भारतीय अंतरिक्ष अन्वेषण के इतिहास का महत्वपूर्ण पड़ाव

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भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला 20 दिन की अंतरिक्ष यात्रा के बाद 15 जुलाई 2025 को पृथ्वी पर लौट आए हैं। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने वाले शुभांशु देश के पहले अंतरिक्ष यात्री हैं। राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले वह दूसरे भारतीय हैं। उनकी यात्रा इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि 41 साल बाद किसी भारतीय द्वारा अंतरिक्ष की यात्रा की गई।
मिशन में शुभांशु शुक्ला के साथ अमेरिका के पेगी व्हिस्टन, पोलैंड के स्लावोज उज्नान्स्की और हंगरी के टिबोर कापू भी शामिल थे।

शुभांशु शुक्ला का जन्म 10 अक्टूबर 1985 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने 2006 में भारतीय वायुसेना में कमीशन प्राप्त किया। वे 2000 घंटे से अधिक विभिन्न लड़ाकू विमान उड़ने का अनुभव रखते हैं।

25 जून 2025 को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट से ‘ड्रैगनफ्लाई’ यान द्वारा उन्होंने अंतरिक्ष की यात्रा शुरू की। 28 घंटे की यात्रा के बाद 26 जून को अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़े। वे इस मिशन के साथ अंतरिक्ष में जाने वाले दुनियां के 634वें व्यक्ति हैं।

अठारह दिनों की यात्रा में शुभांशु शुक्ला ने 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए,जिनमें मांसपेशियों की हानि, मानसिक स्वास्थ्य, अंतरिक्ष में फसलें उगाना,हड्डियों,माइक्रोएल्गी और नई सेंट्रीफ्यूगेशन तकनीक पर रिसर्च शामिल थी।
इनमें से कई प्रयोग पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक और किट पर आधारित थे,जिन्हें भारतीय संस्थानों द्वारा तैयार किया गया था।

14 जुलाई को शाम 4:45 बजे (IST) ‘ग्रेस’ यान ने ISS से अलग होकर पृथ्वी की ओर रुख किया। 15 जुलाई 2025 को दोपहर 3 बजे कैलिफोर्निया के तट पर स्प्लैशडाउन के साथ वे सकुशल वापस लौट आए । वापसी के बाद, उन्हें और उनकी टीम को धरती की गुरुत्वाकर्षण स्थिति में ढलने के लिए 7 दिनों के पुनर्वास कार्यक्रम से गुजरना होगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि शुभांशु की इस सफल अंतरिक्ष यात्रा से भारत के गगनयान मिशन की तैयारी को बल मिलेगा, जिसकी तैयारी भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा जोर-शोर से की जा रही है।

शुभांशु की यह सफलता प्रस्तावित भारतीय मिशनों के लिए तो उपयोगी साबित होगी ही, इससे देश के युवाओं में अभूतपूर्व साहस और उत्साह का संचार भी हुआ है,जो अगली पीढ़ी को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहेगी। आईएसएस से उनके द्वारा छात्रों से जो संवाद किया गया था,उसमें इसकी झलक स्पष्टतः देखी गई।
वापसी यात्रा प्रारंभ करने के पहले शुभांशु ने कहा था कि ‘अंतरिक्ष से देखने पर आज का भारत निडर, महत्वाकांक्षा से भरा और आत्मविश्वासी दिखता है।’
उनके इन मनोभावों को भावी भारतीय प्रकल्पों की सुनिश्चित सफलता की उद्घोषणा के रूप में देखा जाना चाहिए।

विवेक रंजन श्रीवास्तव

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