विश्व धरोहर स्मारकों की समृद्ध श्रृंखला है भारत में

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भारत की सांस्कृतिक विरासत समृद्ध तो है ही, स्थापत्य कला और प्राकृतिक सौंदर्य से संपन्न स्मारकों की भी एक समृद्ध श्रृंखला यहां मौजूद है।आप देश के किसी भी हिस्से में चले जाईए,कोई ना कोई स्मारक अपने समय की समृद्धि की गवाही देता हुआ दृष्टिगोचर होगा।
यही कारण है कि यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भारत का विश्व में छटा स्थान है,और यह सूची निरंतर बढ़ती जा रही है।
फिलहाल यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भारत के 44 स्मारक दर्ज हैं,जबकि 62 अन्य स्थल संभावित सूची में हैं।
यह धरोहरें गुप्तकाल (5 वीं 6 वीं सदी) से लेकर 1903 तक के कालखंड की हैं।

यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र,शैक्षिक,वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा 1978 में पहली बार दुनिया की मूल्यवान सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक विरासतों को संरक्षित करने की पहल की गई और पहली बार विश्व की 12 प्रमुख ऐतिहासिक धरोहरों को शामिल करते हुए विश्व धरोहर सूची घोषित की गई थी।
भारत 1983 में इस पहल के साथ जुड़ा,जब यूनेस्को द्वारा देश के चार प्रमुख स्थान विश्व धरोहर सूची में शामिल किए गए। यह स्थान थे- अजंता की गुफाएं,एलोरा की गुफाएं,आगरा का किला और ताजमहल।
2025 आते-आते देश के 44 स्थान विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जा चुके हैं। इनमें से 36 स्थान सांस्कृतिक श्रेणी,7 स्थान प्राकृतिक श्रेणी जबकि एक स्थान (कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान) को मिश्रित श्रेणी में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है।

विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित भारतीय स्मारक हैं-
अजंता की गुफाएं(महाराष्ट्र),एलोरा की गुफाएं (महाराष्ट्र),आगरा किला(उत्तर प्रदेश),ताजमहल (उत्तर प्रदेश),सूर्य मंदिर कोणार्क (उड़ीसा), महाबलीपुरम में स्मारकों का समूह (तमिलनाडु), कांजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान(असम),मानस वन्यजीव अभ्यारण्य(असम),केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान),गोवा के चर्च और कॉन्वेंट,खजुराहो स्मारक समूह(मध्य प्रदेश),हंपी में स्मारकों का समूह(कर्नाटक),फतेहपुर सीकरी(उत्तर प्रदेश), पत्तदकल में स्मारकों का समूह(कर्नाटक), एलीफेंटा गुफाएं(महाराष्ट्र),चोल मंदिर (तमिलनाडु),सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान(पश्चिम बंगाल),नंदादेवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (उत्तराखंड),सांची के बौद्ध स्मारक(मध्य प्रदेश), हुमायूं का मकबरा(दिल्ली), कुतुब मीनार और उसके स्मारक(दिल्ली),भारत के पर्वतीय रेलमार्ग (पश्चिम बंगाल,तमिलनाडु,हिमाचल प्रदेश), बोधगया मंदिर परिसर(बिहार),भीमबेटका शैलाश्रय (मध्य प्रदेश)छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (महाराष्ट्र),चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व पार्क(गुजरात),लालकिला परिसर(दिल्ली), जंतर मंतर,जयपुर(राजस्थान),पश्चिमी घाट(महाराष्ट्र, कर्नाटक,केरल,तमिलनाडु),राजस्थान के पहाड़ी किले(राजस्थान),गुजरात के पाटन में रानी की वाव(गुजरात),ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (हिमाचल प्रदेश),नालंदा महाविहार(बिहार), कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान(सिक्किम),ली कोर्बुसिए का वास्तुशिल्प कार्य(चंडीगढ़),मुंबई के विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको समूह (महाराष्ट्र),जयपुर शहर(राजस्थान),काकतीय रुद्रेश्वर मंदिर(तेलंगाना),धोलावीरा हड़प्पा शहर (गुजरात),शांतिनिकेतन(पश्चिम बंगाल), होयसल के पवित्र समूह(कर्नाटक) और अहोम राजवंश के दफनाने वाले पवित्र टीले, मोईदाम्स(असम)।

पेरिस स्थित यूनेस्को मुख्यालय में 11 जुलाई 2025 को आयोजित विश्व धरोहर समिति के 47वें सत्र के दौरान, “मराठा सैन्य परिदृश्य” नामक किलों की श्रृंखला को 44 वीं प्रविष्टि के रूप में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। यह किले हैं-
रायगढ़ का किला,रायगढ़,रायगढ़ का किला(पुणे),शिवनेरी किला(पुणे),प्रतापगढ़ किला(सतारा),पन्‍हाला किला(कोल्‍हापुर),विजयदुर्ग किला(सिंधुदुर्ग),लोहागढ़(पुणे),साल्‍हेर किला
(नासिक),सिंधुदुर्ग(सिंधुदुर्ग),सुवर्णदुर्ग(रत्‍नागिरी)
खंडेरी किला(रायगढ़) और जिंजी किला
(विल्लुपुरम,तमिलनाडु)

इसके अलावा मध्य प्रदेश सहित विभिन्न प्रदेशों के 62 से अधिक स्मारक विश्व धरोहर की संभावित सूची में दर्ज हैं।

संभावित सूची में दर्ज मध्य प्रदेश के प्रमुख स्थान हैं-ओरछा का ऐतिहासिक समूह,धमनार का ऐतिहासिक समूह,रामनगर(मंडला)के गोंड स्मारक,भोजेश्‍वर महादेव मंदिर(भोजपुर),चंबल घाटी के शैलकला स्थल,खूनी भंडारा(बुरहानपुर),
ग्‍वालियर किला एवं बुंदेलों के महल और किले।

मौर्यकालीन अशोक शिलालेखों के लिए बिहार,उत्‍तर प्रदेश,मध्‍य प्रदेश,दिल्‍ली,कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश,
चौसठ योगिनी मंदिर श्रृंखला के लिए मध्‍य प्रदेश,
उत्‍तर प्रदेश,तमिलनाडु एवं ओडिशा तथा कोंकड के तटीय दुर्ग जैसे स्थान भी विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल हैं।

ऐसी समृद्ध विरासत पर प्रत्येक भारतीय का गौरवान्वित होना स्वाभाविक है। लेकिन सिर्फ गौरवान्वित होना पर्याप्त नहीं है। इन धरोहरों का संरक्षण एवं संवर्धन प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।
यह जिम्मेदारी उठाकर ही हम गौरव के वास्तविक हकदार हो सकते हैं।
आम नागरिकों को यह समझना होगा कि ऐतिहासिक विरासतों पर अपना नाम खोदना अथवा अन्य तरीके से विकृत करना गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है,जो सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं है।

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