अति प्रचार सदा अच्छा नहीं होता.असली दम प्रॉडक्ट में होता है, प्रचार तो केवल केक पर आइसिंग जैसा होता है. बड़े – बड़े ब्रांड अतिप्रचार के मुगालते में ढेर हो जाते हैं.
यही बात राजनीति, सिनेमा और बिजनेस से जुड़े लोगों पर भी लागू होती है.
अतिप्रचार का नुकसान कई फिल्मों ने उठाया है. ठग्स ऑफ हिंदुस्तान बड़े बजट की फिल्म थी. इसका प्रचार बहुत ज्यादा किया गया. मुगालता था कि फिल्म ब्लॉकबस्टर होगी. अमिताभ बच्चन और आमिर खान जैसे सितारे इसमें थे. लेकिन अति प्रचार की वजह से यह फिल्म फ्लॉप हो गई.
शाहरुख खान, कैटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा जैसी दमदार स्टार कास्ट होने के बावजूद ZERO फिल्म 0 साबित हुई. शाहरुख खान के बौने किरदार का बहुत ज्यादा प्रचार किया था, लेकिन लोगों को वह फिल्म पसंद नहीं आई. ऐसे ही शाहरुख खान की एक और फिल्म थी Ra.One. यह शाहरुख खान का ड्रीम प्रोजेक्ट था. VFX और टेक्नोलॉजी पर जमकर पैसा खर्च किया गया. बड़े पैमाने पर प्रचार किया गया, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ढेर हो गई.
अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ जैसे एक्शन हीरो के बावजूद बड़े मियां छोटे मियां अति प्रचार के दलदल में फंस गई. करोड़ों रुपया बर्बाद हो गया.
रामायण पर आधारित होने के बावजूद अति प्रचार फिल्म आदिपुरुष को ले डूबा. फिल्म ने सिनेमा हॉल में पानी तक नहीं मांगा.
केवल प्रचार, अति प्रचार में कोई फिल्म चलती नहीं. चाहे हीरो अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, आमिर खान, अक्षय कुमार या कोई और भी हो.
आप स्टार हो यह जनता की मर्जी है, आपकी नहीं.
अपनी निजी कार रखना हर निम्न आय वर्ग वाले व्यक्ति का ख्वाब होता है. इस ख्वाब को पूरा करने के लिए टाटा ने नैनो कार बनाई. लेकिन अति प्रचार में यह कार फेल हो गई. लोगों के मन में यह बात बैठ गई कि नैनो तो गरीब लोगों के लिए है और कार आदमी अमीर दिखने के लिए खरीदता है. जरूरत तो इतने लोगों को नहीं होती. अगर केवल सुविधा के लिए कोई भी वाहन मात्र लेने की बात होती तो लोग ऑटो रिक्शा पर्सनल यूज़ के लिए क्यों नहीं खरीदते?
यही हाल मारुति सुजुकी की Kizashi कार का हुआ. प्रीमियम सेगमेंट में बहुत प्रचार के साथ भारत में इस कार को लांच किया गया था, लेकिन वह बाजार में फ्लॉप रही.
Renault की Captur एसयूवी भी अति प्रचार में डूब गई. डिजाइन और लुक अच्छा था, प्रचार भी बहुत हुआ लेकिन लोगों को पसंद नहीं आई तो नहीं आई.
टोयोटा की Yaris को प्रीमियम सेडान के रूप पेश किया गया था. इसका मुकाबला होंडा सिटी और मारुति सियाज से था. टोयोटा ने इस पर बहुत रुपया खर्च किया था. लेकिन लोगों को यह भी पसंद नहीं आई.
Datsun Go और Go Plus कारों को भी भारतीय बाजार ने गेट आउट कर दिया. अति प्रचार के बावजूद कार खरीदने की लोगों की इच्छा नहीं हुई. डिजाइन बढ़िया थी. सुरक्षित भी थी, सुन्दर भी थी. सर्विस भी अच्छी थी लेकिन फिर भी लोगों को पसंद नहीं आई. क्यों?
लोगों की मर्जी.
गूगल दुनिया की सबसे विशालतम कंपनियों में से है. गूगल ने Google Glass को भविष्य बताया था. बहुत ज्यादा प्रचार किया गया था.लेकिन यह ग्राहकों को पसंद नहीं आया. गूगल ग्लास को लोगों ने बकवास बना दिया. कंपनी को उसे मार्केट से ही हटाना पड़ा.
अमेजॉन फायर फोन को भी बहुत ज्यादा प्रचारित किया गया था. अमेजॉन अपने इलाके का सबसे बड़ा ब्रांड है, लेकिन लोगों को यह ब्रांड भी पसंद नहीं आया.
तेल बेचने वाली एक बड़ी कंपनी है सेफोला. उसने स्नेक्स के बाजार में कदम रखा. उसके नमकीन प्रॉडक्ट को हेल्दी बताया गया. लेकिन सारा प्रचार धरा रह गया.
फार्मूला यह है कि कामयाबी का कोई फार्मूला नहीं होता.
सारे के सारे ब्रांड कहीं ना कहीं पिट जाते हैं. लोगों की पसंद सबसे ऊपर रहती है.
- कोई कंपनी कितनी भी बड़ी हो, मार्केट में भले ही उसकी तूती बोलती हो लेकिन उसे भी विफलता का रूप देखना पड़ता है. इसलिए किसी भी किसी भी मुगालते में नहीं रहना चाहिए.
- हर ब्रांड की एक लाइफ होती है. उस उम्र के आगे भी ब्रांड चलता रहे यह जरूरी नहीं.
- यह बात लोगों पर भी लागू होती है. किन-किन लोगों पर लागू होती है यह आपको बताना है…

-डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक हैं)