अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।
सज्जनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए जिन्होंने अवन्तिपुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है,उन महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं अकाल मृत्यु से बचने के लिए नमस्कार करता हूं।
श्रीमहाकालेश्वर भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में तीसरा ज्योतिर्लिंग है। यह मध्य प्रदेश के अंतर्गत शिप्रा नदी के तट पर उज्जैन नगर में अवस्थित है। उज्जैन का एक नाम अवंतिकापुरी भी है। भारत की मोक्षदायक सप्तपुरियों में इसका एक महत्वपूर्ण स्थान है-
अयोध्या मथुरा माया काशी कांच्ञि ह्यवन्तिका।
पूरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका:।।
अयोध्या,मथुरा,हरिद्वार,काशी,काच्ञि, अवंतिका तथा द्वारका – यह सातों पुरियां मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।
उज्जैन में प्रति बारह वर्ष पर महाकुंभ का स्नान और मेला लगता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं,तब सिंहस्थ महाकुंभ का पावन पर्व पड़ता है।
महाराज विक्रमादित्य के समय उज्जैन को ही भारत की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था। यहां पर संदीपनी ऋषि का आश्रम भी है,जहां पर द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने शिक्षा प्राप्त की थी।
शिवपुराण में भगवान श्री महाकालेश्वर के प्राकट्य की कथा विस्तार से बताई गई है-
ब्रह्मा की द्वंदात्मक सृष्टि में दैवी एवं आसुरी लोगों के संघर्ष चलते ही रहते हैं। दैवी संपदा की वृद्धि को आसुरी संपदा के लोग सहन नहीं कर पाते,फलत: वे धर्म के ह्रास के लिए तत्पर हो जाते हैं।
अवंतिका पुरी में शुभकर्मपरायण तथा नित्य वेदों का स्वाध्याय करने वाले वेदप्रिय नाम के ब्राह्मण रहते थे। भगवान शिव की कृपाप्रसाद से वेदप्रिय के देवप्रिय, प्रियामेधा, सुकृत एवं सुव्रत नाम के चार पुत्र हुए,जो शिव पूजन में निरंतर तत्पर रहने वाले थे।
जिस समय वेदप्रिय के चारों पुत्रों के तपोवल एवं शिव उपासना के प्रभाव से धर्म साम्राज्य का शंखनाद चारों दिशाओं में गूंज रहा था,उसी समय रत्नमाला नामक पर्वत पर दूषण नामक दैत्यों का राजा रहता था। वह असुर महाबलवान एवं धर्म से द्वेष रखने वाला था। उसने स्वर्ग लोक पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया था। उस दुष्ट दैत्य ने धर्माचरण पर भी रोक लगा दी और धार्मिक लोगों को कष्ट देने लगा।
उसके अत्याचारों से केवल अवंतिका नगरी ही बची रही। इसलिए उसने बहुत बड़ी सेना लेकर अवंतिका के ब्राह्मणों का वध करने के लिए चढ़ाई कर दी।
उस दैत्य ने ज्यों ही शिव ध्यान में तत्पर ब्राह्मणों को मारना चाहा,उसी समय पार्थिव पूजन के स्थान पर घोर शब्द करता हुआ एक गड्ढा उत्पन्न हो गया। उस गड्ढे से विकट रूपधारी,महाकाल नाम से विख्यात,दुष्टहंता एवं सज्जनों को गति देने वाले भगवान शिव प्रकट हो गए।
एक अन्य कथा के अनुसार उज्जैन नगर में चंद्रसेन नामक एक महान राजा रहता था। चंद्रसेन भगवान शिव में प्रगाढ़ भक्ति रखने वाला था। एक बार एक ग्वालिन एवं उसके पुत्र ने चंद्रसेन को शिवजी की पूजन करते हुए देखा और गोपी पुत्र के मन में भी भगवान शिव के प्रति असीम श्रद्धा उत्पन्न हो गई। वह भी भगवान शिव के ध्यान एवं पूजन में तन्मय हो गया। गोपी पुत्र की अनन्य भक्ति एवं तपस्या से प्रसन्न
होकर देवाधिदेव महादेव महाकाल स्वरूप में प्रकट हुए।
