भारतीयों के बारे में एक धारणा प्रचलित है कि वह सामान्य परिस्थितियों में अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति कितने ही बेपरवाह नजर आते हों,संकट के समय राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा अपने चरम पर होते हैं। संकट आसमानी हो या सुल्तानी, जब भी राष्ट्र को जरूरत पड़ी नागरिकों ने आगे बढ़कर अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया है। नागरिकों के दिलों में धड़कती इसी भारतीयता ने देश को हर संकट से उबारा है। भारतीयता का यही भाव हमारा सबसे बड़ा रक्षा कवच है।
22 अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमले के बाद जो परिस्थितियां बनी हैं, उनके चलते राष्ट्र एक बार फिर नागरिक कर्तव्यों के प्रति पूर्ण निष्ठा की अपेक्षा कर रहा है।
संविधान के भाग 4 (क) के अनुच्छेद 51 में नागरिक कर्तव्यों का वर्णन किया गया है।
वर्तमान परिस्थितियों में जिन कर्तव्यों का स्मरण कराए जाने की आवश्यकता है,वह हैं – भारत की संप्रभुता,एकता और अखंडता की रक्षा में योगदान करना,तथा देश की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हुए आवश्यकता पड़ने पर तन-मन-धन से योगदान देना।
भारतीय संस्कृति में सन्निहित समरसता और समान भ्रातृत्व भाव को पुष्ट करना भी नागरिक कर्तव्यों में शामिल किया गया है।
भारत जैसे विविधता वाले देश में हमेशा ही इस भाव की आवश्यकता रही है।
नागरिकों के लिए राज्य ही सर्वोपरि है। प्रभुसत्ता अथवा संप्रभुता का यही तात्पर्य है। राज्य के आदेशों का पालन करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
इसी तरह देश की रक्षा करना जितना सैनिकों का कर्तव्य है उतना ही आम नागरिकों का भी। राष्ट्रीय संकट की स्थिति में इन कर्तव्यों के पालन की अपेक्षा और भी बढ़ जाती है।
राष्ट्र पर कोई संकट हो और आम नागरिकों से सैनिक के रूप में राष्ट्र सेवा करने का आवाहन किया जाए तो नागरिकों को चाहिए कि अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और मतभेद बुलाकर बगैर किसी अपेक्षा के सैनिकों के साथ खड़े हो जाएं।
वैसे संविधान में यह भी प्रावधान है कि संकटकाल में कानून बनाकर सैनिक सेवा को अनिवार्य बनाया जा सकता है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि संविधान में वर्णित इन कर्तव्यों के पालन को लेकर आम भारतीयों की निष्ठा असंदिग्ध है। लेकिन विगत कुछ वर्षों में संचार माध्यमों,खास तौर से सोशल मीडिया के एडिक्शन के चलते ऐसा माहौल बना है, जो कभी-कभी नैतिकता और उचित-अनुचित की सीमाएं लांघ जाता है। लोकप्रियता और लाइक्स के चक्कर में सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्री डाल दी जाती है, जिसकी कम से कम संकट के समय में तो जिम्मेदार नागरिकों से अपेक्षा नहीं की जा सकती।
नागरिकों को यह समझना चाहिए कि सोशल मीडिया पर राष्ट्रभक्ति प्रदर्शित करने की बजाय नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन करके कहीं ज्यादा देश के काम आया जा सकता है।
यह सही है कि ऐसे अवसरों पर नागरिकों का राष्ट्रप्रेम चरम पर होता है और इसके प्रकटीरण का सर्वसुलभ माध्यम है सोशल मीडिया। लेकिन इस बात का ध्यान रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि हमारी किसी पोस्ट से राष्ट्रीय हितों पर कोई नकारात्मक प्रभाव ना पड़े।
