महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में कहा है कि”योगः चित्तवृत्तिनिरोधः।” अर्थात् योग वह अवस्था है जहाँ मन की सभी चंचल वृत्तियाँ शान्त हो जाती हैं। योग कोई नया आविष्कार नहीं है, यह तो भारत की हजारों वर्षों पुरानी धरोहर है। एक ऐसा विज्ञान जो केवल शरीर को ही नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी संतुलित करता है। आज जब पूरी दुनिया मानसिक तनाव, असंतुलन और जीवन की भागदौड़ में उलझी हुई है तब योग विश्व को एक स्थायित्व, समाधान और शांति का मार्ग प्रदान कर रहा है। इस अर्थ में योग विश्व मानवता को भारत का सबसे बड़ा उपहार है।
योग मनुष्य मात्र के लिए
योग केवल साधुओं और तपस्वियों की साधना नहीं है। यह एक गृहस्थ व्यक्ति के लिए उतना ही उपयोगी है जितना कि किसी तपस्वी के लिए। एक सामान्य व्यक्ति के लिए यह स्वास्थ्य, नींद, पाचन, तनाव प्रबंधन और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने का सहज उपाय है। वहीं, एक साधक के लिए यह आत्मबोध, ध्यान और मोक्ष, निर्वाण या कैवल्य की ओर ले जाने वाला श्रेष्ठतम मार्ग है। तभी तो उपनिषदों में कहा गया है “योगो हि प्रवरं ज्ञानं, योगो हि परमं तपः। योगो हि परमा शक्तिः योगात् नास्ति परं बलम्।।” अर्थात योग ही श्रेष्ठ ज्ञान है, योग ही महान तप है, योग ही परम शक्ति है। योग से बढ़कर कोई बल नहीं है।
भारत योग की भूमि
आज जब दुनिया भर में भारत को “योग की भूमि” के रूप में जाना जाता है, तब हमें यह समझने की आवश्यकता है कि योग केवल एक व्यायाम पद्धति नहीं, बल्कि यह भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक परंपरा का जीता-जागता प्रतीक है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 जून को “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में घोषित करना इसी बात का प्रमाण है कि योग अब केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान बन चुका है।
विश्व शांति और सामूहिक चेतना
योग केवल व्यक्तिगत लाभ तक सीमित नहीं है। यह सामूहिक चेतना को ऊपर उठाने का माध्यम है। जिस दुनिया में हिंसा, तनाव और मानसिक अवसाद अपने चरम पर है, वहाँ योग शांति का एक अभिनव सूर्य बनकर दैदीप्यमान है।
श्रीमद्भगवदगीता में कहा गया है कि “समत्वं योग उच्यते” अर्थात् समत्व ही योग है। योग हमें न केवल भीतर से संतुलित करता है, बल्कि हमें दूसरों के प्रति भी करुणाशील और संवेदनशील बनाता है।
आज यदि कोई भारत को एक शब्द में पहचानना चाहे — तो वह शब्द “योग” है। योग भारत का वह उपहार है जो समय के साथ और भी मूल्यवान होता जा रहा है। यह न केवल हमारे देश की संस्कृति को वैश्विक मंच पर ला रहा है, बल्कि हमें एक आध्यात्मिक नेतृत्व भी प्रदान कर रहा है।
रोजगार और पहचान का माध्यम
दुनिया भर में आज भारतीय योग शिक्षकों की भारी मांग है। जहाँ पहले विदेशों में भारतीय होना केवल संस्कृति का प्रतीक माना जाता था, आज वही भारतीय, योग शिक्षक के रूप में वहाँ की जीवनशैली को आकार दे रहे हैं। योग न केवल भारत का गौरव बढ़ा रहा है, बल्कि यह लाखों भारतीय युवाओं के लिए रोजगार का माध्यम भी बन चुका है। विदेशों में चल रही योगशालाएँ, ऑनलाइन योग शिक्षक प्रशिक्षण, आयुर्वेद आधारित वेलनेस रिट्रीट — यह सब भारत की पहचान को वैश्विक मंच पर स्थापित कर रहे हैं।
शिक्षा संस्थानों और विश्वविद्यालयों में योग
आज भारत में ही नहीं, विदेशों के प्रमुख विश्वविद्यालयों में योग को शैक्षणिक स्तर पर पढ़ाया जा रहा है। यह विषय अब सिर्फ “अल्टरनेटिव हेल्थ” नहीं रह गया, बल्कि यह एक मेजर स्ट्रीम के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है।
आइए, हम सब मिलकर इस योग-यात्रा का हिस्सा बनें — न केवल अपने शरीर और मन के लिए, बल्कि भारत की पहचान, संस्कृति और गौरव के लिए भी।

डॉ. राधेश्याम मिश्र
(लेखक इंदौर के निकट चोरल घाटी में स्थित सत्यधारा योगलाइफ आश्रम के संस्थापक हैं एवं देश-विदेश में योग शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं)