श्रीमद्भागवतगीता में धृति (धैर्य) को दैवी संपदा कहा गया है। इस दृष्टिकोण से यदि देखा जाए तो सुनीता विलियम्स को ‘धृति देवी’ का साक्षात अवतार कहा जा सकता है।
सुनीता और उनके साथी केवल 8 दिनों की अंतरिक्ष यात्रा पर निकले थे, लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण उन्हें 286 दिनों तक अंतरिक्ष में रहना पड़ा।
इस दौरान नासा की तकनीकी विशेषज्ञता और उनकी खुद की तैयारी तो काम आई ही,सबसे ज्यादा काम आया उनका असीमित धैर्य,जो उन्हें ‘धृति देवी’ के अवतार के रूप में प्रतिष्ठित करता है।
यह भी एक संयोग है कि उनकी वापसी 9 महीने के बाद हुई है। पल-पल अनिश्चितताओं के बीच 9 माह अंतरिक्ष में गुजारकर सकुशल पृथ्वी पर उतरने को अवतरण नहीं तो और क्या कहेंगे?
9 माह जीवन और मृत्यु की अनिश्चितताओं के बीच गुजारना हंसी खेल नहीं है। वह भी तब,जब कल्पना चावला के रूप में हम अपनी एक बेटी को ऐसे ही एक अंतरिक्ष अभियान के दौरान खो चुके हों।
आज के दौर में जब अधीरता लोगों का सहज स्वभाव बन गई हो,धैर्य की इतनी लंबी परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण करने वाला व्यक्ति साधारण नहीं हो सकता।
सुनीता ने धैर्य का यह पाठ भगवद्गीता पढ़कर आत्मसात किया है, जो मानव मात्र को निष्काम कर्म और किसी भी परिस्थिति में विचलित न होने का सार्वभौम संदेश देती है।
सुनीता भारतीय ज्ञान परंपरा के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान श्रीमद्भगवद्गीता गीता और उपनिषदों में अगाध श्रद्धा रखती हैं। अपनी पिछली भारत यात्रा के दौरान नेशनल साइंस सेंटर के छात्रों के साथ बातचीत करते हुए स्वयं उन्होंने बताया था कि वे अंतरिक्ष यात्रा के दौरान गीता और उपनिषद अपने साथ लेकर गई थीं।
सुनीता विलियम्स का यह तीसरा अंतरिक्ष मिशन था, और वह कुल मिलाकर 609 दिन अब तक अंतरिक्ष में बिता चुकी हैं।
यह एक असाधारण उपलब्धि है।
पृथ्वी पर आपका स्वागत है ‘धृति देवी’।
अभिनंदन तो एलॉन मस्क का भी बनता है, जिनकी कंपनी ‘स्पेसएक्स’ का स्पेसक्राफ्ट ‘ड्रैगन’ अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी का माध्यम बना। इसे सरकार और निजी कंपनियों के समन्वय के एक उदाहरण के रूप में भी रेखांकित किया जाना चाहिए।
