द्वादश ज्योतिर्लिंग मानस यात्रा – 7,8,9

karmveer By karmveer
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7 – श्री विश्वेश्वर

सनातन परंपरा में सप्तपुरियों को अनादि माना गया है।
अयोध्या मथुरा माया काशी कांच्ञि ह्यवन्तिका।
पूरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका:।।
अयोध्या,मथुरा,हरिद्वार,काशी,काच्ञि,अवंतिका तथा द्वारका – यह सातों पुरियां मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।

उन्हीं सप्तपुरियों में से एक काशी में विद्यमान है श्रीविश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग। द्वादश ज्योतिर्लिंगों की गणना में श्रीविश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग का सातवां स्थान है। यह ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान श्री विश्वनाथ का मंदिर काशी में विशेश्वरखंड में स्थित है। शास्त्रों के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंगों के अंतर्गत काशी में भूतभावन विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं।
छठी शताब्दी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण में विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है।
आक्रांताओं द्वारा अनेक बार काशी विश्वनाथ मंदिर का विध्वंस किया गया।
सन 1777 ईस्वी में देवी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी कुंड के निकट ही काशी विश्वनाथ का वर्तमान मंदिर बनवाया और नार्मद बाणलिंग की शास्त्रीय विधि से प्रतिष्ठा करवाई।
सन 1839 में पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह ने अहिल्याबाई द्वारा निर्मित काशीविश्वनाथ मंदिर के शिखर पर साढ़े 22 मन सोना चढ़ावाया था जो अब तक विद्यमान है।
श्री विश्वनाथ जी काशी के सम्राट हैं। उनके मंत्री हरेश्वर, कथावाचक ब्रह्मेश्वर,कोतवाल कालभैरव धनाध्यक्ष तारकेश्वर,चौबदार दंडपाणि, भंडारी वीरेश्वर, अधिकारी ढुंढीराज तथा काशी के अन्य शिवलिंग प्रजापालक हैं। श्री विश्वनाथ मंदिर के वायव्य कोण में लगभग डेढ़ सौ शिवलिंग हैं। इनमें धर्मराजेश्वर मुख्य हैं। इस मंडली को शिव की कचहरी कहते हैं।

ऐतिहासिक दृष्टि से काशी संसार की प्राचीन नगरी है। इसका वेदों में भी कई जगह उल्लेख है।
स्कंद पुराण के काशी खंड,नारद पुराण और शिव पुराण में काशी विश्वनाथ महात्म्य का विस्तार से विवरण है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के अलावा यहां पर ज्ञानवापी,अक्षयबट,अन्नपूर्णा मंदिर,ढुंढीराज गणेश, दंडपाणि, आदिविश्वेश्वर , काशी-करवट,गोपाल मंदिर, सिद्धिदा दुर्गा, कालभैरव,श्री दुर्गाजी,संकट मोचन, कुरुक्षेत्र तीर्थ, पिशाचमोचन,लक्ष्मी कुंड,मंदाकिनी, कृतिबाशेश्वर,गोरखनाथ मंदिर,कबीरचौरा, कपालमोचन,बटुक भैरव, तिलभाण्डेश्वर आदि मंदिर भी प्रसिद्ध हैं।
काशी के घाटों में पांच मुख्य माने जाते हैं- वरणा- संगम घाट, पंचगंगा घाट, मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट और असीसंगम घाट।

काशी सड़क मार्ग,रेल मार्ग तथा वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है।