एक सैन्य अधिकारी की अपील देखिए- “यदि आप अपने क्षेत्र में भारतीय सेना,वायु सेना या नौसेना के जवानों या सैनिक वाहनों की आवाजाही देखें तो कृपया उसका वीडियो या रील ना बनाएं। सोशल मीडिया पर उसे साझा ना करें। ऐसा करके आप अनजाने में दुश्मन की मदद कर सकते हैं।”
शत्रु पक्ष सोशल मीडिया के माध्यम से भ्रामक जानकारी फैलाकर भी समाज में वैमनस्य पैदा कर सकता है। पाकिस्तान तो इसमें माहिर है। दुष्प्रचार के मामले में पाकिस्तान पूरी दुनिया में कुख्यात है।अतः सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त सूचनाओं पर नागरिक आंख मूंद कर भरोसा ना करें।
विदेश मंत्रालय, सैन्य प्रवक्ता और पत्र सूचना कार्यालय प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से प्रतिदिन जानकारियां दे रहे हैं। इस समय का सबसे बड़ा नागरिक कर्तव्य यही है कि हम सरकार द्वारा दी जा रही सूचनाओं एवं निर्देशों का अक्षरशः पालन करें। शरारती और देश विरोधी ताकतों द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाई जा रही भ्रामक सूचनाओं के बहकावे में ना आएं।
मीडिया से भी संयम की अपेक्षा की जाती है। टीआरपी बढ़ाने के और भी अवसर मिलेंगे, लेकिन जब युद्ध जैसे हालात हों तब मीडिया को पूरी जिम्मेदारी का परिचय देना चाहिए।
अति उत्साही मीडिया देश के लिए संकट पैदा कर सकता है। मुंबई 26/11 आतंकी हमले के समय शत्रु पक्ष द्वारा मीडिया की लाइव रिपोर्टिंग के दुरुपयोग का उदाहरण हमारे सामने है। उस प्रकरण से सबक लिए जाने की जरूरत है। मीडिया को भी और आम नागरिकों को भी।
शत्रु पक्ष के संभावित हमले से नागरिक कैसे अपना बचाव करेंगे,इसके लिए पूरे देश के संवेदनशील जिलों में मॉक ड्रिल आयोजित की गई थी। कई जगहों से ऐसी सूचनाएं आईं कि मॉक ड्रिल के दौरान नागरिकों ने वैसी सतर्कता प्रदर्शित नहीं की,जैसी अपेक्षित थी।
कई जगहों पर लाइटें जलती रहीं,वाहन सड़कों पर दौड़ते रहे और शादी-ब्याह में लोग आतिशबाजी करते रहे।
यह प्रवृत्ति घातक हो सकती है। सोशल मीडिया के तमाम वाग्वीर इन मुद्दों पर नागरिकों को जागरुक कर देश की कहीं अधिक महत्वपूर्ण सेवा कर सकते हैं।
देश के अंदर का मोर्चा नागरिक संभालें, देश की सीमाओं की रक्षा करने के लिए हमारे जवान सक्षम हैं।
वैसे तो पहलगाम आतंकी हमले के बाद देश ने अभूतपूर्व एकजुटता का परिचय दिया है, लेकिन इन विषम परिस्थितियों में भी कुछ लोगों का अपना ही एजेंडा है,और हमेशा की तरह वह सुर्खियां बटोर रहे हैं।
किसी को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नामकरण पर आपत्ति है, तो कोई सरकार की विफलता का हिसाब मांग रहा है। कुछ छुटभैये बैनर्स-पोस्टर्स के माध्यम से श्रेय की होड़ में लगे हैं तो कुछ फेसबुकिया लिख्खाड़ों ने भारत द्वारा अब तक लड़े गए युद्धों पर तुलनात्मक अध्ययन का एक नया मोर्चा खोल दिया है।
चिंता की बात तो यह है कि ऐसी सूचनाओं का उपयोग दुश्मन देश द्वारा अपने पक्ष को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है।
इस पर तत्काल रोक लगाए जाने की आवश्यकता है। हम प्रजातांत्रिक देश हैं। मतभेद होना स्वाभाविक है। लेकिन उनको हवा देने का यह वक्त नहीं है।
यह वक्त है संयम का और नागरिक कर्तव्यों की कसौटी पर खरा उतरने का।
*अरविन्द श्रीधर