उपवास दो शब्दों से मिलकर बना है उप और वास। उपवास का अर्थ है, शुद्ध चैतन्य के निकट जाकर रहना। जब हम आहार सीमित कर देते हैं और सांसारिकता से दूर हो जाते हैं तभी यह संभव होता है। उपवास करते समय यह ध्यान रखें कि,जहां तक हो सके,सांसारिकता से दूर रहें और आहार को नियमित और नियंत्रित कर लें।
उपवास एक वैज्ञानिक उपचार पद्धति भी है। वैसे तो लोग अपने शरीर को निर्मल और शुद्ध करने हेतु नवरात्र उपवास के नौ दिन फल खा कर रह सकते हैं। परंतु रोग की अवस्था में इसे अपने रोग से सम्बंधित उपयुक्त आहार ले कर अधिक लाभकारी बनाया जा सकता है।
आप अपने नियमित फलों के साथ बाकी दिन भर यही आहार ले कर उपवास का अधिकाधिक लाभ ले सकते हैं।
अस्थमा, थाइराइड- अनार और शहद
मधुमेह – सेब, पपीता, केला, मौसमी, संतरा।
क्रियटिनीन,अम्लता- धान या ज्वार की लाई पानी में भिगोकर
गांठे- तुलसी रस, शहद, मेथी, बथुआ, चौलाई, सहिजन के सूप या रस
मोटापा,कमजोरी,अपचन– मौसमी, संतरा, शहद, सेंधा नमक,काली मिर्च
त्वचा रोग व कैंसर- अनार, चुकन्दर
उच्च रक्तचाप,कोलेस्ट्रोल – अनन्नास को छोड़ कर सभी ताजे फल,मीठी नीम,सहिजन,जीरा, अजवाईन का नमक रहित सूप
अधिक मासिक,रक्ताल्पता,कमजोरी- नारियल, दूध,मिश्री,कोकम
कम या देर से मासिक- खाली पेट ग्वारपाठा रस, रागी रोटी के आहार के बाद अनन्नास रस
कोलाइटिस- ताजा दही/छाछ,जीरा,काली मिर्च और शहद,सेंधा नमक
गठिया- रागी की रोटी और मेथी भाजी,जीरा, अजवाईन का सूप

डॉ पूर्णिमा दाते
(आयुर्वेद एवं रसाहार विशेषज्ञ)