद्धतियों में से तंत्र विद्या भी एक पद्धति है।
अपनी-अपनी मानसिक स्थिति के अनुरूप कोई साधक ज्ञान मार्ग पर अपनाता है,तो कोई भक्ति मार्ग;कोई कर्म को ही साधना मानता है, तो कोई तंत्र मार्ग को चुन लेता है।

यहां तंत्र विद्या और तंत्र साधना के संबंध में मोटी-मोटी जानकारी देने का ध्येय यह बताना है कि यह विद्या वैसी बिल्कुल नहीं है, जैसी समाचार माध्यमों और विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर तथाकथित अधकचरे तांत्रिकों को द्वारा प्रचारित किया जा रहा है।

तंत्र विद्या को व्यवसाय बनाकर धन ऐंठने वाले न जाने कितने तथाकथित तांत्रिक इस समय सक्रिय हैं, जो टोने- टोटकों के माध्यम से समाज को गुमराह करने में लगे हुए हैं।
यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया मंच पर बीमारियां दूर करने,मनचाही संतान प्राप्त करने,शत्रु बाधा दूर करने,मुकदमा जिताने, गुप्त गड़ा धन निकलवाने, भूत -प्रेत बाधा दूर करने और हर प्रकार की सफलता दिलाने का दावा करते हुए न जाने कितने तांत्रिक मौजूद हैं।
आश्चर्य की बात तो यह है कि अपने आपको पढ़ा- लिखा समझदार कहने वाले लोग भी इनके चक्कर में पड़ जाते हैं। ना केवल पड़ जाते हैं,बल्कि कई बार अपना सब कुछ गवां बैठते हैं।

एक समय था जब दूर-दराज के पिछड़े इलाकों से ही टोने- टोटके संबंधी खबरें आया करती थीं। कहीं ‘गुनिया’ तो कहीं ‘बड़वा’ या ‘ओझा’ झाड़-फूंक के माध्यम से लोगों की शारीरिक-मानसिक व्याधियां दूर करने के नाम पर अपनी दुकान चलाया करते थे।
अब नगरीय इलाकों से भी ऐसी खबरें आने लगी हैं।

मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि उसे हर वह सुख-सुविधा प्राप्त हो,जो सफल और धनाढ्य लोगों को प्राप्त है। उनकी सफलता अथवा धनाढ्य बनने के पीछे कितना श्रम है, इसे कोई नहीं जानना चाहता।बस, हर व्यक्ति शॉर्टकट अपनाकर सफल होना चाहता है; भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करना चाहता है।
इसी प्रवृत्ति का फायदा उठा रहे हैं तथाकथित तांत्रिक। न जाने कितने प्रकार की लाल किताबें हैं, जिनका सहारा लेकर व्यवसायी तांत्रिक जीवन की हर समस्या का हल करने का दावा करते हैं।

टोना-टोटका का सहारा अब केवल धन-दौलत और मान-प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए ही नहीं लिया जा रहा, इसकी पैठ सामाजिक ताने-बाने और पारिवारिक रिश्तों तक में हो चुकी है।
हम आए दिन ऐसे समाचार देखते-सुनते रहते हैं जो पारिवारिक रिश्तों में टोने-टोटके की घुसपैठ की ओर इशारा करते हैं।
सामाजिक जीवन के लिए यह शुभ संकेत नहीं है।

बेजान पशु पक्षियों के लिए दाना पानी की व्यवस्था करना सहज मानवीय गुण है, लेकिन सोशल मीडिया पर उपलब्ध ज्ञान ने इसे टोटका बना दिया। कुछ और नमूने देखिए – कोई पीली मिठाई खिलाने के लिए लाल गाय के पीछे दौड़ रहा है, तो कोई काले कुत्ते को दूध पिलाने के लिए उसकी मिजाजपोसी कर रहा है। कोई शहद लगे बेलपत्र शिवजी को चढ़ाकर परीक्षा में पास होना चाहता है,तो कोई देवी देवता को अपना बिजनेस पार्टनर बनाकर धन कमाने की लालसा रखता है।
कोई दिन में तीन बार नजर उतरवा रहा है तो कोई अपनी उपलब्धियों की चर्चा इसलिए परिजनों से नहीं करना चाहता क्योंकि ऐसा करने से उसका बना- बनाया काम बिगड़ सकता है।
सफलता प्राप्त करने के लिए कोई घर आए मेहमान को सफेद रसगुल्ला खिलाना चाहता है,तो कोई अपने बच्चों को स्वस्थ्य रखने के लिए उसका झूठा किसी दूसरे बच्चे को खिलाना चाहता है।

