रंगों की किताब है तितलियां

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प्रकृति की अद्भुत रंग कृति तितलियों के प्रति ध्यानाकर्षण हेतु ,सितम्बर का महीना बिग बटरफ्लाई मंथ के रूप में मनाया जाता है। प्रकृति की गोद में बसी तितलियां यूं तो पूरे साल नजर आती हैं, पर इस महीने वे जैसे किसी उत्सव में शामिल होने निकल पड़ती हैं। नमी भरे मौसम में फूलों पर मंडराती ये रंगीन परियां हमें याद दिलाती हैं कि दुनिया में सुंदरता और संतुलन का रहस्य इन्हीं छोटे जीवों में छिपा है। तितलियां सिर्फ आंखों को भाने वाली नैसर्गिक सजावट नहीं हैं, वे पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ हैं। उनके बिना खेत सूने हो जाएंगे, पेड़ बंजर रह जाएंगे और प्रकृति का परागण चक्र अधूरा रह जाएगा।

तितली फूल से फूल तक उड़ती है और परागण करती है। इस प्रक्रिया से पेड़ पौधों का जीवन चक्र आगे बढ़ता है और हमारी थाली में अनाज और फल-सब्जियां सज पाती हैं। दरअसल, तितली का पंख फड़फड़ाना प्राकृतिक फल चक्र से जुड़ा हुआ है। यही नहीं, किसी क्षेत्र में कितनी तितलियां हैं और कितनी प्रजातियां मौजूद हैं, इससे उस क्षेत्र के पर्यावरण की गुणवत्ता का अंदाजा लगाया जाता है। तितलियां वहां के स्वास्थ्यमान की रिपोर्ट कार्ड होती हैं। पक्षी, छिपकली और कई छोटे जीव इन्हें भोजन बनाते हैं, ऐसे में खाद्य श्रृंखला चक्र में भी इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। अगर तितलियां कम हो जाएं तो जंगल का पूरा गणित गड़बड़ा जाएगा।

तितलियां कला और साहित्य की प्रेरणा भी हैं। कलाकार उनके रंगों से प्रेरित होकर चित्रकारी करते हैं, डिजाइनर उनके पंखों की नकल पर फैशन बनाते हैं और कवि उनकी उड़ान में सपनों की उड़ान खोजते हैं। बचपन में हाथ से पकड़ने की कोशिश हर किसी ने की होगी, पर तितली हमेशा फिसल कर उड़ जाती है। शायद यही उसका संदेश है कि सुंदरता को थामने की कोशिश मत करो, बस निहारो और सुरक्षित रखो।

लेकिन आज तितलियों पर खतरे मंडरा रहे हैं। जंगल उजड़ रहे हैं, शहर फैल रहे हैं, खेतों में कीटनाशक बिखर रहे हैं और प्रदूषण ने आसमान का रंग बदल दिया है। जलवायु परिवर्तन की मार से मौसम का संतुलन बिगड़ रहा है। इन सबका असर तितलियों के जीवन पर पड़ रहा है। तितली का जीवन चक्र चार चरणों में पूरा होता है । अंडा, लार्वा (इल्ली), प्यूपा और वयस्क तितली। मादा तितली पौधों की पत्तियों पर अंडे देती है, जो बाद में लार्वा में बदलते हैं और फिर प्यूपा अवस्था में रूपांतरित होकर एक पूर्ण तितली बन जाते हैं। हरियाली नष्ट होने से तितलियों का घर छिन रहा है, उनका भोजन घट रहा है और उनका प्रवास कठिन होता जा रहा है। तितलियों की कई दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर आ गई हैं।

जरूरी है कि हम सब मिलकर तितलियों को बचाने के प्रयास करें। अपने घर के आंगन और बगीचों में ऐसे पौधे लगाएं जिन पर तितलियां आना पसंद करती हैं। कीटनाशकों का उपयोग कम करें, उसकी जगह जैविक उपाय अपनाएं। शहरों में हरियाली के छोटे-छोटे कॉरिडोर बचाए रखें, ताकि तितलियां वहां शरण पा सकें। बच्चों को इनके महत्व के बारे में बताना भी जरूरी है, ताकि नई पीढ़ी इन्हें सिर्फ चित्रों में न देखे बल्कि वास्तविक रूप में इनके बीच जी सके। सितंबर का यह महीना एक अवसर है जब हम सब मिलकर तितलियों का लेखा जोखा तैयार कर सकते हैं। तस्वीरें खींचकर साझा करने से वैज्ञानिकों को भी डेटा मिलता है और हमें भी अपने आसपास की तितलियों की पहचान करने का मौका मिलता है ।

तितली दरअसल प्रकृति का वह अध्याय है जो सजीव रंगों से लिखा गया है। उनके बिना यह धरती फीकी पड़ जाएगी। हमें यह समझना होगा कि तितली का संरक्षण केवल फूलों के साथ उसका खेल बचाने भर का काम नहीं है, बल्कि यह हमारे पर्यावरणीय संतुलन, खाद्य सुरक्षा और जीवन की निरंतरता से जुड़ा हुआ है। इस सितंबर का संकल्प यही होना चाहिए कि तितलियों को बचाना है, उनकी दुनिया को सुरक्षित रखना है। आखिर अगर तितलियां रहेंगी तो ही हमारे बगीचे महकेंगे, खेत लहलहाएंगे और धरती की मुस्कान कायम रहेगी।

क्या आपने अपने क्षेत्र में कोई खास तितली देखी है, जो आपको बार-बार लौटकर आती नजर आई हो? उसे पहचान कर, उसकी उपस्थिति का जश्न मनाना ही तितलियों की इस अद्भुत दुनिया का हिस्सा बनना है।

विवेक रंजन श्रीवास्तव
भोपाल

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