रोजगार संकट और अवसरों की संरचना

Mahe Aalam By Mahe Aalam
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भारत की आर्थिक विकास दर पिछले कुछ वर्षों में औसतन 6.5% केआसपास रही है। लेकिन यह तथ्य गहराई से सोचने के लिए विवश करता है कि इस विकास का समुचित लाभ रोजगार सृजन के रूप में सामने नहीं आया है। युवा बेरोजगारी दर
15–29 वर्ष की आयुमें 10% सेअधिक बनी हुई है, और स्नातक युवाओं में यह दर 28–30% तक पहुँच जाती है। एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें लाखों शिक्षित युवा कार्य के अभाव में निराशा और हताशा के गर्त में जा रहे हैं। वे या तो
कार्य ढूंढ़ना ही छोड़ देते हैं — जिन्हें ‘discouraged workers’ कहा जाता है — या अपनी योग्यताओं से बहुत कमतर कार्य
करने के लिए बाध्य होते हैं।
यह एक सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक त्रासदी है। जब एक युवा राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था से निकलकर आर्थिक व्यवस्था में प्रवेश करता है,और वहाँ उसे समुचित अवसर नहीं मिलता, तो उसकी व्यक्तिगत क्षमता, परिवार की आशा और
राष्ट्र की उत्पादकता — तीनों पर आघात होता है। यही कारण है कि भारत के डेमोग्राफिक डिविडेंड को साकार करने के लिए केवल GDP वृद्धि पर्याप्त नहीं, बल्कि समावेशी और गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजन अत्यंत आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त, देश की लगभग 80% कार्यशील जनसंख्या आज भी अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य कर रही है। ये लोग न केवल सामाजिक सुरक्षा से वंचित हैं, बल्कि स्थायित्व, न्याय और गरिमा से युक्त कार्य के अधिकार से भी दूर हैं। ऐसे में हमें
दोहरे प्रयास करने होंगे — एक ओर नए रोजगार के अवसरों का निर्माण और दूसरी ओर मौजूदा अनौपचारिक कार्यबल को औपचारिक क्षेत्र में लाना।
गिग अर्थव्यवस्था की ओर युवाओं की झुकाव और डिजिटल मंचों के माध्यम से कार्य करने का चलन भी बढ़ा है। यह एक सकारात्मक प्रवृत्ति हो सकती है,यदि इसे पारदर्शी, संरक्षित और समुचित श्रम अधिकारों के साथ विकसित किया जाए।
लेकिन यदि इसे ‘सस्ता श्रम’ और ‘अनियमित अनुबंधों’ की बुनियाद पर छोड़ दिया गया, तो यह एक नए प्रकार की असमानता को जन्म देगा।
रोजगार केसंकट के एक और पक्ष में लैंगिक असमानता की गहरी खाई भी है। जहाँ पुरुषों की भागीदारी कार्यबल में अपेक्षाकृत अधिक है, वहीं महिलाएं अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक और संरचनात्मक बाधाओं के कारण पीछे छूट जाती हैं।
सुरक्षित यातायात, कार्यस्थलों पर लैंगिक समानता, मातृत्व के बाद पुनः वापसी केअवसर — ये सभी पहलू अभी भी चुनौतियों के रूप में उपस्थित हैं।
इसके अतिरिक्त, क्षेत्रीय असंतुलन भी रोजगार संकट को गहरा करता है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात जैसे राज्य औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में तेजी से बढ़े हैं।उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्य आज भी कृषि पर अत्यधिक निर्भर हैं।
इससेअंतर्राज्यीय प्रवास, शहरी भीड़, अव्यवस्थित विकास और सामाजिक तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है।

*माहे आलम,
(लेखक, माई भारत,युवा कायर्क्रम एवं खेल मंत्रालय,भारत सरकार में उपनिदेशक के पद पर कार्यरत हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं।)

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