द्वादश ज्योतिर्लिंग मानस यात्रा – 4 ,5 एवं 6

karmveer By karmveer
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4- श्रीओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में श्री ओंकारेश्वर का चौथा स्थान है। यह स्थान मध्य प्रदेश के अंतर्गत नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि यहां दो ज्योतिर्लिंगों- श्री ओंकारेश्वर और श्री अमलेश्वर की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग के रूप में की गई है।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों का नाम निर्देश करने वाले श्लोक में ओंकारममलेश्वरम् पाठ देखकर और उसमें ओंकारम् +अमलेश्वरम् यह संधि ना समझ कर बहुत से लोग अमलेश्वर को ममलेश्वर कहते हैं,जो ठीक नहीं है।

शिवपुराण में आई कथा के अनुसार एक समय पर्वतराज विंध्यगिरी ने भगवान आशुतोष सदाशिव के ओंङ्कार स्वरूप की कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें उत्तम बुद्धि प्रदान की। जिस समय भगवान शिव विंध्य के समक्ष प्रकट हुए, उसी समय देवगण एवं विशुद्ध चित्त वाले अनेक महात्मा वहां पधारे। सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की -भक्तों के अभीष्ट सिद्ध करने के लिए वह सदैव यही निवास करें। भगवान शिव ने प्रसन्नतापूर्वक उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया और वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो गए।
यहां श्रीओंकारेश्वरज्योतिर्लिंग₹200 में विभक्त हो गया। प्रणव के अंतर्गत जो सदाशिव विद्यमान हुए वह ओंकारेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। विंध्याचल के द्वारा पूजित पार्थिव मूर्ति से जो ज्योति प्रकट हुई वह ‘परमेश्वर’ या ‘अमलेश्वर’ नाम से विख्यात हुई।

श्रीओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग सृष्टि के आदि नाम ओंकार का भौतिक विग्रह है।ओंकार के तीन मात्राओं से ही संपूर्ण सृष्टि का उद्भव हुआ है और यही परमात्मा का आदि नाम है।

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान के महान भक्त मुचुकुंद एवं अम्बरीश के पिता सूर्यवंश के चक्रवर्ती सम्राट महाराज मांधाता ने इस स्थान पर कठोर तपस्या करके आशुतोष भगवान शिव को प्रसन्न किया था,तभी से यह तीर्थ मांधाता नाम से प्रसिद्ध हुआ।

ओंकारेश्वर की यात्रा सड़क,रेल और वायु तीनों मार्गो से की जा सकती है। यह उज्जैन से 133 किलोमीटर तथा इंदौर से 77 किलोमीटर दूर स्थित है।
ओंकारेश्वर रोड रेलवे स्टेशन से यह लगभग 11 किलोमीटर दूर है। मध्य रेलवे के खंडवा रेलवे स्टेशन से भी ओंकारेश्वर पहुंचा जा सकता है।
निकटतम हवाई अड्डा इंदौर है,जहां से ओंकारेश्वर की दूरी 128 किलोमीटर है।

5- श्री केदारनाथ

भगवान श्रीकेदारनाथ का मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। पवित्र हिमालय की गोद में स्थित भगवान श्रीकेदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में पांचवें स्थान पर परिगणित हैं। हिमालय की उपत्यका में भगवान श्रीकेदारनाथ का मंदिर जहां अवस्थित है, उस भाग को रूद्रहिमालय कहा जाता है। यह सुमेरु पर्वत के नाम से भी प्रसिद्ध है।
श्री केदारनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अन्यतम है। भगवान नर-नारायण की प्रार्थना को स्वीकार करके यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित भगवान शिव अनंतकाल से अपने आराधक भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर रहे हैं। इस मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग अत्यंत प्राचीन है।
जनश्रुतियों के अनुसार मंदिर का निर्माण पांडव वंश के महाराज जनमेजय ने कराया था।राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12वीं -13वीं शताब्दी का है। एक मान्यता के अनुसार मंदिर आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया था।

शिवपुराण की एक अन्य कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव बिजयी तो हुए, परन्तु इस विजय के लिए उनके हाथों अपने ही बंधु बांधवों का जो वध हुआ उस पाप का पश्चाताप उन्हें परेशान करने लगा। भगवान व्यास ने उन्हें भगवान शिव के दर्शन से पाप विमोचन का उपाय बताया। पांडव तीर्थाटन के लिए निकल पड़े। वह काशी होते हुए केदार क्षेत्र पहुंचे। पांडवों की पूजा अर्चना से प्रसन्न होकर भगवान शिव भैंसे के पृष्ठभाग के रूप में केदारखंड में स्थित हो गए।

