रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों से बचने का एकमात्र विकल्प है जैविक खेती : डॉ.आर. के. पालीवाल

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रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों से अब कोई अनजान नहीं है। विडंबना यह है कि सब कुछ जानते हुए भी हम जहर खाने के लिए मजबूर हैं।
जानकार कहते हैं कि जैविक खेती ही एकमात्र विकल्प है,लेकिन किसान रासायनिक खेती के दुष्चक्र में उलझे हैं।
जागरूकता और आगे बढ़कर पहल करने से ही यह दुष्चक्र टूट सकता है। कुछ लोग और संस्थाएं जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए अपने स्तर पर अभियान चला रहे हैं।
ऐसा ही एक प्रयास कर रहे हैं भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी और गांधीवादी विचारक आर के पालीवाल।
उनके अभियान में जागरूकता से लगाकर प्रशिक्षण तक सब कुछ शामिल है। सबसे महत्वपूर्ण घटक बाजार तो शामिल है ही।
खेती में रसायनों के अंधाधुंध उपयोग और जैविक खेती की अवधारणा पर कर्मवीर ने श्री पालीवाल से बात की।

कर्मवीर -लोगों में प्राकृतिक खेती और जैविक खेती की अवधारणा को लेकर अक्सर भ्रम होता है। आप जैविक खेती को लेकर महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। आप इसे किस तरह स्पष्ट करना चाहेंगे?

डॉ आर.के. पालीवाल -जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है प्राकृतिक खेती कृषि का वह स्वरूप है जो प्रकृति के सबसे अधिक नजदीक है। पूर्णतः प्राकृतिक तो खेती की कोई भी पद्धति नहीं होती क्योंकि पूर्णतः प्राकृतिक तो केवल वन जंगल ही होता है। लेकिन जिस खेती को बिना जुताई और बिना सिंचाई और कम से कम निदाई के साथ किया जाता है और जो दूर से देखने पर जंगल का अहसास देती है उसे प्राकृतिक खेती कह सकते हैं क्योंकि उसमें मनुष्य का हस्पक्षेप बहुत कम होता है।
जैविक खेती का तात्पर्य खेती की उन पद्धतियों से है जिनमें केवल जैव जगत से प्राप्त उत्पादों का उपयोग किया जाता है। सामान्यतः जैविक खेती में गोबर की कंपोस्ट खाद, केंचुआ खाद और गोबर और गौमूत्र आदि से बने जीवामृत आदि को रसायनिक खाद के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह खेती दूर से देखने पर रसायनिक खेती जैसी ही दिखाई देती है।
प्राकृतिक और जैविक खेती में यह समानता है कि इनमें रसायनिक खादों, यथा यूरिया, डी ए पी आदि और जहरीले कीटनाशकों और हर्बिसाइड आदि का उपयोग नहीं करते अर्थात यह दोनों रसायन मुक्त खेती की पद्धतियां हैं।

कर्मवीर – जैविक खेती की पूरी अवधारणा को इस तरह से स्पष्ट करिए कि वह सहजता से लोगों की समझ में आ सके।
डॉ पालीवाल – आजकल जैविक खेती की वकालत मुख्यत: दो कारणों से की जा रही है। एक, रसायनिक खेती में खाद और कीटनाशकों के उपयोग से एक तरफ खेती के उत्पादों का स्वाद और पौष्टिकता कम हो रही है और दूसरी तरफ इन खाद्य पदार्थों के सेवन से कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियां बढ़ रही हैं। दूसरे, रसायनिक खाद और कीटनाशकों के कारण जमीन की उर्वरता और जैव विविधता नष्ट हो रही है। किसान के मित्र केंचुए और मधुमक्खी आदि खत्म हो रहे हैं। साथ ही जहरीले कीटनाशकों से हवा, भूमि और भूजल प्रदूषित हो रहा है। इन सबसे बचने का एकमात्र विकल्प रसायन मुक्त जैविक खेती ही है जिससे मनुष्य का स्वास्थ ठीक रहेगा, धरती बंजर होने से बचेगी और पर्यावरण के प्रदूषण में कमी आएगी। इसीलिए आजकल सरकार और प्रबुद्ध जन जैविक खेती का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।

कर्मवीर – किसानों के मन में यह आम धारणा है कि जैविक खेती में लागत ज्यादा आती है और उत्पादन कम मिलता है। आपका क्या अनुभव है?

