सूचना क्रांति के जनक : राजीव गांधी

karmveer By karmveer
5 Min Read

कहा जाता है कि राजीव गांधी अनिक्षा से राजनीति में आए थे,लेकिन एक बार राजनीति में आने के बाद उन्होंने पूरे मन से अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन किया। 31 अक्टूबर 1984 को अपनी मां और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद मात्र 40 वर्ष की आयु में उन्होंने देश की बागडोर संभाली थी। वह 31 अक्टूबर 1984 से 2 दिसंबर 1989 तक देश के प्रधानमंत्री रहे।
वैसे तो इतने बड़े देश के लिए 5 वर्ष का कार्यकाल छोटा ही माना जाएगा,लेकिन यह राजीव गांधी की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का ही परिणाम था कि इस अल्पावधि में भी उन्होंने दूरगामी महत्व के अनेक निर्णय लिए।
सूचना क्रांति का सूत्रपात उनके द्वारा उठाया गया ऐसा ही एक कदम था,जिसने देश की तस्वीर बदल कर रख दी,और आज भारतीय आईटी इंजीनियर विश्व के तमाम देशों में अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं।
यद्यपि उस दौर में कंप्यूटर क्रांति को लेकर न जाने क्या-क्या कहा गया,लेकिन आज विश्व की बड़ी-बड़ी सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों की कमान भारतीयों के हाथों में देखकर हम जिस गौरव भाव से भर जाते हैं, उसके मूल में राजीव गांधी जैसे स्वप्नद्रष्टा की दूरदर्शी सोच ही है।
याद करिए 1984-85 के उस दौर को जब दूरदर्शन ने बड़े शहरों की सीमाएं लांघते हुए गांवों की ओर रुख किया था,और देश में प्रतिदिन एक नया ट्रांसमीटर स्थापित जा रहा था। अपने तरह की इस अनूठी क्रांति ने विकास के नए आयाम तो स्थापित किए ही, दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले किसानों, विद्यार्थियों,व्यापारियों और कलाजगत से जुड़े लोगों को भी इससे बहुत लाभ हुआ।

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि राजीव गांधी की जिस नवोन्मेषी सोच के चलते तकनीकी संचार क्रांति का सूत्रपात देश में हुआ,उसी के फलस्वरूप आज देश में विकास के नित नए प्रतिमान गढ़े जा रहे हैं।

1992 में संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधन के माध्यम से जिस त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को लागू किया गया था,उसकी परिकल्पना भी 1989 में राजीव गांधी ने ही की थी ।
स्थानीय स्वशासन की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम था।

मतदान की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने का निर्णय भी राजीव गांधी का एक साहसिक कदम था। 1989 में 61 वें संविधान संशोधन के माध्यम से इसे लागू किया गया था।
दरअसल उनका यह कदम उन लाखों-करोड़ों युवाओं पर भरोसा जताने जैसा था जिन्हें अपरिपक्व माना जाता था। इस मामले में उनकी सोच एकदम स्पष्ट थी – देश युवा ऊर्जा और नई सोच के सहारे ही 21वीं सदी के लिए देखे गए सपनों को साकार कर सकता है।

प्रतिभावान ग्रामीण छात्र-छात्राओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो,इसके लिए राजीव गांधी ने नवोदय विद्यालयों की परिकल्पना की। 1986 में 2 विद्यालयों के साथ प्रारंभ हुई नवोदय विद्यालय श्रृंखला आज देश के कोने-कोने में फैल चुकी है। इस समय देश के लगभग हर जिले में 661 नवोदय विद्यालय ग्रामीण छात्र-छात्राओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहे हैं,और यहां से निकले छात्र सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।

राजीव गांधी का राजनीतिक जीवन अल्प लेकिन उथल-पुथल से भरा रहा। एक हवाई दुर्घटना में संजय गांधी के असामयिक निधन से रिक्त हुए स्थान को भरने के लिए उन्हें बेमन से राजनीति में आना पड़ा। उन्होंने इंदिरा गांधी की क्रूर हत्या और गोलियों से छलनी उनकी देह को अपनी आंखों से देखा।अपने लिए अभूतपूर्व जनसमर्थन देखा।अपने कुछ निर्णयों को लेकर तीखी आलोचना झेली और राजनीति की विसात पर रंग बदलते मोहरों को भी देखा।
जैसे इतना ही पर्याप्त नहीं था। उनके जीवन का अंत भी एक हृदय विधायक दुर्घटना के साथ हुआ। 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हुए एक आत्मघाती बम विस्फोट में जब उनका निधन हुआ उस समय उनकी आयु मात्र 46 वर्ष थी।

सार्वजनिक जीवन में उनके योगदान का आकलन इतिहास करेगा,लेकिन इतना तय है कि संचार क्रांति, मतदान की उम्र 18 वर्ष करना और शिक्षा के क्षेत्र में नवोदय विद्यालय जैसी संस्थाओं की स्थापना के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

इस पोस्ट को साझा करें:

WhatsApp
Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *