वर्ष की दोनों नवरात्र पर उपवास का बहुत अधिक महत्व है। ऋतु का शरीर पर प्रभाव भी अलग-अलग होता है, इसलिए ऋतु अनुसार दोनों नवरात्र में अलग-अलग प्रकार के उपवास किए जाते हैं।
उपवास अर्थात निकट जाकर रहना। अर्थात ईश्वर के निकट अधिक से अधिक रहने का प्रयास करना। प्रत्येक जीवात्मा ईश्वर का अंश होने के कारण वह ईश्वर के अधिक से अधिक निकट होने पर ही अधिक सुखी होता है। सांसारिक संताप से हटकर ईश्वर के निकट रहने का सर्वोत्तम अवसर यही दो नवरात्र हैं। इनका अधिक से अधिक लाभ उठाएं।
इस नवरात्र पर आप ऐसा उपवास कर सकते हैं-
प्रातः सबसे पहले आपको नींबू पानी शहद सेंधा नमक लेना चाहिए।
प्रतिदिन नियमित योग करें।
उसके बाद यदि आप प्रतिदिन आपकी प्रकृति के अनुसार आपको बताया गया रस लेते हैं तो वह लें।
नहीं तो किसी विटामिन सी युक्त फल का रस जैसे मौसम्बी, संतरा इत्यादि लेना है।
आधे घंटे बाद फलामृत लेना चाहिए, इसके लिए 50 ग्राम ताजा नारियल को एक कप पानी में पीसकर छानकर उसमें ऋतु अनुसार अभी मिलने वाले 150 ग्राम फल डालें।
दोपहर भोजन के स्थान पर अनार रस
सायंकाल भोजन के स्थान पर बेलफल उपलब्ध हो तो बेलफल का रस लें।
इसमें से जो आप नहीं बना सकते, यदि आप भोपाल में है तो हमें सूचित कीजिए, हम आपके निकटवर्ती रसाहार केंद्र से बनाकर आपको भेज सकते हैं।
हो सके तो स्नान के पूर्व आधा घंटा सर्वांग मिट्टी लेप करें। सर्वांग मिट्टी लेप हेतु कोई भी साफ सुथरी मिट्टी को पानी में भिगोकर उसका गाढ़ा घोल बनाकर बारीक छलनी से छान कर उपयोग करें या जादू मिट्टी हमारी वेबसाइट rasahara.com पर या आपके निकटवर्ती रसाहार केंद्र में उपलब्ध है, उसका उपयोग करें।
धूप, तनाव, विवाद और अधिक श्रम से बचें। अधिक से अधिक ईश्वर प्रणिधान हो।
अभी अपना वजन कीजिए और 9 दिन बाद भी कीजिए।
जो भी वजन कम होगा वह शरीर का कचरा ही साफ होगा।
मजे की बात है कि एक बूंद भी पसीना बहाए बिना यह होगा।
*पूर्णिमा दांते
(लेखिका आयुर्वेद एवं रसाहार चिकित्सा की विशेषज्ञ हैं)