डॉ पालीवाल – यह धारणा सही नहीं हैं। जब कोई किसान पूरी तैयारी के साथ रसायनिक खेती से जैविक खेती की तरफ मुड़ता है तो शुरुआत के एक दो साल उत्पादन में थोड़ी कमी आती है लेकिन लागत भी कम होती है क्योंकि रसायनिक खाद और कीटनाशकों का खर्च बचता है। गोबर की खाद बनाने में रसायनिक खाद की तुलना में काफी कम खर्च आता है। जैविक खेती में परिश्रम जरूर अधिक लगता है क्योंकि कंपोस्ट खाद या बर्मी कंपोस्ट बनाना श्रमसाध्य काम है। यदि बिना तैयारी के जैविक खेती की जाएगी तब जरूर उत्पादन कम होगा क्योंकि रसायनिक खाद का सही विकल्प भूमि को नहीं दिया गया है।

कर्मवीर – जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए बाजार की उपलब्धता के बारे में भी कोई योजना है क्या?

डॉ पालीवाल – जैविक किसानों के लिए बाजार उपलब्ध कराने के प्रयास कई स्तरों पर हो रहे हैं। जैसे जैसे जैविक खेती की आवश्यकता के प्रति लोग जागरूक हो रहे हैं वैसे वैसे जैविक बाजार उपलब्ध कराने के लिए कुछ शहरों में सरकार और नगर निगम आदि अलग से जगह उपलब्ध करा रहे हैं। कुछ समाजसेवी संस्थाएं भी इस दिशा में आगे आई हैं। उदाहरण स्वरूप भोपाल में ग्राम सेवा समिति ने भोपाल जैविक परिवार में कई जैविक किसानों और उपभोक्ता परिवारों को जोड़कर जैविक शॉप के माध्यम से भोपाल वासियों को जैविक खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने की पहल की है। इसी तरह कई स्टार्ट अप भी इस दिशा में प्रयासरत हैं।

कर्मवीर- रासायनिक खेती से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में भी बताइए।

डॉ पालीवाल – रसायनिक खेती की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें प्रतिवर्ष रसायनिक खाद और कीटनाशकों की मात्रा बढ़ानी पड़ती है जिससे खाद्य सामग्री की गुणवत्ता निरंतर कम होती जाती है और वह पहले से अधिक जहरीली होती जा रही है। रसायनिक खेती से कृषि भूमि की उर्वरता लगातार घटती जा रही है और जमीन बंजर बनने की दिशा में अग्रसर हो रही हैं। जहरीले खाद्य पदार्थों से कैंसर सरीखी गंभीर बीमारियां बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। रसायनिक खेती से प्रकृति और पर्यावरण बुरी तरह प्रदूषित हो रहा है। कृषि रसायनों का कचरा भूमि, जल और वायु में मिल रहा है। जैव विविधता नष्ट हो रही है। कुल मिलाकर इसके दुष्प्रभाव से पूरी पृथ्वी के वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

कर्मवीर- सरकार की वर्तमान कृषि नीति में ऐसे क्या परिवर्तन होने चाहिए जिससे लोग जैविक खेती की ओर लौटें।