इतना ही नही, व्हाट्सएप ज्ञान के आधार पर घरों में पौधे लगाने की प्रवृत्ति भी इन दिनों प्रचलन में है।
क्रासूला का पौधा घर में इसलिए नहीं लगाना कि इससे घर की आवोहवा ठीक होगी ; इसलिए लगाना है क्योंकि सोशल मीडिया पर बिखरे ज्ञान के अनुसार इसी पौधे के कारण अंबानी देश के सबसे बड़े उद्योगपति बने हैं।

कुछ वर्षों पहले तक परिवार के सदस्य एक दूसरे की वस्तुएं बड़ी सहजता से उपयोग कर लिया करते थे। कोई चीज पसंद आने पर हक से माँग भी लेते थे।मामा,बुआ, मौसी के परिवारों तक में वस्तुओं का आदान-प्रदान सामान्य बात थी। लेकिन सोशल मीडिया पर उपलब्ध अधकचरे ज्ञान की कृपा से आपसी संबंधों में प्रगाढ़ता लाने वाला यह चलन अब विलुप्त होता जा रहा है।
अब चर्चा इस बात की है कि किसी अन्य के जूते ,कपड़े, किताबें आदि इस्तेमाल करने से भाग्य रूठ सकता है।फिर भी यदि कोई आग्रह पूर्वक आदान-प्रदान करना चाहे तो उसकी नीयत ही शंकास्पद हो जाती है। कहीं कोई टोटका तो नहीं कर रहा?

यह भी देखने में आ रहा है सोशल मीडिया के ज्ञान से प्रभावित कुछ लोग नाते-रिश्तेदारों और दोस्तों का अपने घर आना पसंद नहीं करते। उन्हें शंका है कि आगंतुकों की बुरी नजर से उनकी खुशियों को ग्रहण लग सकता है।
किसी की समृद्धि देखकर सामने वाले में ईर्ष्याभाव जाग्रत हो यह संभव है ;सहज मानवीय स्वाभाव है।लेकिन नज़र लग जाने का वहम पालकर अपने दरवाजे आगंतुकों के लिए बंद कर देना, यह विकृत सोच है जो सामाजिक ताने-बाने के लिए बेहद खतरनाक संकेत है।

हालत यह है कि रिश्तो की गर्मजोशी ठंडी पड़ती जा रही है,और औपचारिकता प्रबल होती जा रही है।

एक ओर तो हम तकनीकी क्षेत्र में नित-नई ऊंचाइयां छू रहे हैं ,दूसरी ओर टोने टोटके का मायाजाल हमें आदिम युग की ओर ले जा रहा है।
कहीं बीमारियों को ठीक करने के लिए गर्म लोहे से दागने की प्रथा चल रही है,कहीं खटिया चला कर तंत्र-मंत्र के प्रभाव को दूर करने के दावे किए जा रहे हैं। कहीं गड़ा धन निकालने के नाम पर तंत्र क्रियाएं चल रहीं हैं ,तो कही असाध्य रोगों का उपचार तंत्र और झाड़-फूंक के माध्यम से करने के दावे किए जा रहे हैं।
यह भी देखने में आता है कि तमाम झाड़-फूंक और टोने टोटके आजमाने के बाद जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है,तब पीड़ित को अस्पताल ले जाया जाता है।अधिकांश मामलों में तब तक देर हो चुकी होती है।

हैरानी की बात तो यह है कि तंत्र के नाम पर ठगी के मामले अख़बारों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं, फिर भी लोग शिक्षा नहीं लेते।
यह भी विडंबना है कि अधिकांश मामलों में तंत्र अथवा टोना टोटका के नाम पर ठगने वाले अक्सर बिना पढ़े लिखे या कम पढ़े लिखे होते हैं ,जबकि ठगाने वाले अधिकांशतः पढ़े लिखे लोग होते हैं ।

अब तो कुछ नामी कथावाचक भी इस क्षेत्र में कूद पड़े हैं। उनकी कथाओं में भगवन्नाम से अधिक चर्चा टोना-टोटकों की होती है।

यह समस्या केवल और केवल जागरूकता के माध्यम से ही हल हो सकती है। सरकार से अधिक यह समाज का दायित्व है कि वह लोगों को इस मकड़जाल से बाहर निकाले। धार्मिक संस्थान,संगठन और उपदेशकों को भी इस दिशा में प्रयास करना होगा, वरना अधकचरे तांत्रिकों की दुकानदारी चलती रहेगी और सनातन परंपरा की एक अच्छी खासी विद्या के प्रति लोगों में गलत धारणाएं बनी रहेंगी।

*अरविन्द श्रीधर

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