बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी राजीव शर्मा की कृति “अद्भुत सन्यासी” सचमुच अद्भुत है।
भगवान परशुराम की जीवन गाथा के हर पक्ष को स्पर्श करती यह कृति, उनके विराट स्वरूप का भली-भांति दिग्दर्शन कराती है। उनके बारे में प्रचलित मिथकों का खंडन करती है और उनके वास्तविक स्वरूप का दर्शन कराती है।
वह कहते हैं- “परशुराम आवेशावतार नहीं थे, न ही अंशावतार. क्रोधावतार कहकर उन्हें सीमित नहीं किया जा सकता… आजकल के कथित लोकतंत्रों के जन्म के युगों पूर्व वे तंत्र पर लोक के प्रभावी नियंत्रण की अधिष्ठाता हैं…यदि भारतीय चेतना यूरोपीय प्रभुत्व की बंधक न हुई होती तो स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय के लिए मानवीय संघर्ष की गाथा परशुराम से प्रारंभ हुई होती; कथित फ्रांसीसी क्रांति से नहीं।”
उपन्यास की यह पंक्तियां देखिए…
“अवतारों का कार्य है प्रेरणा देना, अभय देना, जनसामान्य को उनकी आंतरिक शक्ति का स्मरण कराना… स्मरण रखिए, जब कोई संकट मानवीय क्षमता से बड़ा हो, तब अवतार आते हैं, अन्यथा मनुष्य का पौरुष पर्याप्त है।”
सामान्यतः भगवान परशुराम को क्षत्रिय विरोधी कहा जाता है. यह उपन्यास इस मिथक का खंडन करता है…
” जो स्वयं माता रेणुका सी श्रेष्ठ क्षत्राणी का पुत्र हो, उसे क्षत्रिय विरोधी कहना राजनीतिक धूर्तता है. वह क्षत्रियों के नहीं उन छत्रधारियों के विरोधी हैं, जो सत्ता के अहंकार में विवेक खो बैठे थे।”
सनातन वांग्मय में त्रेता और द्वापर युग के सेतु के रूप में उपस्थित चिरंजीवी भगवान परशुराम की जीवन गाथा सचमुच अद्भुत है।
वह प्रथम राम हैं… महर्षि जमदग्नि और देवी रेणुका के पुत्र हैं… श्री विद्या के आचार्य हैं… त्रिपुरा रहस्यधारी महर्षि हैं…मदांध राज्य सत्ता के परम शत्रु हैं… स्वाभिमान, स्वतंत्रता, समानता और न्याय के पुरोधा हैं… वंचितों निर्बलों के अभयदाता हैं… दिव्यास्त्रों के आविष्कारक हैं… मंत्र दृष्टा ऋषि हैं… इतना सब कुछ होते हुए भी निस्पृह हैं।
भगवान विष्णु के पहले पूर्ण अवतार भगवान परशुराम का चरित्र सचमुच अद्भुत है, जिसे राजीव शर्मा की लेखनी ने बड़े ही सहज,सरल और रोचक शैली में उद्घाटित किया है।
मूल हिंदी संस्करण के साथ-साथ ‘अद्भुत सन्यासी’ के मराठी अनुवाद का भी पाठक जगत में व्यापक स्वागत हुआ है।