कर्मवीर : एक शताब्दी की परंपरा,नए जमाने के संग साथ …

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मध्य प्रांत में राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर पं. विष्णु दत्त शुक्ल और कर्मयोगी पं. माधवराव सप्रे के शुभ संकल्प स्वरूप 17 जनवरी 1920 को महाकोशल के नाभि केंद्र जबलपुर से “कर्मवीर” का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। सप्रे जी महाराज ने कर्मवीर के संपादक के रूप में माखनलाल जी को चुना जिनपर उनकी पारखी दृष्टि 1908 में आयोजित एक निबंध प्रतियोगिता के दौरान ही पड़ गई थी।
देश के स्वाधीनता आंदोलन में “कर्मवीर” और उसके संपादक पं. माखनलाल चतुर्वेदी की भूमिका भारतीय पत्रकारिता के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है। राजनीतिक चेतना की अलख जगाने और सामाजिक चेतना का मार्ग प्रशस्त करने में पत्र-पत्रिकाओं और उसके संपादकों की क्या भूमिका हो सकती है, कर्मवीर इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।
1920 में जबलपुर से प्रारंभ हुई कर्मवीर की यात्रा बीच में थोड़े-थोड़े समय के लिए बाधित हुई लेकिन “कर्मवीर भाव” ने इसे टूटने नहीं दिया।
कर्मवीर का दूसरा पड़ाव था खंडवा। 1925 में कर्मवीर का प्रकाशन खंडवा से होने लगा।
‘कर्मवीर’ महज पत्र न होकर हमेशा ही अपने युग की आवाज़ रहा है। युगबोध की आवाज़…सामाजिक सरोकारों की आवाज़।
अपने स्थापना काल से ही कर्मवीर का उद्घोष् रहा है –
“कर्म है अपना जीवन प्राण।
कर्म में बसते हैं भगवान।
कर्म है मातृभूमि का मान।
कर्म पर आओ हों बलिदान।।
स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती वर्ष 1997 में श्री माखनलाल चतुर्वेदी के उत्तराधिकारी श्री बृजभूषण चतुर्वेदी ने कर्मवीर के पुनर प्रकाशन का दायित्व वरिष्ठ पत्रकार और पत्रकारिता इतिहास के गहन अध्येता पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर को सौंप दिया। तब से कर्मवीर का प्रकाशन भोपाल से किया जा रहा है।
भोपाल से कर्मवीर के प्रकाशन के अवसर पर सुकवि बालकवि बैरागी ने कर्मवीर के प्रति अपने भाव कुछ इस तरह व्यक्त किए थे –
“सिर्फ कलेवर ही बदला है,तेवर इसका वही रहेगा। माखन दादा का जाया है, कर्मवीर युग सत्य कहेगा।।”
‘कर्मवीर’ अपने शुभचिंतकों की इन आकांक्षाओं पर खरा उतरने के लिए निरंतर प्रयत्नशील है।
कर्मवीर स्वतंत्रता आंदोलन का प्रत्यक्षदर्शी-सहभागी रहा तो आज़ादी के बाद भारत के नवनिर्माण और नवजागरण की मुखर आवाज़ भी बना। स्वरूप भले ही बदलता रहा लेकिन इसके मूल में वही “कर्मवीर भाव” रहा जो इसके जन्मदाताओं ने सुनिश्चित कर रखा था।
विरले ही समाचार पत्र-पत्रिकाएं अपना शताब्दी वर्ष मना पाते हैं। इस दृष्टि से कर्मवीर का 100 से अधिक सालों तक सतत प्रकाशन-संचालन अपने आप में महत्वपूर्ण घटना है।
यह हमारा सौभाग्य है कि कर्मवीर रूपी उस परंपरा के साथ जुड़ने का हमें अवसर मिल रहा है, जिसे “एक भारतीय आत्मा” के नाम से समादृत मनीषी संपादक और प्रखर राष्ट्र प्रेमी दादा माखनलाल चतुर्वेदी ने स्थापित किया था।
कर्मवीर के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव भी है। 40 और 50 के दशक में पूज्य पिताश्री प्रखर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समर्पित गांधीवादी सर्वोदयी कार्यकर्ता पं. सुंदरलाल श्रीधर कर्मवीर के लिए निरंतर लिखते रहे हैं। यह सुखद संयोग ही है कि कर्मवीर के साथ परिवार का रिश्ता एक पाठक के रूप में प्रारंभ हुआ, जिसे पिताश्री ने लेखक के रूप में सुदृढ़ किया और आज की पीढ़ी जिसे प्रकाशक के रूप में आगे बढ़ा रही है।
आज सोशल और डिजिटल मीडिया का दौर है। जरूरी है कि कर्मवीर भी नए जमाने के साथ कदमताल करे। इसी को ध्यान में रखते हुए “कर्मवीर डिजिटल” और “कर्मवीर यूट्यूब चैनल” प्रारंभ किया जा रहा है।
हमारे मार्गदर्शक श्री विजय दत्त श्रीधर ने इस पहल को “एक शताब्दी की परंपरा : नए जमाने के संग साथ” शीर्षक देकर आशीर्वाद प्रदान किया है।
कर्मवीर डिजिटल और यूट्यूब चैनल पर संस्कृति और सृजन के विविध आयामों पर तथ्यपरक रोचक सामग्री, सामाजिक-सामयिक सरोकारों पर उपयोगी जानकारी के साथ-साथ विभिन्न विषयों पर संवाद भी होगा।
हमारा प्रयास होगा कि कर्मवीर अपने डिजिटल स्वरूप में उसी गौरवशाली परंपरा का वाहक बने जो विगत एक शताब्दी के दौरान स्थापित हुई है।
इसके लिए हम आपके समर्थन और सहयोग की अपेक्षा करते हैं।
आईए,आप और हम मिलकर “कर्मवीर भाव” के प्रचार-प्रसार में सहभागी बनें।

अरविन्द श्रीधर
संपादक

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