कौशल विकास और शिक्षा की नई दिशा : डेमोग्राफिक डिविडेंड को वास्तविक शक्ति में बदलने की राह

Mahe Aalam By Mahe Aalam
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भारत की युवा जनसंख्या, जो कि विश्व की सबसे बड़ी कार्यशील आबादी का प्रतिनिधित्व करती है, तभी राष्ट्र निर्माण में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैजब उसे समुचित शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल का समर्थन प्राप्त हो। शिक्षा केवल
जानकारी का संचरण नहीं है, बल्कि वह व्यक्तित्व निर्माण, नवाचार और सामाजिक उत्तरदायित्व की नींव है। यदि भारत को 21वीं सदी में वैश्विक नेतृत्व करना है, तो शिक्षा और कौशल विकास की संरचना को भविष्य की मांगों के अनुरूप रूपांतरित करना अनिवार्य है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इस दिशा में एक क्रांतिकारी पहल है,जो न केवल बुनियादी शिक्षा को मजबूत करने की बात करती है, बल्कि व्यावसायिक शिक्षा, डिजिटल साक्षरता, और जीवन-कौशल (life skills) को भी शिक्षा प्रणाली का अभिन्न हिस्सा मानती है। यह नीति स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक लचीलापन प्रदान करती है, जिससे छात्र अपनी
रुचि, योग्यता और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार विषयों का चयन कर सकें।
किंतु नीति तब तक प्रभावशाली नहीं मानी जा सकती जब तक उसका जमीनी क्रियान्वयन ठोस और परिणामदायी न हो। देश के दूरदराज क्षेत्रों में अब भी बुनियादी शिक्षण साधनों की कमी, प्रशिक्षित अध्यापकों की अनुपलब्धता, और डिजिटल डिवाइड जैसी बाधाएं व्याप्त हैं। ऐसे में भारत को शिक्षा के क्षेत्र में तीन स्तरों पर कार्य करना होगा — संरचना, सामग्री और
मानसिकता।
संरचना के स्तर पर हमें स्कूलों और कौशल प्रशिक्षण केंद्रों में डिजिटल स्मार्टक्लासरूम, लैब्स, पुस्तकालय और छात्र सहायता केंद्र स्थापित करने होंगे। सामग्री के स्तर पर पाठ्यक्रम को अधिक व्यावहारिक, प्रोजेक्ट आधारित और मूल्यनिष्ठ बनाना होगा, जिसमें केवल अंक नहीं, बल्कि नवाचार, समस्या समाधान और सहानुभूति जैसेक्षगुणों का भी मूल्यांकन हो।
मानसिकता के स्तर पर समाज, शिक्षक, माता-पिता और नीति निर्माताओं को यह समझना होगा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री प्राप्त करना नहीं, बल्कि एक सक्षम, जिम्मेदार और आत्मनिर्भर नागरिक बनाना है।
इसी प्रकार, कौशल विकास के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे “प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)”,
“संकल्प”, “STRIVE”, “राष्ट्रीय अप्रेंटिसशिप प्रोत्साहन योजना (NAPS)” और “डिजिटल इंडिया स्किलिंग” जैसे
कार्यक्रमों ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। फिर भी, आवश्यकता इस बात की है कि इन कार्यक्रमों को स्थानीय उद्योगों,उद्यमों और शैक्षणिक संस्थानों के साथ जोड़कर व्यावसायिकता और परिणाम केंद्रित बनाया जाए।
बदलते औद्योगिक और तकनीकी परिदृश्य में केवल पारंपरिक कौशल पर्याप्त नहीं हैं। अब आवश्यकता है ग्रीन स्किल्स (जैसे
सौर ऊर्जा तकनीशियन, जल संरक्षण विशेषज्ञ), डिजिटल स्किल्स (AI, डेटा एनालिटिक्स, साइबर सुरक्षा), और सामाजिक
कौशल (नेतृत्व, संचार, टीम वर्क) के समन्वय की। इसके लिए ‘माइक्रो-लर्निंग’, ‘स्टैकएबल क्रेडेंशियल्स’, और ‘हाइब्रिड लर्निंग जैसे शिक्षा मॉडल अपनाने होंगे।
विकसित देशों में देखा गया है कि जीवन भर सीखने (Lifelong Learning) की संस्कृति ने उनके नागरिकों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखा है। भारत को भी ऐसी संस्कृति को अपनाना होगा, जिसमें एक मजदूर, एक गृहणी, एक किसान या एक वरिष्ठ नागरिक भी नई तकनीक सीख सके, और बदलते समय के साथ स्वयं को जोड़ सके ।
शिक्षा और कौशल के साथ-साथ ‘उद्यमशीलता शिक्षा’ (entrepreneurship education) को भी स्कूल स्तर से जोड़ा जाना चाहिए। इससे युवा रोजगार खोजने वाले नहीं, बल्कि रोजगार सृजक बन सकेंगे। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में ‘स्थानीय नवाचार केंद्र’ (Local Innovation Hubs) की स्थापना से न केवल स्थानीय समस्याओं के समाधान मिलेंगे, बल्कि कौशल
आधारित स्थानीय रोजगार भी उत्पन्न होंगे।
इस पूरे परिदृश्य में महिला और वंचित वर्गों की भागीदारी को प्राथमिकता देना अनिवार्य है। अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक, दिव्यांग और ग्रामीण गरीब युवाओं को विशेष सहायता, छात्रवृत्ति, और प्रशिक्षक सहयोग मिलना चाहिए, ताकि शिक्षा और कौशल का लाभ समावेशी रूप से देशभर में वितरित हो सके।
भारत के ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान ने डिजिटल बुनियादी ढांचे को काफी हद तक मजबूत किया है, परंतु डिजिटल खाई अब
भी विद्यमान है। भारत नेट योजना के माध्यम से ग्राम पंचायतों तक इंटरनेट पहुँचाया जा रहा है, लेकिन अब आवश्यकता है कि डिजिटल उपकरण, स्थानीय भाषाओं में कंटेंट और प्रशिक्षित डिजिटल शिक्षक भी उपलब्ध कराए जाएं ।
कुल मिलाकर, शिक्षा और कौशल विकास को भारत के डेमोग्राफिक डिविडेंड के केंद्रीय स्तंभ के रूप में पुनः परिभाषित करने
की आवश्यकता है। हमें ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है जो न केवल रोजगार दे, बल्कि सोचने, सृजन करने और नेतृत्व करने की क्षमता भी विकसित करे। यही वह दृष्टि है जो भारत को एक मानव पूंजी महाशक्ति के रूप में स्थापित करेगी।

*माहे आलम
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं।)

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