वैसे तो वृद्धाश्रम का होना कहीं ना कहीं हमारे सामाजिक ताने-बाने की असफलता का परिचायक है, लेकिन जब हम विदिशा स्थित “श्री हरि वृद्धाश्रम” में निवासरत प्रफुल्लित बुजुर्गों से मिलते हैं, तब आश्वस्ति होती है कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है. सामाजिक असफलता का दाग धोने के लिए चंद जिम्मेदार लोग अभी मौजूद हैं,जो पूरी शिद्दत के साथ इस प्रयास में लगे हैं कि निराश्रित बुजुर्ग सम्मानजनक जीवन बिता सकें.
आप एक-दो घंटे श्री हरि वृद्धाश्रम में बिताकर देखिए, पशोपेश में पड़ जाएंगे कि छीजते सामाजिक ताने-बाने और दरकते रिश्ते-नातों के प्रत्यक्षदर्शी के नाते हम अपने आपको धिक्कारें अथवा उनमें पैबंद लगाने की कोशिश कर रहे शर्मा दंपत्ति की सराहना करें।

वृद्धाश्रम में निवासरत बुजुर्गों की कहानियां सुनकर
लगता है कि मानवीय संवेदनाएं जैसे अंतिम सांसें गिन रही हैं। रिश्ते-नाते अपना अर्थ खो रहे हैं। मानवीय अस्तित्व पर सिर्फ ‘मैं’ हावी होता जा रहा है और निकटस्थ खून के रिश्ते भी बोझ लगने लगे हैं।
निराश्रित असहाय बुजुर्गों का आश्रम में रहना तो समझ में आता है, लेकिन ऐसे बुजुर्गों को आश्रम में देखकर आश्चर्य होता है,जिनके भरे पूरे परिवार हैं। आर्थिक स्थिति भी ठीक-ठाक है।
आश्रम में निवासरत बुजुर्गों से बात करने पर पता चलता है कि कुछ बुजुर्गों के परिजन उन्हें धोखे में रखकर आश्रम छोड़कर गए हैं। कुछ बुजुर्ग ऐसे हैं जिनकी तीन-चार संतानें हैं, लेकिन कोई उन्हें अपने साथ रखने को तैयार नहीं है। कुछ ऐसे बुजुर्ग हैं जो मानसिक व्याधियों के चलते सड़कों पर लावारिस भटक रहे थे और शर्मा दंपत्ति उन्हें आश्रम में लेकर आए।
सबसे ज्यादा विचलित करती हैं ऐसे बुजुर्गों की कहानियां जिनके बच्चे उच्च शिक्षित हैं,उच्च पदों पर कार्यरत हैं और हर दृष्टि से साधन संपन्न हैं। लेकिन नियति का खेल देखिए कि जीवन की अंतिम बेला में बृद्धाश्रम उनका सहारा बना है।
किसी सभ्य समाज में ऐसे पुत्र की कल्पना की जा सकती है जो अपने बुजुर्ग बीमार पिता और विकलांग भाई को एक होटल के कमरे में मरने के लिए छोड़कर चला जाए?
लेकिन एक उच्च शिक्षित कलयुगी पुत्र ने ऐसा किया। तीन-चार दिन बीतने के बाद जब कमरे से बदबू आने लगी तब कमरा खोला गया। अंदर का हृदय विदारक दृश्य देखकर लोगों की रूह कांप गई।
उन बुजुर्ग सज्जन और विकलांग युवक को श्री हरि वृद्धाश्रम ने अपनाया। फिर उनका शेष जीवन बृद्धाश्रम में ही बीता।
वृद्धाश्रम में एक ऐसी बुजुर्ग महिला भी मिलीं जिन्होंने बीड़ी बनाकर,मेहनत मजदूरी कर अपने पुत्र को पाला पोसा। लेकिन उच्च पद पर पहुंचते ही वह पुत्र मां के संघर्ष को भूल गया।
क्या गुजरी होगी उस मां पर जिसका शेष जीवन केवल इस इंतजार में गुजरा कि कभी तो उनका पुत्र खैर-खबर लेने वृद्धाश्रम आएगा!
समाज में संभ्रांत नागरिक का चोला ओढ़ कर घूम रही ऐसी संतानों को कौन समझाए कि अपने माता-पिता को उपेक्षित कर वह अपने लिए किस दुर्भाग्य को आमंत्रित कर रहे हैं।
ऐसी बहुत सी कहानियां हैं जो सामाजिक संरचना के विफल होने की जीती जागती मिसाल हैं।