राजा चंद्रसेन अपने अमात्यों से गोपबालक की भक्ति और भगवान शिव की कृपा का समाचार सुनकर भाव विभोर हो गए।
इसी गोपबालक की आठवीं पीढ़ी में महायशस्वी नंद नाम के गोप उत्पन्न हुए, जिनके आंगन में साक्षात् नारायण ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया।
उज्जैन में 1107 से 1728 तक यवनों का शासन था। उनके शासनकाल में अवंतिका की लगभग 4500 वर्षों में स्थापित प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्रायः नष्ट हो चुकी थीं। 1235 ईस्वी में इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर का विध्वंस किया और मंदिर के अपार वैभव को लूट लिया। 1690 ईस्वी में मराठों ने मालवा क्षेत्र पर आक्रमण किया और 29 नवंबर सन् 1738 ई को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा। 1739 से 1809 ई तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठा काल में यहां दो महत्वपूर्ण कार्य हुए- पहला महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनरप्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ कुंभ स्नान की स्थापना।
महाकाल मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। इस प्रांगण के मध्य में मंदिर है। इस मंदिर के तीन खंड है। मंदिर के सबसे ऊपरी खंड तीसरे तल पर नागचंद्रेश्वर शिवलिंग प्रतिष्ठित है, जिसका दर्शन केवल नाग पंचमी को होता है ।प्रांगण की सतह के बराबर मंदिर का दूसरा तल है। इसमें जो भगवान शंकर की लिंगमूर्ति है,उसे ओंकारेश्वर कहा जाता है। ओंकारेश्वर के ठीक नीचे के मंजिल में महाकाल की लिंगमूर्ति है। श्री महाकालेश्वर की लिंगमूर्ति विशाल है,और चांदी की जलहरी में नाग से परिवेष्ठित है। इसके एक ओर गणेश जी,दूसरी ओर पार्वती जी तथा तीसरी ओर स्वामी कार्तिकेयजी की मूर्ति है। यहां एक घृतदीप और एक तेलदीप जलता रहता है।
परकोटे में अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं। अवंतिकापुरी की अधिष्ठात्री अवंतिकादेवी का मंदिर भी परिसर में ही है। समीप ही कोटितीर्थ सरोवर है।
महाकालेश्वर के दर्शनार्थियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है और तदनुरूप व्यवस्थाएं भी की गई हैं। महाकाल लोक बनने के बाद परिसर की भव्यता में और भी वृद्धि हुई है।
वैसे तो महाकाल मंदिर में निरंतर व्रतोत्सव चलते रहते हैं,लेकिन श्रावण मास में प्रत्येक सोमवार को निकलने वाली महाकाल सवारी श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। मंदिर के शीर्ष तल पर स्थित है, नागचंद्रेश्वर मंदिर। यह मंदिर केवल नागपंचमी के दिन ही दर्शनार्थ खुलता है। मंदिर में नाग के आसन पर शिवपार्वती की सुंदर मनोहरी प्रतिमा स्थापित है।
मंदिर में होने वाली भस्म आरती भी श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है, जो केवल महाकाल मंदिर में ही होती है।
अनादि नगरी के रूप में विख्यात उज्जैन में महाकाल मंदिर के अलावा बड़े गणेश, हरसिद्धि देवी, 24 खंबा माता मंदिर,गोपाल मंदिर,भर्तहरि गुफा,कालभैरव,
सिद्धवट, सांदीपनि आश्रम,अंकपाद, मंगलनाथ, वेधशाला, 84 महादेव ,चिंतामन गणेश जैसे प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं।
उज्जैन सड़क,रेल और हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। निकटतम हवाई अड्डा इंदौर है, जो उज्जैन से 60 किलोमीटर की दूरी पर है।
(गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘द्वादश ज्योतिर्लिंग’ से साभार)