डॉ पालीवाल – सरकारों की कृषि नीति में आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है। दुर्भाग्य से वर्तमान समय में रसायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है। न कीटनाशकों की बिक्री पर कोई नियंत्रण है और न मंडी में बिकने वाले खाद्य पदार्थों की चैंकिंग की कोई व्यवस्था है जिसमें पता चल सके कि किसान ने तय अंतरराष्ट्रीय मानक से अधिक कीटनाशक डाले हैं। इसके विपरीत जो किसान प्राकृतिक और जैविक खेती के लिए आगे आ रहे हैं उनसे प्रमाणीकरण के लिए अच्छा खासा शुल्क वसूला जाता है और निरीक्षण के नाम पर तरह तरह की प्रशासनिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। होना यह चाहिए कि सरकार रसायनिक कीटनाशकों की बिक्री और प्रयोग नियंत्रित करे और जैविक खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहित किया जाए और उनका प्रमाणीकरण निशुल्क हो। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को कृषि नीति में परिवर्तन करने चाहिएं ताकि कीटनाशकों का प्रयोग नियंत्रित रहे और जैविक खेती प्रोत्साहित हो।

कर्मवीर- देखने में आ रहा है कि बाजार में जैविक उत्पादों के नाम पर महंगे दामों पर अनाज फल सब्जियां आदि बेची जा रही है, जबकि उनके प्रमाणीकरण और विश्वसनीयता के कोई साक्ष्य नहीं हैं।इसके विषय में आपकी क्या सोच है?

डॉ पालीवाल – जैसा कि मैने कहा है कि बहुत से किसान जैविक प्रमाणीकरण की जटिल प्रक्रिया से बचते हैं इसलिए वे या तो जैविक खेती करते ही नहीं और करते हैं तो प्रमाणीकरण के चक्कर में नहीं पड़ते। ऐसे किसानों का सामान ऐसे व्यापारी खरीद लेते हैं जिनके पास जैविक प्रमाणीकरण है। इनकी नजर अधिक से अधिक लाभ पर होती है इसलिए वे इसे महंगे दाम पर बेचते हैं। यदि अधिक किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाएगा और उनके उत्पादों की बिक्री के लिए सहकारी मॉडल विकसित किए जाएंगे तभी आम जन तक उचित कीमत में जैविक खाद्य पदार्थ पहुंच सकते हैं।

कर्मवीर – उपभोक्ता को चुकाए गए मूल्य के अनुरूप सामग्री मिलेगी तो जैविक उत्पादों को अपनाने के प्रति रूझान बढ़ेगा। इस दिशा में भी काम किए जाने की आवश्यकता है। आपकी क्या योजना है?

डॉ पालीवाल – जैविक खेती को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए एक तरफ जैविक किसानों को यह विश्वास आना चाहिए कि उनके उत्पादों को उपभोक्ता उचित दाम में खरीद लेंगे। इसी तरह उपभोक्ताओं की भी यह मानसिकता होनी चाहिए कि स्वास्थवर्धक जैविक उत्पादों को जहरीले रसायनिक खाद्य पदार्थों की तुलना में थोड़ी अधिक कीमत चुकाकर खरीद लेना चाहिए। यह काम सरकार और समाज सेवी संस्थाओं द्वारा जैविक उत्पादकों और जैविक उपभोक्ताओं को जोड़कर आसान किया जा सकता है। ग्राम सेवा समिति भोपाल के तत्वावधान में चल रहा राष्ट्रीय जैविक परिवार अभियान एक ऐसा ही जन अभियान है जिससे जुड़कर बहुत से जैविक किसान और उपभोक्ता लाभान्वित हो रहे हैं।

कर्मवीर- खाद्य सामग्री में मिलावट देश की बड़ी समस्या है। इसके दुष्परिणाम भी दिखाई देते हैं।
इसे रोकने के लिए सरकार की तरफ से कौन से काम अपेक्षित हैं?

डॉ पालीवाल – खाद्य सामग्री में मिलावट नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन के साथ बड़ा खिलवाड़ है जिसे कड़े कानून बनाकर और उनका सही क्रियान्वयन करने से ही इस अपराध पर लगाम कसी जा सकती है। इसके लिए विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अपने अपने कार्य करने की आवश्यकता है। विधायिका कड़े कानून बनाए, कार्यपालिका उन कानूनों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करे और न्यायपालिका ऐसे मामलों को गंभीरता से लेकर अपराधियों को कड़ी सजा दे। यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है और इसका कोई अन्य शॉर्ट कट विकल्प नहीं है।

डॉ. आर.के. पालीवाल

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