इन सब के बीच आशा की किरण हैं वेद प्रकाश शर्मा और श्रीमती इंदिरा शर्मा जैसे लोग,जिन्होंने अपना जीवन असहाय बेसहारा बुजुर्गों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है।
2005 में जब उन्होंने यह प्रकल्प प्रारंभ किया था तब इसका स्वरूप बहुत छोटा था। उनकी लगन,समर्पण और सेवा भाव को देखकर समाज सहयोग के लिए आगे आया और धीरे-धीरे वृद्धाश्रम का स्वरूप बृहद होता चला गया।
एक छोटे से किराए के मकान में प्रारंभ हुआ वृद्धाश्रम अब 25000 वर्ग फीट के विस्तृत परिसर में संचालित हो रहा है।
वेद प्रकाश शर्मा इसका श्रेय तत्कालीन विदिशा कलेक्टर एवं वर्तमान में भोपाल कलेक्टर के रूप में कार्यरत कौशलेंद्र विक्रम सिंह को देते हैं, जिन्होंने पुराने जिला चिकित्सालय भवन को बृद्धाश्रम के उपयोग हेतु समिति के सुपुर्द किया। इमारत की साज सज्जा और मरम्मत हुई विदिशा में कलेक्टर रहे उमाशंकर भार्गव की पहल पर, जिन्होंने लगभग 12 लाख रुपए इसकी मरम्मत के लिए स्वीकृत किए।
आज श्री हरि वृद्धाश्रम और उसके संचालक शर्मा दंपत्ति के सेवाभाव की चारों ओर सराहना हो रही है।
भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार खटीक इसे देश का आदर्श वृद्धाश्रम मानते हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री रघुवीर चरण शर्मा ने इसे 3 स्टार सुविधाओं वाला वृद्धाश्रम कहा था। नोबेल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी आश्रम की व्यवस्थाओं और संचालकों के सेवा भाव की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।
इन सब के बीच शर्मा दंपत्ति एकनिष्ठ ध्येय के साथ अपनी साधना में संलग्न हैं। समाज और सरकार दोनों का व्यापक समर्थन उन्हें मिल रहा है।
वह बताते हैं कि वृद्धाश्रम में निवासरत बुजुर्गों का पुनर्वास हमेशा उनकी प्राथमिकता रहा है, क्योंकि कितना ही साधन संपन्न वृद्धाश्रम क्यों ना हो,परिवार की जगह नहीं ले सकता।
परिजनों की निरंतर काउंसलिंग के माध्यम से वह अब तक 3000 से अधिक बुजुर्गों का पुनर्वास करवा चुके हैं।

आश्रम की दिनचर्या और कार्यक्रम कुछ इस तरह से संचालित किए जाते हैं कि बुजुर्गों को अकेलेपन का एहसास नहीं हो पाता। कथा प्रवचन से लगाकर मनोरंजन कार्यक्रम और तीर्थ यात्रा तक सब कुछ यहां की दिनचर्या में शामिल है।
विदिशा के प्रायः सभी चिकित्सक यहां अपनी सेवाएं देते हैं।
एक बेहद पारिवारिक माहौल में सभी बुजुर्गों का ख्याल रखा जाता है।
अपनों की उपेक्षा से व्यथित और आश्रम की सेवाओं से नवजीवन प्राप्त कुछ ऐसे भी बुजुर्ग हैं जिन्होंने अपनी देह मानव कल्याण के निमित्त चिकित्सा महाविद्यालय को दान करने का फैसला लिया है। देहदान के संकल्प के तहत अब तक 40 बुजुर्गों की देह विभिन्न चिकित्सा महाविद्यालयों को सौंपी जा चुकी है।
ऐसे बुजुर्ग जिनका इस संसार में कोई नहीं है,उनका अंतिम संस्कार भी आश्रम द्वारा ही किया जाता है। अब तक 200 से अधिक बुजुर्ग मृतकों के अंतिम संस्कार आश्रम द्वारा किए जा चुके हैं।
एक और तथ्य उल्लेखनीय है।जब सारी दुनिया में कोरोना का हाहाकार मचा था उस दौर में आश्रम का एक भी बुजुर्ग कोरोना संक्रमित नहीं हुआ। इसे श्रेष्ठ व्यवस्थापन के उदाहरण के रूप में रेखांकित किया जाना चाहिए।
रेखांकित वेद प्रकाश शर्मा के इस बयान को भी किया जाना चाहिए कि वृद्धाश्रम कितना भी सुविधा संपन्न क्यों ना हो, घर-परिवार का स्थान नहीं ले सकता।
काश यह बात उनकी समझ में आती जो अपने बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में छोड़ जाते हैं…काश वह यह भी समझ पाते कि एक दिन उनको भी बृद्ध होना है।
श्रद्धालय वृद्धाश्रम धार का संचालन करते करते हम कैसे देश में अग्रणी श्रेष्ठ संचालन करे, हमने श्री हरि वृद्धाश्रम विदिशा का अवलोकन किया। शर्मा दंपत्ति का कार्य – प्रयोग उल्लेखनीय व अनुकरणीय है। संसाधनों की सीमितता के बाद भी अच्छे से अच्छी सेवा व वृद्धजन सरोकार आसान नहीं पर असंभव भी नहीं है। सेवा का सौभाग्य हमें मिला यह परमात्मा की कृपादृष्टि है। सामाजिक सहयोग ईश्वरीय कार्य है। शर्मा दम्पत्ति व उनकी सेवा भावी टीम का अभिनंदन। वृद्धजन सदैव खुश रहे, स्वस्थ्य रहे यही कामना है। श्रीधर ने आपने श्रीहरि का अवलोकन कर जो सामाजिक स्वीकार्यता लेख में प्रदान की उनके लिए साधुवाद।