अवंतिका के षड्विनायक …नलखेड़ा तथा महेश्वर के गोबर गणेश मंदिर…

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अनादि नगरी अवंतिका अपने प्राचीन पौराणिक मंदिरों की वजह से एक विशिष्ट तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित है। सनातन धर्म में मान्य प्रायः समस्त प्रमुख देवी देवताओं के प्राचीन पौराणिक मंदिर इस नगरी की शोभा बढ़ाते हैं।ऐसा अन्य तीर्थ स्थलों में प्रायः दुर्लभ है।
प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता श्री गणेशजी को समर्पित अनेक मंदिर अवंतिका में हैं, जिन्हें पुराणकालीन माना जाता है।
1974 में प्रकाशित कल्याण पत्रिका के ‘श्रीगणेश अंक’ में अवंतिका के षड् विनायकों का विवरण इस प्रकार मिलता है।

  1. मोद विनायक – महाकालेश्वर मंदिर कोटितीर्थ पर।
  2. प्रमोद विनायक (लड्डू विनायक) – विराट हनुमान के पास रामघाट पर।
  3. सुमुख विनायक (स्थिर विनायक या थल गणपति) – गढ़कालिका मंदिर के पास।
  4. दुर्मुख विनायक – मंगलनाथ सड़क पर खाकियों के अखाड़े के पीछे।
  5. अविघ्न विनायक – खाकियों के अखाड़े के सामने।
  6. विघ्न विनायक – चिन्तामण गणेश मंदिर

चिन्तामन गणेश –

चिन्तामन गणेश की मालवांचल में बहुत मान्यता है। मालवावासी हर शुभ कार्य के पूर्व यहां माथा टेकने अवश्य आते हैं।
यह मंदिर फतेहाबाद रेल लाईन पर उज्जयिनी के उत्तर में जवासिया गांव में है।
परमार कालीन इस मंदिर का जीर्णोद्धार पुण्यश्लोक अहिल्याबाई ने करवाया था। मंदिर में रिद्धि-सिद्धि सहित चिन्तामण गणेश,इच्छापूर्ण एवं चिन्ताहरण गणेश की भव्य प्रतिमाएं स्थापित हैं।
प्रतिवर्ष चैत्रमाह के बुधवार को चिन्तामण गणेश की जत्रा निकलती है, जिसमें हजारों नर-नारी भाग लेते हैं।
दन्तकथाओं के अनुसार भगवान राम,लक्ष्मण और सीता यहां पधारे थे। परिसर में स्थित प्राचीन बावड़ी को लक्ष्मण बावड़ी कहा जाता है।
कल्याण के श्रीगणेश अंक एवं ’’प्रबंध चिन्तामणि’’ में इस मंदिर का विवरण मिलता है।

मंछामन गणेश –

नीलगंगा इलाके में अति प्राचीन मंछामन गणेश मंदिर है। इस मंदिर में प्रतिष्ठित गणेश प्रतिमा के चमत्कारी होने और श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होने संबंधी दंतकथाएं प्रचलित हैं।

बड़े गणपति –

पं. नारायण व्यास का नाम आधुनिक उज्जयिनी के विद्वत जगत में सम्मान के साथ लिया जाता है। बड़े गणपति की स्थापना पं. नारायण व्यास जी द्वारा की गई है। यह मंदिर महाकालेश्वर से हरसिद्धि मंदिर के मार्ग में है।
यहां स्थापित महागणपति की प्रतिमा विशाल और कलात्मक है। मंदिर परिसर में ही नवग्रहों की शाष्त्रोक्त मूर्तियां एवं पचंमुखी हनुमान की आकर्षक प्रतिमा स्थापित है। संस्कृत और ज्योतिष के अध्ययन की सुविधा भी यहां पर है।

चौंसठ योगिनी मंदिर में है गणपति की अनूठी प्रतिमा

उज्जयिनी में शाक्त परंपरा का एक अत्यंत प्राचीन स्थल है – 64 योगिनी मंदिर। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस मंदिर में शाक्त परंपरा में मान्य 64 योगिनियां पिंडी रूप में विराजमान हैं। जनश्रुति के अनुसार विक्रमादित्य कालीन यह मंदिर कभी तांत्रिकों का विद्यापीठ रहा है। पुरातत्ववेत्ता भी इसकी पुष्टि करते हैं।
मंदिर के पृष्ठ भाग में गणपति की एक ऐसी प्रतिमा स्थापित है,जैसी अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। यह अद्भुत प्रतिमा खड़ी मुद्रा में है,जिसकी 10 भुजाएं,सभी भुजाओं में आयुध,पांच सूंड और दो मूषक इसे विशिष्ट बनाते हैं।

गोबर गणेश मंदिर,नलखेड़ा

आगर मालवा जिले का कस्बा नलखेड़ा महाभारत कालीन बगलामुखी माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। नगर के मुख्य चौराहे पर एक ऐसा मंदिर है जिसमें गणेश जी की गोबर से निर्मित प्रतिमा स्थापित है। पुरातत्व वेत्ताओं के अनुसार लगभग 10 फीट ऊंची यह प्रतिमा 500 वर्ष से अधिक प्राचीन है। गणेश प्रतिमा के आसपास रिद्धि-सिद्धि की प्रतिमाएं भी हैं।
गोबर से निर्मित यह प्रतिमा श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है।

गोबर गणेश मंदिर,महेश्वर

अहिल्याबाई की नगरी महेश्वर में भी दक्षिण मुखी गोबर गणेश का अति प्राचीन मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई द्वारा करवाया गया था, जबकि प्रतिमा लगभग 900 वर्ष प्राचीन होने की मान्यता है।
गणपति के साथ रिद्धि-सिद्धि भी विराजमान हैं।
एक तो गोबर से निर्मित दक्षिणमुखी प्रतिमा और दूसरे पुण्य श्लोक अहिल्याबाई का नाम मंदिर से जुड़ा होने की वजह से यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।

*अरविन्द श्रीधर

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