भोपाल में हाल ही में संपन्न ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का सार और सार्थकता इसके शुभारंभ और समापन के अवसरों पर कही गई दो बातों में निहित है। पहली बात शुभारंभ के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही- ‘राज्य में निवेश करने का यह सही समय है।’ और दूसरी बात समापन के अवसर पर केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कही – ‘ज्यादा से ज्यादा एम ओ यू जमीन पर उतरें, यह प्रयास करना होगा।’
इन दोनों के बीच वह तमाम बातें और आंकड़े आते हैं, जो इन्वेस्टर्स समिट के संबंध में विशेषज्ञ और प्रसार माध्यम लगातार कह रहे हैं।
इसमें दो मत नहीं कि राज्य सरकार ने जीआईएस के पहले 7 रीजनल समिट और अलग-अलग शहरों में रोड शो आयोजित कर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए अनुकूल माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्राप्त प्रस्तावों की दृष्टि से देखा जाए तो सरकार लक्ष्य हासिल करने में सफल भी रही है। समिट के दौरान निवेशकों से 30.77 लाख करोड़ के निवेश प्रस्तावों पर सहमति बनना औद्योगिक प्रगति की दिशा में बड़ी उम्मीद जगाता है।
वर्ष 2025 को सरकार,उद्योग एवं रोजगार वर्ष के रूप में मनाने के लिए प्रतिबद्ध है। निवेश प्रस्ताव धरातल पर उतरें इसके लिए सरकार ने 19 अलग-अलग नीतियों को निवेशकों के अनुकूल बनाया है। सरकार का कहना है कि सिंगल विंडो सिस्टम निवेशकों की हर संभव मदद करेगा।
उद्योग स्थापित करने के लिए वांछित तरह-तरह की अनुमतियों को भी 38 के स्थान पर 10 कर दिया गया है, साथ ही इसके लिए समय सीमा भी निर्धारित की गई है।
राज्य के प्रशासनिक मुखिया का यह कहना भी मायने रखता है कि ‘पहले अफसर के पीछे उद्योगपति भागते थे,पर अब हमारे अधिकारी उद्योगपतियों का पीछा करेंगे।’
पतंजलि को 432 एकड़ भूमि आवंटन का आदेश हवाई अड्डे पर जाकर सौंपने की प्रक्रिया,दरअसल निवेशकों के लिए एक संदेश है कि यह केवल एक जुमला नहीं,अपित सचमुच ऐसा होने जा रहा है।
कुछ अन्य कंपनियों को भी भूमि आवंटन आदेश जारी कर दिए गए हैं।
दरअसल नेतृत्व ने तो अपनी मंशा प्रकट कर दी है, अब बारी प्रशासनिक मशीनरी की है कि वह उन सपनों को धरातल पर उतारने के लिए कटिबद्ध हो, जिन्हें ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान देखा गया है।
मध्य प्रदेश अनंत संभावनाओं वाला प्रदेश है। यह अलग बात है कि अभी तक प्रदेश में मौजूद संभावनाओं का पूरा दोहन नहीं किया जा सका है।
कच्चे माल से लगाकर श्रम तक और जमीन से लगाकर अन्य आवश्यक अधोसंरचना तक,प्रदेश के पास हर वह संसाधन उपलब्ध है जो औद्योगिक विकास के लिए चाहिए।
प्रदेश में 5 लाख किलोमीटर का सड़कों का संजाल है। रेल यातायात का अच्छा खासा नेटवर्क है।अंतर्राज्यीय कंटेनर डिपो हैं। 6 हवाई अड्डे हैं।
अलग-अलग जिलों में 11 थीम बेस्ड औद्योगिक पार्क यथा आईटी पार्क,मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क,टेक्सटाइल पार्क,रेयर अर्थ और टाइटेनियम थीम पार्क, बायोटेक्नोलॉजी पार्क,प्लास्टिक पार्क,फूड प्रोसेसिंग पार्क,मेडिकल डिवाइस पार्क,एनर्जी पार्क, एवं फुटवियर पार्क या तो तैयार हो चुके हैं अथवा अंतिम चरण में हैं।
निश्चित ही इस तरह की सुव्यवस्थित अधोसंरचना प्रदेश का माहौल औद्योगिक निवेश के अनुकूल बनाती है।
एम एस एम ई,पर्यटन,टेक्सटाइल,कृषि और खाद्य प्रसंस्करण,ऊर्जा एवं नवकरणीय ऊर्जा, न्यूक्लियर एनर्जी, इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल, ऑटोमोबाइल्स,
केमिकल्स,आईटी, रियल एस्टेट, लॉजिस्टिक्स,प्लास्टिक व पैकेजिंग, खनन,सीमेंट, एवियशन, एक्सप्रेस वे आदि ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें निवेश की अच्छी खासी गुंजाइश है।
समिट ने विकास की नई राह खोली है। 200 से अधिक भारतीय कंपनियों की प्रतिभागिता, 200 से अधिक वैश्विक कंपनियों के सीईओ की उपस्थिति, 50 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों की भागीदारी,अनेकानेक यूनिकॉर्न के संस्थापकों की मौजूदगी और 30.77 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव अथवा एम ओ यू का हस्ताक्षरित होना यह प्रदर्शित करता है कि मध्य प्रदेश की उद्योग अनुकूल अधोसंरचना निवेशकों को आकर्षित करने में सफल रही है और प्रदेश औद्योगिक विकास की उड़ान भरने के लिए तैयार है।
राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासनिक मशीनरी की कदमताल भी उत्साह जनक है।एक इवेंट के रूप में जीआईएस की सफलता भी उत्साहवर्धक है। पर पुराने अनुभवों से भी सीख लेने की जरूरत है। वास्तविक विकास महज़ एम ओ यू हस्ताक्षरित होने से नहीं,उद्योगों के धरातल पर उतरने से होगा।
पिछले अनुभव बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहे। समिट के दौरान निवेश प्रस्ताव अथवा एम ओ यू तो हस्ताक्षरित होते रहे हैं,पर उनमें से जमीन पर लगभग 9 से 10% ही उतर सके हैं।
इस अंतर को पाटे बिना विकास के बड़े लक्ष्यों को हासिल करना संभव नहीं है।
एक और बात ध्यान देने की है। जीआईएस के दौरान प्राप्त कुल 84 प्रस्तावों में से 29 प्रस्ताव इंदौर को, 22 प्रस्ताव भोपाल को,9 प्रस्ताव जबलपुर को, 7 प्रस्ताव रीवा को,5 प्रस्ताव शहडोल को,3 प्रस्ताव उज्जैन को,3 प्रस्ताव सागर को,5 प्रस्ताव नर्मदापुरम को तथा एक-एक प्रस्ताव चंबल और ग्वालियर रीजन को प्राप्त हुए हैं।
इंदौर एवं भोपाल परिक्षेत्रों को अन्य की तुलना में अधिक प्रस्ताव मिले हैं। 21 ऐसे जिले हैं, जिन्हें एक भी प्रस्ताव नहीं मिल सका।
सरकार को इसके कारणों पर ध्यान देने और आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है।
औद्योगिक विकास का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना भी है, ताकि पलायन पर रोक लगे। यदि औद्योगिक विकास कुछ गिने-चुने क्षेत्रों तक ही सीमित होकर रह जाएगा तो स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराना और पलायन को रोकना जैसे लक्ष्यों को हासिल नहीं किया जा सकता।
उम्मीद की जानी चाहिए कि जीआईएस के माध्यम से सरकार द्वारा किए गए प्रयास अवश्य फलीभूत होंगे।
*अरविन्द श्रीधर