हिमालय के केदारश्रंग पर अवस्थित श्री केदारनाथ मंदाकिनी के किनारे पश्चिम में विराजमान है। अलकनंदा और मंदाकिनी दोनों नदियां रुद्रप्रयाग में मिल जाती हैं और देवप्रयाग में इनकी संयुक्त धारा गंगोत्री से आई हुई भागीरथी गंगा का आलिंगन करती हैं। इस प्रकार जब हम गंगा स्नान करते हैं तब हमारा सीधा संबंध श्रीकेदारनाथ और श्रीबद्रीनाथ के पावन चरणों से जुड़ जाता है।

देवप्रयाग,श्रीनगर,रुद्रप्रयाग,गुप्तकाशी, त्रियुगीनारायण,गौरीकुंड,वासुकी ताल, ऊषीमठ, काली मठ,कालशिला,कोटिमाहेश्वरी, तुंगनाथ और जोशीमठ श्री केदारनाथ के आसपास स्थित प्रमुख स्थल हैं।

हिमालय के पवित्र तीर्थों के दर्शन के लिए तीर्थयात्रियों को रेल,बस या व्यक्तिगत साधनों द्वारा पहले हरिद्वार आना चाहिए। भारत के सभी प्रमुख नगरों से हरिद्वार आने के लिए रेल एवं सड़क परिवहन की सुविधाएं सुलभ हैं। हरिद्वार से केदारनाथ की दूरी 247 किलोमीटर है।हरिद्वार से गौरीकुंड तक दो 233 किलोमीटर की यात्रा मोटर मार्ग से तय की जाती है। गौरीकुंड से श्री केदारनाथ तक 14 किलोमीटर की दूरी पैदल मार्ग से जाना पड़ता है । पैदल चलने में असमर्थ व्यक्तियों के लिए घोड़ा,पालकी,पिट्टू आदि साधन मिलते हैं।

श्रीबद्रीनाथ एवं श्रीकेदारनाथ के पट 15 अप्रैल के आसपास खुलते हैं, और दीपावली तक खुले रहते हैं। उत्तराखंड के तीर्थों की यात्रा के लिए वैशाख से श्रावण तक उत्तम समय है।

6 – श्री भीमशंकर

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में भगवान श्रीभीमशंकर का ज्योर्तिलिंग छठे स्थान पर परिगणित है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत के अंतर्गत मुंबई से पूर्व एवं पुणे से उत्तर की ओर भीमा नदी के तट पर अवस्थित है।
द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्र में ‘डाकिन्यां भीमशंकरम्’ लिखा लिखा गया है। यहां डाकिनी ग्राम का तो कहीं पता नहीं है। श्रीभीमशंकर मंदिर सहयाद्री पर्वत पर स्थित है,और भीमा नदी का उद्गम स्थान भी वहीं है।

पौराणिक इतिहास- शिवपुराण के अनुसार भगवान श्रीभीमशंकर का ज्योतिर्लिंग असम प्रांत के कामरूप जनपद में गुवाहाटी के पास ब्रह्मरूप पहाड़ी पर स्थित है। शौनकादि ऋषियों से भगवान श्रीभीमशंकर के उद्भव का इतिहास बताते हुए श्री शूतजी ने बताया कि कामरूप में अपने भक्तों की रक्षा एवं लोककल्याण के उद्देश्य से भगवान शिव का स्वयं प्राकट्य हुआ।
इस प्रकार श्रीशिवपुराण के अनुसार श्रीभीमशंकर ज्योतिर्लिंग असम प्रांत के कामरूप जिले में गुवाहाटी के पास स्थित है।

जनश्रुतियों तथा भीमा नदी को आधार बनाकर मुंबई से पूर्व और पुणे से उत्तर में सहयाद्री पर्वत पर अवस्थित ज्योतिर्लिंग की मान्यता श्रीभीमशंकर ज्योतिर्लिंग रूप में है।
शिवलीलामृत,गुरुचरित्र,स्तोत्र रत्नाकर आदि ग्रंथों में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का गान किया गया है। गंगाधर,रामदास,श्रीधर,स्वामी,ज्ञानेश्वर आदि संत- महात्माओं ने इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन किया है।

भीमशंकर तीर्थ सड़क,रेल एवं वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है। निकटतम रेलवे स्टेशन करजट तथा निकटतम हवाई अड्डा पुणे है।

(गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘द्वादश ज्योतिर्लिंग’ से साभार। विस्तार से जानने के लिए पाठकों को उक्त पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए।)

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