8 – श्री त्र्यम्बकेश्वर

भगवान श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत के अंतर्गत नासिक जनपद में अवस्थित है। शिव पुराण के अनुसार भगवान श्री त्रंबकेश्वर आठ में ज्योतिर्लिंग के रूप में पारीगणित हैं। नासिक रोड स्टेशन से नासिक पंचवटी 9 किलोमीटर तथा नासिक पंचवटी से श्रीत्रयंबकेश्वर का स्थान 26 किलोमीटर पर स्थित है।यहां समीप में ही ब्रह्मगिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी निकलती है। जिस प्रकार उत्तर भारत में प्रवाहित होने वाली पवित्र गंगा नदी का विशेष आध्यात्मिक महत्व है इस प्रकार दक्षिण में प्रवाहित होने वाली इस पवित्र नदी गोदावरी का विशेष महत्व है। जहां उत्तर भारत की गंगा को ‘भागीरथी’ कहा जाता है,वहीं गोदावरी नदी को ‘गौतमी गंगा’ कहकर पुकारा जाता है। देश में लगने वाले विश्व के प्रसिद्ध चार महाकुंभ मेलों में से एक महाकुंभ मेला यहीं पर होता है।
श्रीशिवपुराण की कोटिरूद्रसंहिता की कथा के अनुसार गौतम ऋषि तथा गोदावरी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने इस स्थान पर रहना स्वीकार किया, और वही भगवान शिव श्रीत्र्यम्बकेश्वर नाम से इस जगत में विख्यात हुए।
श्री त्र्यंबकेश्वर मंदिर ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है।ब्रह्मगिरि को भगवान शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है।श्रीत्र्यम्बकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के अंदर गर्भग्रह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग का केवल अर्घा दिखाई देता है,लिंग नहीं।ध्यान से देखने पर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं।इन लिंगों को त्रिदेव – ब्रह्मा,विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है।श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों ही विराजमान हैं।यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है।अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजमान हैं।
सनातन परंपरा में गोदावरी नदी और नासिक-पंचवटी महत्वपूर्ण तीर्थ के रूप में माने जाते हैं। यहां पर पौराणिक महत्व के अनेक मंदिर स्थित हैं।
कुछ ही दूरी पर गंगापुर प्रपात,सीता सरोवर,रामशैया, पांडव गुफा,मृगव्याधेश्वर,जटायु क्षेत्र,अगस्त्याश्रम, कुशावर्त,निवृत्तिनाथ की समाधि जैसे महत्वपूर्ण स्थान भी हैं।
श्री त्र्यम्बकेश्वर नासिक से काफी नजदीक है,जो पूरे देश से रेल,सड़क और वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है।

9 – श्रीबैद्यनाथ

ज्योतिर्लिंगों की गणना में श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का नौंवा स्थान बताया गया है। भगवान श्रीबैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मंदिर जिस स्थान पर अवस्थित है,उसे श्री बैद्यनाथ धाम कहा जाता है।
शिवपुराण में स्थान का संकेत करते हुए लिखा गया है – ‘चिताभूमौ प्रतिष्ठत:’। इसके अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी ‘वैद्यनाथं चिताभूमौ’ ऐसा लिखा गया है। ‘चिताभूमौ’ शब्द का विश्लेषण करने पर परली के श्रीबैद्यनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में नहीं आते हैं।
संथाल परगना जनपद के जसीडीह रेलवे स्टेशन के समीप देवघर पर स्थित स्थान को चिताभूमि कहा गया है।
जिस समय भगवान शंकर सती के शव को अपने कंधे पर रखकर इधर-उधर उन्मत्त की भांति घूम रहे थे,उसी समय इस स्थान पर सती का ह्रितपिंड अर्थात हृदय भाग गलकर गिर पड़ा था।यहीं पर भगवान शंकर ने सती के उसे ह्रितपिंड का दाह संस्कार किया था,जिसके कारण इसका नाम चिताभूमि पड़ा।
शिवपुराण में वर्णित एक अन्य श्लोक से भी चिताभूमि का ही संकेत मिलता है-

प्रत्यक्षं तं तथा दृष्ट्वा प्रतिष्ठाप्य च ते सुरा:।
वैद्यनाथेति सम्प्रोच्य नत्वा नुत्वा दिवं ययु:।।
अर्थात देवताओं ने भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन किया और उसके बाद उनके लिंग की प्रतिष्ठा की। देवगण उस लिंग को ‘वैद्यनाथ’ नाम देकर उसे नमस्कार करते हुए स्वर्गलोक को चले गए।

शिवपुराण की ही एक अन्य कथा के अनुसार रावण की तपस्या के फलस्वरुप श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ,जिसे देवताओं ने स्वयं प्रतिष्ठित कर पूजन किया।

श्री बैद्यनाथ मंदिर के आसपास 21 मंदिर और हैं। इनमें प्रमुख है गौरी मंदिर। यही यहां का शक्तिपीठ है। गौरी मंदिर का शिखर लाल रंग के धागों से शिव मंदिर के शिखर से बंधा रहता है। इसे शिव-शक्ति के अविच्छिन्न वैवाहिक संबंध का द्योतक माना जाता है।

पूर्वी रेलवे की हावड़ा-पटना लाइन पर जसीडीह स्टेशन है। जसीडीह से एक रेलवे लाइन श्रीबैद्यनाथधाम स्टेशन तक जाती है। स्टेशन से श्रीबैद्यनाथधाम मंदिर लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां पहुंचने के लिए साधन सहजता से उपलब्ध हैं।
(गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘द्वादश ज्योतिर्लिंग’ से साभार।)

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