डेढ़ साल की अल्पावधि में 250 हाउसफुल शो
ओटीटी के इस दौर में, जब दर्शक रंगमंच से लगभग विमुख हो चुके हों, किसी नाटक के 250 हाउसफुल शो होना मायने रखता है। यह उपलब्धि तब और महत्वपूर्ण हो जाती है जब दर्शकों ने नाटक को टिकट खरीद कर देखा हो।
यह उपलब्धि हासिल की है आशुतोष राना अभिनीत नाटक “हमारे राम” ने, जिसे दिल्ली के फैलीसिटी थिएटर ग्रुप ने महाकाव्यात्मक शैली में रचा है। रंगमंच के इस नए शाहकार ने यह उपलब्धि महज़ डेढ़ साल की अल्प अवधि में हासिल की है।
“हमारे राम” रंगमंच पर घटित एक विशिष्ट घटना है, जिसे आशुतोष राना का दमदार अभिनय अति विशिष्ट बनाता है।

आशुतोष राना एक अलग मिजाज के अभिनेता हैं। सब जानते हैं कि फिल्मों और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उनकी मांग लगातार बनी हुई है। पर्दा छोटा हो अथवा बड़ा,उनकी प्रभावी उपस्थिति सफलता की गारंटी मानी जाती है। कैरियर के ऐसे महत्वपूर्ण दौर में अचानक एक दिन वह रंगमंच पर उतरने का फैसला करते हैं। ऐसा कौतुक आशुतोष राना ही कर सकते हैं।
वह कहते है – फैलिसिटी थिएटर ग्रुप ने नाट्य नहीं महाकाव्य रचा है। ठीक है, ‘हमारे राम’ के प्रदर्शन के सिलसिले में देश के अलग-अलग शहरों में जाना पड़ता है। इसमें समय लगता है। यही समय यदि फिल्मों और सीरीज को दिया जाए तो कहीं अधिक उपलब्धियां अर्जित की जा सकती हैं। लेकिन जिस तरीके से ‘हमारे राम’ नाट्य का शिल्प गढ़ा गया है, मेरे जैसे व्यक्ति को उसका हिस्सा होना ही था। और फिर रावण का किरदार निभा कर मेरी बचपन की साध भी तो पूरी हुई है।
लगभग ढाई साल की तैयारी के बाद यह नाट्य, रंगमंच तक पहुंचा है। मंच सज्जा इतनी आकर्षक और प्रभावोत्पादक है कि दर्शक 3 घंटे तक अपने आपको उसके सम्मोहन में बंधा हुआ पाता है। रंगमंच पर लाइट्स और साउंड इफेक्ट के लिए तकनीक का सुंदर प्रयोग किया गया है। नाट्य का एक-एक संवाद प्रभाव छोड़ता है। दृश्य-दर-दृश्य कथा की निरंतरता और सामंजस्य में इतनी कसावट है कि दर्शक तीन सवा तीन घंटे तक कुर्सियों से हिल भी नहीं पाता।
सुप्रसिद्ध गायक शंकर महादेवन,सोनू निगम,कैलाश खेर और खुद आशुतोष राना की आवाज़ों में आलोक श्रीवास्तव के लिखे गीत कथा के प्रवाह को गतिमान बनाए रखते हैं।
महाज्ञानी रावण विरचित शिवतांडव स्त्रोत का आलोक श्रीवास्तव द्वारा किया गया हिंदी पद्यानुवाद अनूठा बन पड़ा है। आशुतोष राना की दमदार आवाज़ इसे और भी प्रभावी बनाती है।

गौरव भारद्वाज की निर्देशकीय कल्पनाशीलता की जितनी तारीफ़ की जाए, कम है। महाकाव्यात्मक गाथा को 3 घंटे के नाट्य में पिरोकर प्रस्तुत करना, उनके निर्देशकीय कौशल और क्षमताओं का परिचायक है।
दरअसल रामलीला भारतीय जनमानस में गहरे तक पैठी हुई है। गांव की रामलीला से लगाकर रामानंद सागर की रामायण तक दर्शक अनेक बार इस गाथा को देख-सुन चुके हैं। ऐसे में निर्देशक के ऊपर कुछ अलग प्रस्तुत करने का दबाव रहना स्वाभाविक है।
गौरव भारद्वाज न केवल इस दबाव को संभाला है ,बल्कि वह एक अलहदा ‘कहन शैली’ गढ़ते नज़र आते हैं।
नाट्य में राम,रावण एवं हनुमान के चरित्र तो उभर कर आए ही हैं,अन्य चरित्रों को भी पर्याप्त स्थान दिया गया है। कुल मिलाकर नाट्य का प्रत्येक विभाग अपने आप में परिपूर्ण है। यदि यह कहा जाए कि ‘हमारे राम’ ने रंगकर्म के क्षेत्र में एक नया प्रतिमान गढ़ा है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
फैलिसिटी थिएटर के कर्ताधर्ता और नाट्य में राम की भूमिका निभाने वाले राहुल बुचर कहते हैं – इस नाट्य के माध्यम से वह अधिक से अधिक लोगों, विशेषकर बच्चों तक रामायण की गाथा पहुंचाना चाहते हैं। शहर दर शहर जिस तरह दर्शकों का प्रतिसाद नाटक को मिल रहा है, उससे हमारा हौसला बढ़ा है। और इसी हौसले की वजह से देश के अलग-अलग शहरों में नाटक के 250 हाउसफुल शो मंचित हो सके हैं।
सौ-सवा सौ लोगों की टीम और उपकरणों के तामझाम के साथ अलग-अलग शहरों में नाटक का मंचन करना कोई आसान काम नहीं है। इस महत्वपूर्ण पहल के लिए फैलीसिटी थिएटर ग्रुप की न केवल प्रशंसा की जानी चाहिए अपितु रंगकर्म के क्षेत्र में इसे विशिष्ट घटना के रूप में रेखांकित भी किया जाना चाहिए।
नाटक की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके दर्शकों में जन सामान्य के साथ-साथ राजनीतिज्ञ,कारपोरेट जगत की बड़ी-बड़ी हस्तियां,खेल जगत के नामी गिरामी लोग और तमाम वरिष्ठ अधिकारी तक शामिल हैं।
कई दर्शक तो ऐसे हैं जिन्होंने वर्षों बाद रंगशाला में बैठकर कोई नाटक देखा है।
पूरी उम्मीद है कि ‘हमारे राम’ नाट्य मंचन का यह सिलसिला यहीं नहीं रुकने वाला। सैकड़ो शहरों के हजारों-लाखों लोग अपने शहर में “हमारे राम” की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

*अरविन्द श्रीधर